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KAHAVATO KI KAHANIYA
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Ebook232 pages2 hours

KAHAVATO KI KAHANIYA

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About this ebook

The book contains 51 proverbs, reading which even a child might wonder that from where such proverbs actually originated. The interesting and entertaining stories of their origin are penned down in this book.

Languageहिन्दी
Release dateSep 22, 2011
ISBN9789352151066
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    KAHAVATO KI KAHANIYA - PRATAP ANAM

    है

    कबीरा तू कबसे वैरागी?

    एक बार गुरु रामानंद और उनके अनेक शिष्य किसी खास बात पर चर्चा कर रहे थे। उन दिनों शोर था कि शंकराचार्य शास्त्रार्थ में सबको हराते हुए काशी की ओर बढ़ते आ रहे हैं और अब काशी में उनका किस तरह से सामना किया जा सकता है? वहीं पर कबीर भी चुपचाप बैठे थे पर वे एक शब्द भी नहीं बोले। सबकी बातों को कबीर चुपचाप सुनते रहे।

    रामानंद उठकर जैसे ही गए, सब शिष्य अपना-अपना काम करने में लग गए। कबीर तथा कुछ शिष्य बैठे रहे। इतने में किसी ने सूचना दी कि शंकराचार्य रामानंद को पूछते हुए इधर ही चले आ रहे हैं। कबीर आश्रम के बाहर आकर बैठ गए।

    थोड़ी देर बाद कबीर देखते हैं कि शंकराचार्य डंड-कमंडल लिए अपने शिष्यों के साथ चले आ रहे हैं। शंकराचार्य ने पास आते ही कबीर से रामानंद के बारे में पूछा। कबीर ने उन्हें ठहरने के लिए जगह दी। प्रात:काल का समय था। कबीर ने शंकराचार्य से कहा, आप तब तक स्नानादि से निवृत्त हो जाइए। रामानंद कहीं गए हैं। अब आते ही होंगे।

    शंकराचार्य शौच के लिए तैयार हुए, तो कबीर से पूछा कि शौच के लिए किधर जाना है? कबीर ने थोड़ी दूर जाकर कहा, उधर जंगल है, कहीं भी कर लेना।

    शंकराचार्य अपना कमंडल लिए जंगल की ओर बढ़ गए। थोड़ा फासला रखकर और आंख बचाते हुए कबीर भी उनके पीछे-पीछे चल दिए। कबीर ने देखा कि शंकराचार्य एक झाड़ी की आड़ में बैठकर शौच करने लगे। कबीर ने थोड़ी दूर खड़े होकर कहा, राम, राम। इतना सुनते ही शंकराचार्य मुँह दूसरी ओर करके बैठ गए। कबीर फिर घूमकर सामने पहुंचकर कहने लगे, राम, राम। शंकराचार्य फिर मुँह फेरकर बैठ गए। कबीर चुपचाप आश्रम लौट आए।

    शंकराचार्य ने शौच के बाद गंगास्नान किया, पूजा-पाठ आदि की, तब निश्चिंत होकर लौटे। शंकराचार्य कबीर से बहुत नाराज थे। आते ही कबीर पर बरस पड़े। कहने लगे, तुम बिल्कुल अशिष्ट हो। अज्ञानी हो। तुमको इतना भी ज्ञान नहीं कि शौच करते समय अशुद्धावस्था में होते हैं और उस समय यदि बोलता, तो राम नाम भी अशुद्ध हो जाता।

    कबीर और शंकराचार्य की अवाजें सुनकर रामानंद के अन्य शिष्य भी वहां आ गए। शंकराचार्य की बात सुनकर कबीर बोले, आप कह रहे हैं कि अशुद्ध पहले ही थे, फिर आप शुद्ध कैसे हुए? शंकराचार्य को कबीर की बात बड़ी अटपटी लगी। शंकराचार्य ने कहा, शुद्ध कैसे हुए! गंगास्नान करके और कैसे?

