नाइन
By Prem Mohan
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About this ebook
नाइन..., नौ रचनाओं का संग्रह है, जहाँ एक ओर “हर पल”, “समंदर”, “सच”, और “जीवन-चक्र” जैसी रचनायें हैं जो जीवन और जीवनशैली के पहलुओं पर नज़र डालती हैं और “अगली बार” जैसी कहानी भी है जिसमें हास्य का पुट है। वहीं दूसरी ओर हैं, “वो आँखें”, “स्कूल”, “पहली नज़र का फेर”, और “थैंक्यू सर” जो जीवन के सबसे खूबसूरत अहसास “प्यार” के विभिन्न स्वरूपों से अवगत कराती हैं।
“बूँदों की सरगम, मिट्टी की खुशबू,
महकते हुए, यह गगन गा रहा है।
ना झटको परे, इन मोतियों को,
खो जाओ इनमें, यह हर पल कह रहा है।”
Prem Mohan
Software Engineer by Profession at New Delhi in India.
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Book preview
नाइन - Prem Mohan
हर पल
वह एक व्यस्त शाम थी, ऑफिस में अफरा-तफरी मची हुई थी, महीने का आखिरी दिन था और सारी रिपोर्ट्स शाम तक तैयार करनी थीं। मैं भी सभी चीज़ें जाँच रहा था, आखिर शुक्रवार की शाम थी और मैं नहीं चाहता था कि किसी भी वजह से सप्ताहांत खराब हो। सप्ताहांत के लिए मेरा कोई विशेष कार्यक्रम हो, ऐसा भी नहीं था पर मेरी ऐसी सोच है कि जिस चीज़ का जब वक़्त हो उसको तभी किया जाए तो उसका आनंद बना रहता है – पूरे सप्ताह काम और सप्ताह के अंत में मौजमस्ती-आराम। दिवाली रंगों से मनायें और होली पर पटाखे जलाये जायें तो कैसा लगेगा? कोई भी अवसर हो, छोटा या बड़ा उसको मनाने से ही छोटी-छोटी खुशियाँ मिलती हैं। किसी बड़ी खुशी की तलाश में इन छोटी-छोटी खुशियों को अक्सर इंसान नज़रन्दाज़ कर देता है, सोचता है अभी बहुत वक़्त है सब हो जायेगा, पर नहीं, यह वक़्त ही है जो नहीं होता और कभी हमारी सहूलियतों के हिसाब से नहीं चलता।
सब कुछ समय से चल रहा था। शाम छ: बजे के आस-पास मुझे चाय या कॉफ़ी की ज़रूरत महसूस हुई। मैंने चारों तरफ घूमकर देखा कि कोई थोड़ा-सा कम व्यस्त लगे तो उसे अपने साथ ले जाया जाये पर अंत में मैं अकेला ही चल दिया। मशीन से एक कॉफ़ी निकाली हालाँकि मशीन की कॉफ़ी मुझे कभी अच्छी नहीं लगी पर ठीक है, काम चल ही जाता है। एक तरफ बड़ी स्क्रीन पर क्रिकेट का ट्वेंटी-ट्वेंटी मैच आ रहा था और दूसरी तरफ कुछ लोग टेबल-टेनिस खेल रहे थे।
तभी मेरी नज़र खिड़की के शीशों पर गयी जिन पर कुछ बूँदें नज़र आ रही थीं। मैं उन्हें ग़ौर से देखने लगा, क्योंकि सेंट्रलाइज्ड ए.सी. बिल्डिंग के दसवें फ्लोर पर उन बूँदों को महसूस करने का कोई तरीका तो था ही नहीं। हाँ, वह बारिश ही थी जो अब काफी तेज़ हो गयी थी, इतनी कि बाहर धुँधला नज़र आने लगा था।
मैं कुछ रोमांचित हो उठा, बारिश हमेशा से ही मेरे शरीर में एक सिरहन पैदा कर देती है। मुझे ऐसा महसूस होता है कि बारिश गगन का धरती के लिए प्यार दर्शाने का एक माध्यम है। हालाँकि बारिश के इस खूबसूरत अहसास के बाद अगर आप दिल्ली की सड़कों पर निकल जायें तो गाड़ियों के बजते हॉर्न, माथे पर टपकती पसीने की बूँदें, खराब रेड-लाइट, ट्रैफिक पुलिस की सीटियाँ, सड़क के दोनों तरफ भरा पानी और बीच में से अपनी गाड़ी बंद किये बिना निकाल ले जाने का हुनर जैसे बारिश का लुत्फ़ ही काफ़ूर कर देता है। इन सब हालातों के बावज़ूद मेरा मानना है कि बारिश का लुत्फ़ ज़रूर उठाना चाहिए, चाहे फिर वह बारिश में भीगकर हो, चाय और गर्मागर्म पकोड़ों के साथ हो या फिर दोस्तों और प्रियजनों के साथ घूमकर या समय बिताकर।
अचानक ही मुझे याद आया कि यहाँ खड़े हुए काफी वक़्त हो गया है, जल्दी से मैंने कप में बची हुई आधी कॉफ़ी फेंकी और लिफ्ट