घड़ीसाज़ (हिन्दी भाषा Hindi Language Edition)
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"पूछिए..... आप कैसे समय में से १ घंटे की अवधी जीत सकते हैं?”
मारए ओ’कोनारे की घडी ३ बजकर ५७ मिनट पर बंद पड चुकी हैं। परंतु उसके सामने इससे भी बहुत बडी मुसीबतें खडी हैं। जब वह अपनी घडी ठीक कराने के लिए घडीसाज के पास जाती है तो अपने आपको एक अजीबोगरीब पुरस्कार की हकदार पाती हैं। उसे अपनी जिंदगी का एक घंटा दोबारा जीने का मौका मिल जाता है।
अपने अतीत के साथ कोई कितनी खिलवाड कर पाएगा इस पर सख्त और कडे नियम लागू हैं। मारए को यह चेतावनी भी मिलती है कि वह ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकती जिससे समय के प्रति विरोधाभास निर्माण हो। क्या मारए अपनी उस गलती को सुधार पाएगी जिसे वह जिंदगी में सबसे ज्यादा कोसती है?
Anna Erishkigal
Anna Erishkigal is an attorney who writes fantasy fiction under a pen-name so her colleagues don't question whether her legal pleadings are fantasy fiction as well. Much of law, it turns out, -is- fantasy fiction. Lawyers just prefer to call it 'zealously representing your client.'.Seeing the dark underbelly of life makes for some interesting fictional characters. The kind you either want to incarcerate, or run home and write about. In fiction, you can fudge facts without worrying too much about the truth. In legal pleadings, if your client lies to you, you look stupid in front of the judge..At least in fiction, if a character becomes troublesome, you can always kill them off.
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घड़ीसाज़ (हिन्दी भाषा Hindi Language Edition) - Anna Erishkigal
घड़ीसाज़
(एक लघु उपन्यास)
हिंदी संस्करण
.
एना एरिश्किगल
द्वारा लिखीत
.
Copyright 2014 – एना एरिश्किगल
सर्वाधिकार सुरक्षित
विवरण
पूछिए….. आप कैसे समय में से १ घंटे की अवधी जीत सकते हैं?
मारए ओ’कोनारे की घडी ३ बजकर ५७ मिनट पर बंद पड चुकी हैं। परंतु उसके सामने इससे भी बहुत बडी मुसीबतें खडी हैं। जब वह अपनी घडी ठीक कराने के लिए घडीसाज के पास जाती है तो अपने आपको एक अजीबोगरीब पुरस्कार की हकदार पाती हैं। उसे अपनी जिंदगी का एक घंटा दोबारा जीने का मौका मिल जाता है।
अपने अतीत के साथ कोई कितनी खिलवाड कर पाएगा इस पर सख्त और कडे नियम लागू हैं। मारए को यह चेतावनी भी मिलती है कि वह ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकती जिससे समय के प्रति विरोधाभास निर्माण हो। क्या मारए अपनी उस गलती को सुधार पाएगी जिसे वह जिंदगी में सबसे ज्यादा कोसती है?
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एक मार्मिक कहानी, अपनी सबसे बडी गलती सुधारने का लाखों में एक मौका!
- पाठक का विष्लेषण
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एक गतिमान और नाटकीय कहानी। यदि हमें अपने अतीत को बदलने का मौका मिला तो क्या हम उसे आजमाएंगे?
-पाठक का विष्लेषण
.
एक मार्मिक लघु कहानी जो नॉर्स (स्कैंडेनेविया प्रांत) पौराणिक कथाओं पर आधारित हैं। समय एक उपहार है, और कई बार एक आखरी मौका,
- डेल एमीदइ, लेखक
.
कैसा होगा यदि आप इसे दुबारा जी सके?