    कबीर ने फिर कहा, आप तो शुद्ध हो गए, लेकिन गंगा का पानी अशुद्ध हो गया। उसमें जो भी स्नान करेंगे, सब अशुद्ध हो जाएंगे।

    शंकराचार्य कबीर को तीव्र बुद्धिवाला समझकर उत्तर देने लगे, गंगा का पानी तो वायु के स्पर्श से शुद्ध हो गया।

    इस पर कबीर ने पूछा, तब तो वायु दूषित हो गई। अब वायु का क्या होगा? शंकराचार्य ने फिर उत्तर दिया, अरे नासमझ, उस वायु को यज्ञ से पवित्र किया। कबीर बड़े प्रखर बुद्धि के साधक थे। फिर शंकराचार्य से उन्होंने एक प्रश्न कर दिया, तब तो यज्ञ अशुद्ध हो गया। यह तो बहुत बुरा हुआ।

    शंकराचार्य ने कहा, बुरा क्या हुआ, यज्ञ को भी मैंने शुद्ध कर दिया। कबीर बोले, यज्ञ किस चीज से शुद्ध कर दिया। शंकराचार्य ने तुरंत उत्तर दिया, राम नाम से।

    इतना सुनते ही कबीर ने कहा, यह तो आपने बहुत बुरा किया। आपने राम नाम अशुद्ध कर दिया। हम सब राम का नाम ध्यान करते हैं।

    शंकराचार्य थोड़ा आवेश में आकर बोले, अरे बच्चे, राम नाम तो कभी अशुद्ध होता ही नहीं। वह तो दूसरों को शुद्ध करता है।

    इतना सुनते ही कबीर बोल पड़े, फिर शौच करते समय राम नाम कैसे अशुद्ध हो जाता? अभी आप ने कहा कि राम नाम हमेशा शुद्ध रहता है। इससे पहले आप कह रहे थे कि मैं अशुद्धि में था, इसलिए राम नाम नहीं ले सकता था। राम नाम अशुद्ध हो जाएगा।

    इतना कहकर कबीर ने अपने साथियों से कहा, ले लो इनके डंड-कमंडल। जब ये रामानंद के शिष्य से नहीं जीत पाए, तो उनसे मिलकर क्या करेंगे? रामानंद के शिष्यों ने शंकराचार्य के डंड-कमंडल ले लिए।

    जाते समय शंकराचार्य ने पूछा, हे रामानंद के श्रेष्ठ शिष्य! क्या अपना नाम बता सकोगे? इतना कहना था कि कबीर के एक साथी ने कहा, इनका नाम कबीर है।

    शंकराचार्य ने कबीर को प्रणाम किया और चले गए।

    इधर कबीर ने अपने साथियों से कहा कि गुरुजी का पता लगाओ कि वे कहां चले गए? जब उन्हें ढूंढ़ा गया, तो वे उपलों के बिटौरे में छिपे मिले। शिष्य ने अवाज लगाई, गुरुजी, बाहर आ जाओ। शंकराचार्य भाग गए।

    यह सुनकर पहले तो रामानंद को विश्वास नहीं हुआ। फिर भी पूछा, यह कैसे हो गया? शिष्य ने उत्तर देते हुए कहा, कबीर ने शास्त्रार्थ में हरा दिया और उनके डंड-कमंडल छीन लिए। बिटौरे से निकलकर रामानंद अपने शिष्यों के पास पहुंचे। कबीर के पास आकर रामानंद खड़े हो गए और उन्हें ध्यान से देखने लगे। कबीर जैसे ही रामानंद के पैर छूने के लिए झुके, तो रामानंद ने रोक कर पूछा, "कबीरा तू कबसे वैरागी? आज से तू मेरा गुरु है।

    तिरिया से राज छिपे न छिपाए

    एक पति-पत्नी का आपस में बहुत प्रेम था। दोनों एक-दूसरे पर पूरा विश्वास करते थे। यहां तक कि पति ने अपनी पत्नी के प्रेम के आगे पूरे परिवार को दरकिनार कर दिया था। पत्नी के लिए वह घर के सब लोगों से लड़ लेता था। वह जानता था कि उसके माता-पिता कितने सीधे और सच्चे हैं, लेकिन जब कोई मौका आता, तो पत्नी का ही पक्ष लेता था। भाई से अच्छे संबंध होने के बाद भी वह कोई विशेष बात उसे नहीं बताता था। अपनी पत्नी को सब-कुछ बता देता था।

