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एक भीगी साँझ
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एक भीगी साँझ
Ebook47 pages26 minutes

एक भीगी साँझ

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About this ebook

उसने घूमकर देखा तो पाया कि आवाज देने वाला उसका एक पुराना ग्राहक था। शीला नें उसको पहचान लिया और एक प्यारी सी मुस्कान दी।

"आज शाम को क्या कर रही हो अगर फ्री हो तो मेरे साथ् आ जाओ," उस जवान लड़के ने कहा।

"नहीं, आज शाम को मेरी बुकिंग है और मुझे एक ग्राहक के साथ् जाना है," शीला ने कहा।

"लेकिन मैं तुमको दो गुना पैसे दूँगा अगर तुम आज की रात मेरे साथ् बिताने को तैयार हो तो," उस जवान लड़के ने उत्साह और आशा के साथ् कहा।

"नहीं, आज तो मैं किसी और के साथ् बाहर जा रही हूँ, और अब कुछ महीनों तक मैं खाली नहीं होने वाली हूँ, तो तुमको तो एक लम्बा इन्तेजार करना पड सकता है," शीला ने कहा और मुड़कर जाने लगी।

लेकिन उस जवान लड़के ने उसका हाथ पकड कर उसको रोक लिया और बोला, "क्यों, क्या अब सती सावित्री बनने का निश्चय कर लिया है?"

एक भीगी साँझ
अध्याय एक: शीला का जीवन
अध्याय दो: विदित
अध्याय तीन: उथल पुथल
अध्याय चार: विदित और अजीत
अध्याय पांच: शीला फिर से
अध्याय छः: आपातकालीन कक्ष

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateAug 21, 2013
ISBN9781301296545
एक भीगी साँझ
Author

Raja Sharma

Raja Sharma is a retired college lecturer.He has taught English Literature to University students for more than two decades.His students are scattered all over the world, and it is noticeable that he is in contact with more than ninety thousand of his students.

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    एक भीगी साँझ - Raja Sharma

    एक भीगी साँझ

    राजा शर्मा

    Copyright

    एक भीगी साँझ

    राजा शर्मा

    Copyright@2012 Raja Sharma

    Smashwords Edition

    All rights reserved

    अध्याय एक: शीला का जीवन

    चर्चगेट की तरफ जाने वाली स्थानीय रेलगाडी महालक्ष्मी रेल्वे स्टेशन पर रुक गई। जब वो और महिला यात्रियों के साथ् महिलाओं के डिब्बे से नीचे उतरी बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी। रेल्वे स्टेशन का छत होने के बावजूद भी वो लगभग पूरी तरह से भीग गई थी।

    सुबह से ही पानी गिर रहा था और रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। मुम्बई की यह एक बहुत आश्चर्यजनक बात है कि कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ हों या कितना भी मौसम खराब हो जीवन वहाँ कभी भी थमता नहीं है। लोग लगातार अपने कामों में लगे रह्ते हैं।

    शीला धीरे धीरे भीड के साथ् मुख्य द्वार की ओर बढ्ने लगी। वो द्वार मुख्य सडक पर खुलता था और वो सडक महालक्ष्मी रेस कोर्स की तरफ जाती थी। सामान्यतः शीला साडियाँ नहीं पहनती पर उस दिन वो एक गुलाबी रंग की साडी में थी और बहुत खूब्सूरत लग रही थी। यह साडी वो तभी पहनती थी जब वो विदित के साथ् बाहर घूमने जाती थी। विदित उसका सबसे अच्छा ग्राहक जो था और उसको रिझाना शीला का कर्तव्य था। इसी तरह उसको अपने सभी ग्रहकों की मांग पूरी करनी होती थी, कोई विशेष कपड़े लगाने की मांग करता था तो कोई विशेष लिपस्टिक लगाने का आग्रह करता था। विदित उसके दूसरे ग्रहकों से बिल्कुल भिन्न था।

    अचानक कंधे पर झूल रहे बैग में रखा हुआ शीला का मोबाइल फोन बजने लगा। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई और वो सोचने लगी कि हो न हो यह विदित का ही फोन होगा, क्योंकी वो उसकी प्रतीक्षा करते करते थक गया होगा। पर जब उसने फोन बाहर निकाल कर देखा तो जाना कि यह तो उसके एक परिचित की तरफ से की हुई मिस काल थी। उसने वही नम्बर फिर से मिलाया।

    दूसरी तरफ से एक पुरुष बोला, तुम कैसी हो शीला?

    तुमने मुझे मिस काल क्यों की है? शीला ने बिना उस व्यक्ती की कोई बात सुने कहा। एक हाथ में छाता और बैग थामे वो

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