भारत यात्रा: तीर्थ एवं दर्शनीय स्थल
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लेखिका का यह पहला संग्रह पर्यटन का एक ऐसा इंद्रधनुष बनाता है जिसमें इतनी छटाएँ हैं कि पर्यटक के मन का रोमरोम सिहर उठता है और कदम बढ़ते ही जाते हैं। भागती जिंदगी से ऊबे और थके मनुष्य के लिये आशा है यह संग्रह उसकी जड़ता को मिटाकर उसे संवेदनशील बना देगा। हर स्थल के इतिहास, वास्तुकला के साथ लेखिका ने अपनी अनुभूतियों को इस तरह पिरोया है कि हर स्थल जीवंत हो उठा है। स्थल तक पहुंचने का मार्ग और स्थानीय जानकारी भी यथासंभव देने का प्रयास किया है। जिससे पर्यटकों को परेशानी का सामना ना करना पड़े। लेख अपनी सारी अनगढ़ता के बाबजूद सहस और संप्रेषणीय है।
साँई ईपब्लिकेशन
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भारत यात्रा - Dr. Usha Arora
गुफाएं
1. माता का बुलावा है –
भारत के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का दरबार है– वैष्णों देवी का मंदिर। भक्तों को शांति और कामनाओं की पूर्ति करने वाली मां मनोहारी त्रिकूट पर्वतमाला के अंचल में अवस्थित है। इस धर्मस्थान को प्रकृति ने स्वंय अपने हाथों से रचा है। इस धर्म स्थल की उत्पत्ति कब और कैसे हुई कोई सही जानकारी प्राप्त नहीं है फिर भी इस गुफा के बारे में कई कथाएं प्रचलित है। एक पौराणिक कथा बताती है कि वैष्णों देवी भगवान विष्णु की परम भक्त एवं उपासक थीं और उन्होंने कौमार्यव्रत घारण किया हुआ था। जब ये कुछ बड़ी हुई तो भैरोंनाथ नामक एक तांत्रिक उनकी ओर आकर्षित हो गया, जो उन्हें प्रत्यक्ष देखने का अभिलाषी था। अपनी अभिलाष को पूरा करने के लिये उसने अपनी तंत्र शक्ति का प्रयोग किया और देखा देवी त्रिकूट पर्वत की ओर जा रही हैं। तांत्रिक ने उनका पीछा किया। कहा जाता है कि बाण गंगा स्थान पर जब माता को प्यास लगी तो उन्होंने धरती को अपने बाण से बेध डाला और वहां से जल की धारा निकल पड़ी। यह भी कहा जाता है कि चरण पादुका स्थान का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वहां पर देवी ने विश्राम किया तथा उनके पद चिन्ह वहां आज भी हैं। यही पौराणिक कथा आगे कहती है कि माता आदिकुमारी नामक स्थान पर एक प्राकृतिक गुफा मे तपस्या करने हेतु लीन हो गयीं लेकिन भैरोंनाथ ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा। जिस गुफा में माता ने शरण ली थी उसका नाम गर्भ जून पड़ गया। वह वहां भी आ पहुंचा। कहा जाता है माता अपने आप को बचाती हुई दरबार स्थित पवित्र गुफा की ओर अग्रसर हुई। यहां आकर माता ने महाकाली का रूप धारण किया और अपने त्रिशूल के प्रहार से भैरोंनाथ का धड़ काटकर इतने वेग से फेंका कि वह दूर पहाड़ पर जा गिरा। जिस स्थान पर गिरा वहां आज भैरों का मंदिर है। कथा के अनुसार गुफा के द्वार पर स्थित चहान असल में भैरोंनाथ का धड़ है जो पाषाण बन गया था। मां ने भैरोंनाथ को उसके अंतिम समय में क्षमा प्रदान की और यह वरदान दिया कि आने वाले समय में जो भी भक्त माता के दर्शनार्थ आयेगा उसकी यात्रा तभी पूरी मानी जायेगी जब वह वापसी पर भैरो के दर्शन करेगा।
इस गुफा की कथा जम्मू प्रदेश के एक ऐतिहासिक किसान बाबा जित्तो को माता वैष्णो देवी के एक अनन्य भक्त थे, से जुड़ी हुई है। लोक कथाओं मे भी सुनी जा सकती है। हमेशा बाबा जित्तो की गाथाओं में इस पवित्र गुफा का संदर्भ दिया जाता है।