    एक दिन वह घूमता हुआ गांव के एक अनुभवी व्यक्ति काका के पास गया। काका बहुत अनुभवी व्यक्ति थे और उसके पिता के पक्के दोस्त थे। दोस्त तो अब भी थे, लेकिन पहले जैसा धुमना-फिरना, उठना-बैठना नहीं हो पाता था।

    काका को अपनी राजी-खुशी बताते समय अपनी पत्नी के बारे में अधिक बोलता था। उसकी प्रशंसा करता रहा था। उसने यह भी बताया कि जो भी राज की बात होती है, पत्नी से छिपाता नहीं है। विश्वास के मामले में उसने पूरे परिवार को शक की नजर से देखना शुरू कर दिया था।

    जब वह सब-कुछ बताकर थक गया, तब काका ने कहा, जो तुम सोच रहे हो, वह सही नहीं है। अपनी पत्नी के बारे में तुमको जरूरत से ज्यादा विश्वास है। किसी समय परीक्षा लेकर देखो, फिर पता चलेगा कि कौन कितनी राज की बात छिपा सकता है? मैं यह नहीं कह रहा कि तुम्हारी पत्नी का प्रेम सच्चा नहीं है। कभी-कभी सच्चा प्रेम करने वाला नासमझी में अपने प्रिय का हित करने के चक्कर में अहित कर बैठता है।

    सारी बात सुनकर वह अधीर हो उठा। उसने जल्दी-से-जल्दी पत्नी की परीक्षा लेनी चाही। उसने काका से कुछ करने के लिए पूछा, तो काका ने उससे एक नाटक रचने को कहा और उसे विस्तार से समझा दिया।

    एक दिन रात के समय वह एक कटा तरबूज अंगोछे में लपेटे हुए लाया। उसकी पत्नी ने देखा अंगोछे से टपक-टपककर लाल बूंदें गिर रही हैं। वह अपनी पत्नी से बोला, देख किसी से कहना मत। मैंने एक आदमी का सिर काट लिया है। इसे छिपाना है, नहीं तो मुझे सिपाही पकड़ लेंगे और मुझे फांसी की सजा मिलेगी। उसने अपनी पत्नी से एक फावड़ा मंगवाया और घर के बाएं ओर थोड़ा चलकर एक पेड़ के नीचे उस अंगोछे में लिपटे तरबूज़ को रख दिया। वहीं उसने एक गड्ढा खोदा और उसमें उस तरबूज को अंगोछे सहित गाड़ दिया। ऊपर से मिट्टी डालकर वह जगह समतल बना दी।

    उसकी पत्नी इस घटना से बेचैन हो उठी। अपने पति से कुछ नहीं कहती थी, बल्कि अंदर-ही-अंदर घुटन महसूस कर रही थी। उसे एक दुख-सा महसूस होता था। अब वह मन में रखे इस बोझ से हलका होना चाहती थी। एक दिन उसने अपनी पक्सी दोस्त पड़ोसन को यह बात सुना दी। और कहा, देख बहन, किसी से कहना मत, नहीं तो मेरे पति को फांसी हो जाएगी।

    उस महिला को भी वह बात नहीं पची। उसने अपनी पक्की दोस्त पड़ोसन महिला को यह घटना सुनाई और कहा, देख बहन, किसी से कहना मत। नहीं तो उसके पति को फांसी हो जाएगी। इसी प्रकार एक ने दूसरे से, दूसरे ने तीसरे से, तीसरे ने चौथे से कहा और फिर यह खबर पूरे गांव में फैल गई। बहुत-सी औरतों ने यह घटना अपने आदमियों से भी कही। एक दिन ऐसा आया, जब यह खबर इलाके के थाने में पहुंच गई।

    फिर क्या था? सुबह तड़के दरोगा और सिपाही उसके घर जा पहुंचे। जब गांव वालों को पता चला तो गांव के तमाम लोग आए। काका भी उसके घर पहुंच गए थे। दरोगा ने सबसे पहले उसकी औरत को धमकाकर पूछा, बता तेरे आदमी ने सिर कहां गाड़ा है? नहीं तो तुझे फांसी हो जाएगी। उसने डर के मारे वह स्थान इशारा करके दिखा दिया।

    जब उस स्थान को खोदा गया तो अंगोछे में लिपटा हुआ एक कटा तरबूज़ निकला। जब उसके आदमी को डांटा गया, तो उसने

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