विषय - सूची
विवरण
विषय- सूची
समर्पण
नक्शा- मारए का प्रवास
अध्याय - १
अध्याय - २
अध्याय - ३
अध्याय - ४
अध्याय - ५
अध्याय - ६
वुडकट - नॉर्न्स
नॉर्न्स
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समर्पण
मैं इस किताब को अंकल ह्यूबर्ट को समर्पित करती हूं। आप एक अत्यंत सज्जन व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी को, छोटी अपितु अर्थपूर्ण चीजों के रखरखाव में लगा दिया। हम यही कामना करते हैं कि आपके होने से ऊपर स्वर्ग में सारे पहिए अधिक आसानीसे कार्यरत हो रहे होंगे।
नक्शा - मारए का प्रवास
मारए का प्रवास
अध्याय - १
उनतीस जनवरी, तीन बजकर सत्तावन मिनट पर मेरी घडी रुक गई थी। वह मुझ जैसी शोध छात्रा के लिए एक सामान्यसा दिन था। मेरे लिए सबसे बडी विवंचना यह हो सकती थी, कि परीक्षा के जांच हेतु, विश्वविद्यालय के पुस्तकालय समय पर कैसे पहुंचा जाए। यह अलग बात थी की विश्वविद्यालय का संपूर्ण विस्तार दो नदियों को लांघते विशाल परिसर में स्थित था। हालांकि हमेशा से ही एक प्रकार के आभाव और डर की भावना मुझमें कहीं थी, परंतु उस दिन इन सबसे विरहित, समय के, कहीं पीछे छूटते जाने का एहसास था। तब बीसो बार मैंने उस घडी को देखा होगा पर काफी देर बाद मुझे ज्ञात हुआ था, कि मेरे सामने दीवार पर टिक टिकाती घडी भविष्य की तरफ कूच कर चुकी थी और एक मेरी अपनी घडी, अभीभी ३ बजकर ५७ मिनट पर थमी रह गई थी ।
मैं सिटी बस की खिडकी के बाहर झांकने लगी। कपडे की मिलों को किनारे कर, बस आगे चली जा रही थी। मिलों की दीवारें, बोर्डिंगहाउस पार्क से ऊपर उठते, बडी लाल ईंटों के किल्ले की तरह दिखाई दे रही थी। वहीँ, गहरे हरे रंग का एक मंडप, बर्फ के कफन से आच्छादित, परित्यक्त खडा था। उस मंडप पर बनी जाली में, कुछ नुकीले हिमकण इस भाँति चमक रहे थे मानो किसी देवदूत के अश्रू हो। जॉश मुझे एक बार उसी जगह एक कॉन्सर्ट सुनने ले गया था। वह कॉन्सर्ट निशुल्क था और मौसम भी ऐसा, की बाहर बैठना भी मुनासिब हो। अपनी मुट्ठीको छाती पर जकड़ते हुए मैंने अपनी गर्दन दुसरी ओर कर ली, और उस तरफ की खिडकी से बाहर देखने का बहाना शुरू कर दिया। देखनेवालों पर यह प्रभावित हो, जैसे की मुझे सामनेसे गुजरते हुए मैग्नेट उच्च विद्यालय में काफी रूचि हैं। कम से कम मेरे अपरोक्ष बैठे वृद्ध वियतनामी व्यक्ति को यह गलतफहमी ना हो, कि मैं उसे घूर रही हूं।
बस मुडी, और देखते देखते तीन मंज़िला छात्रावासों की इमारतों को पार करने लगी। शहर में अब प्रायः कार्यालय और व्यापारी दुकानों का चलन था। इस पृष्ठभूमि पर, यह छात्रावास बेमौक़ा मालूम पड रहे थे। जब औद्योगिक क्रांति चली थी तब बहुत सी ग्रामीण महिलाओं ने खेतों की मजदूरी छोड, कपडे की मिलों में काम करना शुरू कर दिया था। ठीक उसी तरह आज की युवा पीढी, अपने छोटे शहरोंको छोड नदी पार स्थित राष्ट्रीय विश्वविद्यालय