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार वैष्णों देवी एक दिव्य लड़की थी जो जम्मू के पास कोटल कंडोली में पैदा हुई थीं। वहां एक सदियों पुराना मंदिर आज भी है जहां उन्होंने सर्वप्रथम तपस्या की थी। कुछ पौराणिक किताबों में ही इस धार्मिक स्थल का वर्णन मिलता है।
वैसे कुछ भू गर्भ शास्त्री यहां की चट्टानों के अध्ययन के आधार पर कहते है कि वैष्णों देवी की गुफा कई सौ वर्ष पुरानी है। बताया जाता है कि जब कुरूक्षेत्र के युद्ध के मैदान में पाड़वों व कौरवों की सेनाएं आमने सामने एक दूसरे से भिड़ने के लिये आ जुटी थीं तब श्री कृष्ण ने अर्जुन से वैष्णों देवी का स्मरण करने विजय की प्राप्ति के लिये उनका आर्शीवाद प्राप्त करने को कहा था। त्रिकुट पहाड़ी का ऋृग्वेद तथा वैदिक काल के अन्य ग्रंथो में वर्णन अवश्य मिलता है।
एक कथा के अनुसार कटरा के नजदीक हंसाली गांव में रहने वाले एक ब्राह्मण श्री घर ने इस गुफा की खोज की थी जिसे माता ने एक बच्ची के रूप मे दर्शन देकर इस गुफा के बारे मे जानकारी दी थी। यह कथा भी 300 साल पुरानी बतायी जाती है। वैष्णव देवी का इतिहास जितना रोचक है इसकी यात्रा उससे भी कहीं अधिक आनन्दमय और रोमांचक है। वैष्णों देवी की यात्रा जम्मू से शुरू होती है। जम्मू बस, रेल तथा वायुमार्ग द्वारा भारत के सभी राज्यों से जुड़ा हुआ है। पहले वैष्णों देवी के लिये यहीं से पैदल जाना पड़ता था। पर अब जम्मू से बस टैक्सी से कटरा पहुंच जाते हैं। जम्मू से कटरा 48 कि।मी। है। यहां पर यात्रियों के लिये बहुत सुविधा है। हर दाम के होटल व धर्मशालाएं है। बस स्टंैड पर स्थित टूरिस्ट रिसेप्शन सेंटर से ऊपर पर्वत पर जाने के लियें पर्ची प्राप्त करना अनिवार्य है अन्यथा बाणगंगा से ही वापिस आना पडे.गा। यह यात्री पर्ची नि:शुल्क मिलती है। कटरा से मां का दरबार लगभग चौदह किलोमीटर है। यह यात्रा पैदल, घोड़े या डोली पर तय कर सकते है।
बच्चों के लिये पिटू की सुविधा है। सभी के किराये निश्चित है। सभी व्यवस्थाओं को संचालित करने की जिम्मेदारी श्री वैष्णों देवी बोर्ड की है। कटरा से साँझी छत जाने के लिये हैलीकॉप्टर सेवा भी है। हैलीकॉप्टर से जाने वाले यात्रियों के लिये दर्शन पर्ची में प्राथमिकता दी जाती है। पैदल यात्रियो के लिये दुकानों पर कपड़े के जूते और लाठी किराये पर उपलब्ध हैं, इससे चढ़ाई में सुगमता रहती है। पर्ची कटवाने के बाद भक्त कटरा के बाजार से निकलता हुआ आगे बढ़ता है। बाणगंगा पर आकर अचानक कदम रुकते हैं और गंगास्नान की महत्ता को स्वीकारते हुए स्नान के बाद ही यात्रा का आरम्म होता है। कटरा से वैष्णों देवी की गुफा 14 कि।मी। दूर है। पहाड़ी पर राज्य द्वारा बनवाया गया मार्ग पूरे देश के सबसे अच्छे और साफ सुथरे मार्गो में से एक है। रास्तों में लंगरों और प्रकाश की बहुत अच्छी व्यवस्था है। थोड़ी–थोड़ी देर में कूड़ा साफ किया जाता है। यही से चढ़ाई चढ़ने के दो मार्ग हैं। एक तो पक्का रास्ता बना है और दूसरा दुर्गम मार्ग है। यात्रा को आसान और आराम देह बनन के लिये विश्राम हेतु छायादार रोड, पेयजल और चाय नाश्ते की अच्छी दुकानें है। रास्ते में आते जाते भक्तों की आवाज ‘जोर से बोलो जय माता दी’ ‘पॉड़ी पौड़ी चढ़ता जा जय माता दी करता जा’ ‘सारे