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Chakshopanishada
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Chakshopanishada

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हमारे शरीर में नेत्रों का स्थान सर्वोपरि होने के कारण ही इसे अनमोल कहा जाता है। नेत्रों में पीड़ा हो या उसमें रोशनी न हो तो वे व्यर्थ हैं। नेत्र नीरोग रहें उसमें रोशनी दीर्घकाल तक सामान्य रहे और किसी प्रकार की पीड़ा न हो इसके लिए चाक्षुषी विद्या की चर्चा होती है। चाक्षुषी विद्या चाक्षुषोपनिषत् पर आधारित है। यदि आप प्रतिदिन सूर्योदय काल में सूर्य देवता के समक्ष चाक्षुषोपनिषत् का 12 बार पाठ नियमित करें और मन में पूर्ण आस्था एवं विश्वास रखें तो नेत्र संबंधी सभी प्रकार की पीड़ा से मुक्ति मिल सकती है। बहुत लोग इस साधना को करके अपना चश्मा तक उतार चुके हैं! चाक्षुषोपनिषत् का संपूर्ण पाठ हिन्दी अनुवाद सहित यहां दे रहे हैं जिससे इसका पाठ को करने में आसानी रहे और आप नेत्र पीड़ा से मुक्ति पाकर नेत्रों को स्वस्थ रख सकें। यह जान लें कि चाक्षुषोपनिषत् स्वस्थ नेत्रों के लिए रामबाण है।

Languageहिन्दी
PublisherUmesh Puri
Release dateJul 23, 2016
ISBN9781370663880
Chakshopanishada
Author

Umesh Puri

नाम-डॉ. उमेश पुरी 'ज्ञानेश्वर' जन्मतिथि-2 जुलाई 1957 शिक्षा-बी.-एस.सी.(बायो), एम.ए.(हिन्दी), पी.-एच.डी.(हिन्दी) सम्प्रति-ज्योतिष निकेतन सन्देश(गूढ़ विद्याओं का गूढ़ार्थ बताने वाला हिन्दी मासिक) पत्रिका का सम्पादन व लेखन। सन्‌ 1977 से ज्योतिष के कार्य में संलग्न अन्य विवरण पुरस्कार आदि - - विभिन्न विषयों पर 74 पुस्तकें प्रकाशित एवं अन्य पुस्तकें प्रकाशकाधीन। - 6 ईबुक्स आॅनलाईन स्मैश बुक्स पर प्रसारित। - राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख, कहानियां एवं कविताएं प्रकाशित। - युववाणी दिल्ली से स्वरचित प्रथम कहानी 'चिता की राख' प्रसारित। - युग की अंगड़ाई हिन्दी साप्ताहिक में उप-सम्पादक का कार्य किया। - क्रान्तिमन्यु हिन्दी मासिक में सम्पादन सहयोग का कार्य किया। - भारत के सन्त और भक्त पुस्तक पर उ.प्र.हिन्दी संस्थान द्वारा 8000/- रू. का वर्ष 1995 का अनुशंसा पुरस्कार प्राप्त। - रम्भा-ज्योति(हिन्दी मासिक) द्वारा कविता पर 'रम्भा श्री' उपाधि से अलंकृत। - चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन-1989 में ज्योतिष बृहस्पति उपाधि से अलंकृत। - पंचम अन्तर्राष्ट्रीय ज्योतिष सम्मेलन-1991 में ज्योतिष भास्कर उपाधि से अलंकृत। - फ्यूचर प्वाईन्ट द्वारा ज्योतिष मर्मज्ञ की उपाधि से अलंकृत। मेरा कथन-'मेरा मानना है कि जीवन का हर पल कुछ कहता है जिसने उस पल को पकड़ कर सार्थक बना लिया उसी ने उसे जी लिया। जीवन की सार्थकता उसे जी लेने में है।'

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