बोलो जय माता की’ आवाज से संपूर्ण घाटी गूँजती है। चलते चलते थकने पर पूछते हैं मन्दिर कितनी दूर है? तो बस एक ही उत्तर है कि बस आया।। बस आने वाला है। इसी आस्था के साथ भक्त चढ़ते जाते हैं। बाण गंगा से डेढ़ किलोमीटर आगे चरण पादुका है यहां पर मां के चरण चिन्ह बने हैं। चरण–पादुका से आगे बढ़ने पर आदिकुमारी आता है। यहां गर्भ जून गुफा है। गुफा बहुत संकरी है इस कारण बहुत लम्बी लाइन दर्शन हेतु लगी रहती है। यहां नौ महीने तक मां तपस्या में लीन रही थीं। आदिकुमारी से चढ़ाई सीधी हो जाती है और यात्रा कठिन होने लगती है। आकाश में उड़ते बादल घरा पर उतरने लगते हैं और श्रद्धालुओं को छू जाते हैं सिहर उठते हैं और ‘सच्चे दरबार की जय’ ‘जय माता दी’ करते हुये आगे बढ़ते जाते हैं। सीधी और खड़ी चढ़ाई के कारण अब जो स्थल आता है उसे हाथी मत्था कहते है। घाटी का आकार हाथी जैसा होने के कारण इस घाटी का नाम हाथी मत्था पड़ा। इस स्थान की ऊंचाई 6500 फीट है। यहां से कटरा तथा दूर दूर के दृश्य बड़े नयनाभिराम लगते हैं। थोड़ी देर मे विश्राम करके और चाय की चुस्की के बाद भक्त जब आगे बढ़ते हैं तो साँझी छत आता है। यहां पर यात्रियों के लिये बहुत सुविधायें हैं। इसकी ऊंचाई 7200 फीट है। यहां से एक रास्ता मां के दरबार जाता है। और दूसरा रास्ता भैरवनाथ मंदिर जाता है। मां के दर्शनों के उपरांत भैरों के दर्शन की भी महत्ता है। भैरों के दर्शन के बिना यात्रा अधूरी है। साँझी छत से पूरा रास्ता ढका है मंदिर तक पक्का रास्ता है और दूकानें हैं। साँझी छत से आगे बढ़ते हुये यात्री मंदिर की ओर बढ़ने लगते हैं। रास्ते मे ठेर सी धर्मशालायें और हर स्तर के होटल हैं। जहां पर कम्बल दरी, गद्दे, स्टोव, बर्तन सभी कुछ मिलता है। वैसे श्राइन बोर्ड का कालिका भवन मंदिर के पास है। और वहां हर तरह की जानकारी मिलती है। रात का प्रबन्ध कर लेने के बाद भक्त स्नान करके नारियल मौली, धूप, सिंदूर, चूड़ा, चोला लेकर अपनी–अपनी भेंटे हाथों में थामे एक लम्बी लाइन में खड़ा हो जाता है। पंक्ति में खड़े होने से पहले चप्पल, जूते, कैमरा, चमड़े की चीजें बीड़ी सिगरेट ले जाना वर्जित है। दरबार में जाने वाले सभी भक्तों की तलाशी होती है और प्रवेश द्वार पर ‘मंरेल डिटेक्टर’ भी हैं। लम्बी कतार में खड़े होकर भी श्रद्धा का अनुपम अनुभव होता है। अपनी मुरादों को संजाये मन बार बार रोमांचिक हो उठता है। पुरानी गुफा अब बंद है और बहुत बड़ी गुफा निर्मित की है। जिसमे एक साथ कई श्रद्धालु जा सकते हैं। इस नयी गुफा में प्रवेश कर गुफा के मध्य में एक चट्टान पर पवित्र तीन पिंडियो के दर्शन होते है। ज्ञान की देवी सरस्वती, धन समृद्वि दाता लक्ष्मी और दुष्ट दलन शक्ति काली के रूप में पूजा होती है। मंदिर में न ही कलात्मक नक्काशी है और न ही वास्तुशिल्प। पिंडियॉं लाल चुनरी और फूलों से सजी प्रकृति की रचना हैं। माता की महिमा का गुणगान करता हुआ यह स्थल सरलता शक्ति और दैवीय चमत्कार का अनूठा संगम है। भक्ति रस में डूबा भक्त दर्शन कर विमोर हो उठता है और मस्तक स्वत: मॉं के चरणों में झुक जाता है। दर्शन के ये पल अनमोल हैं। अनुभूति को साकार रूप देने के लिये शब्द निरर्थक हैं। पूजा अर्चना के बाद भक्त उसी गुफा से बाहर निकल आता है। बाहर निकल कर सबसे पहले मां के चरणों के जल को अंजलि में