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सर्व दु:खों से मुक़्ति (In Hindi)
सर्व दु:खों से मुक़्ति (In Hindi)
सर्व दु:खों से मुक़्ति (In Hindi)
Ebook175 pages1 hour

सर्व दु:खों से मुक़्ति (In Hindi)

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सांसारिक दुःख किसे नहीं है? हर कोई उससे छूटना चाहता है| लेकिन वह छूट नहीं पाता| उससे छूटने का मार्ग क्या है? ज्ञानीपुरुष के मिलते ही सर्व दुखों से मुक्ति मिलती हैं| सर्व दुखों से मुक्ति कैसे पाई जाए? सुख दुःख मिलने का कारण क्या है? औरों को सुख देने से सुख मिलता है और दुःख देने से दुःख मिलता है| यह कुदरती सिद्धांत है| जिसे यह सिद्धांत संपूर्ण समझ में आ जाता है, वह किसी को बिलकुल दुःख न देने की जागृति में रह सकता है| पूज्य दादाश्री ने सुन्दर और संपूर्ण क्रियाकारी उपाय बताया है की हर रोज़ सुबह में हृयदपूर्वक पांच बार इतनी प्रार्थना करो कि ‘प्राप्त मन-वचन-काया से इस जगत में किसी भी जीव को किंचित मात्र भी दुःख न हो, न हो, न हो|’इसके बाद आपकी जिम्मेदारी नहीं रहेगी| संसार के दुःख का रूट कॉज है अज्ञानता| मैं खुद कौन हूँ? मेरा असली स्वरुप क्या है? यह नहीं जानने से सारे दुःख सर पर आ गए हैं| गृहस्थ जीवन में बेटे बेटियाँ , पत्नी, माँ-बाप, की ओर से हमें जो दुःख मिलते हैं, वे हमारे ही मोह के रिएक्शन से मिलते हैं| पूज्य दादाश्री ने एक सुंदर बात बताई है कि घर एक कम्पनी है| इस कम्पनी के घर के सारे मेम्बर्स शेयर होल्डर्स हैं| जिसका जितना शेयर, उतना उसके हिस्से में भुगतने का आएगा| फिर सुख हो या दुःख| वास्तव में ‘आत्मज्ञानियों’ को इस संसार में एक भी दुःख स्पर्श नहीं होता| यदि आपको सुखी होना हो तो सदा वर्तमान में ही रहना | कुदरत का न्याय क्या है? हम अपनी भूलों से किस तरह से छूट जाये? निज दोष क्षय किस तरह से किया जाये? इन सारे प्रश्नों को पुज्यश्री ने आसानी से हल करने का रास्ता प्रस्तुत पुस्तक में बताया हैं|

Languageहिन्दी
Release dateJan 20, 2017
ISBN9789386289698
सर्व दु:खों से मुक़्ति (In Hindi)

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    सर्व दु:खों से मुक़्ति (In Hindi) - Dada Bhagwan

    www.dadabhagwan.org

    दादा भगवान प्ररूपित

    सर्व दु:खों से मुक्ति

    संकलन : डॉ. नीरूबहन अमीन

    ‘दादा भगवान’ कौन ?

    जून १९५८ की एक संध्या का करीब छह बजे का समय, भीड़ से भरा सूरत शहर का रेल्वे स्टेशन। प्लेटफार्म नं.३की बेंच पर बैठे श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल रूपी देहमंदिर में कुदरती रूप से, अक्रम रूप में, कई जन्मों से व्यक्त होने के लिए आतुर ‘दादा भगवान’ पूर्ण रूप से प्रगट हुए । और कुदरत ने सर्जित किया अध्यात्म का अद्भुत आश्चर्य। एक घण्टे में उनको विश्व दर्शन हुआ। ‘मैं कौन ? भगवान कौन ? जगत कौन चलाता है ? कर्म क्या ? मुक्ति क्या ?’ इत्यादि जगत के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों के संपूर्ण रहस्य प्रकट हुए। इस तरह कुदरत ने विश्व के सन्मुख एक अद्वितीय पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और उसके माध्यम बने श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल, चरोतर क्षेत्र के भादरण गाँव के पाटीदार, कॉन्ट्रैक्ट का व्यवसाय करने वाले, फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष !

    उन्हें प्राप्ति हुई, उसी प्रकार केवल दो ही घंटों में अन्य मुमुक्षु जनों को भी वे आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे, उनके अद्भुत सिद्ध हुए ज्ञानप्रयोग से । उसे अक्रम मार्ग कहा। अक्रम, अर्थात बिना क्रम के, और क्रम अर्थात सीढ़ी दर सीढ़ी, क्रमानुसार ऊपर चढऩा। अक्रम अर्थात लिफ्ट मार्ग । शॉर्ट कट !

    आपश्री स्वयं प्रत्येक को ‘दादा भगवान कौन ?’ का रहस्य बताते हुए कहते थे कि ‘‘यह दिखाई देनेवाले दादा भगवान नहीं हैं, वे तो ‘ए. एम. पटेल’ हैं। हम ज्ञानी पुरुष हैं, और भीतर प्रकट हुए हैं, वे ‘दादा भगवान’ हैं । दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ हैं । वे आप में भी हैं । सभी में हैं। आपमें अव्यक्त रूप में रहे हुए हैं और ‘यहाँ’ संपूर्ण रूप से व्यक्त हुए हैं । दादा भगवान को मैं भी नमस्कार करता हूँ ।’’

    ‘व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं’, इस सिद्धांत से उन्होंने पूरा जीवन बिताया। जीवन में कभी भी उन्होंने किसी के पास से पैसा नहीं लिया। बल्कि अपने व्यवसाय की अतिरिक्त कमाई से भक्तों को यात्रा करवाते थे।

    परम पूजनीय दादाश्री गाँव-गाँव, देश-विदेश परिभ्रमण करके मुमुक्षुजनों को सत्संग और स्वरूपज्ञान की प्राप्ति करवाते थे। आपश्री ने अपने जीवनकाल में ही पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीन को स्वरूपज्ञान (आत्मज्ञान) प्राप्त करवाने की ज्ञानसिद्धि प्रदान की थी। दादाश्री के देहविलय पश्चात आज भी पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीन गाँव-गाँव, देश-विदेश भ्रमण करके मुमुक्षु जनों को सत्संग और स्वरूपज्ञान की प्राप्ति, निमित्त भाव से करवा रही हैं, जिसका हजारों मुमुक्षु लाभ लेकर धन्यता का अनुभव कर रहे हैं।

    संपादकीय

    सांसारिक दु:ख किसे नहीं है? हर कोई उससे छूटना चाहता है। लेकिन वह छूट नहीं पाता। उससे छूटने का मार्ग क्या है? ज्ञानी पुरूष के मिलते ही सर्व दु:खों से मुक्तिमिलती है। औरों को जो दु:ख देता है, वह स्वयं दु:खी हुए बिना नहीं रहता।

    सर्व दु:खों से मुक्ति कैसे पायी जाये ? सुख-दु:ख मिलने का यथार्थ कारण क्या है ? औरों को सुख देने से सुख मिलता है और दु:ख देने से दु:ख मिलता है। यह सुख-दु:ख प्राप्ति का कुदरती सिद्धांत है ! जिसे यह सिद्धांत संपूर्ण समझ में आ जाता है, वही किसी को बिलकुल दु:ख न देने की जागृति में रह सकता है। फिर मन से भी वह किसी को दु:ख नहीं पहुँचा सकता है। इसके लिए ज्ञानी पुरुष ही यथार्थ क्रियाकारी उपाय बता सकते हैं। परम पूज्य दादा भगवान, जो इस काल के ज्ञानी हुए, उन्होंने छोटा सा, सुंदर और संपूर्ण क्रियाकारी उपाय बताया है कि हररोज सुबह में हृदयपूर्वक पांच बार इतनी प्रार्थना करो कि ‘प्राप्त मन-वचन-काया से इस जगत में किसी भी जीव को किंचित्मात्र भी दु:ख न हो, न हो, न हो।’ इसके बाद आपकी जिम्मेदारी नहीं रहेगी। किसी भी जीव को मारने का हमारा अधिकार बिल्कुल ही नहीं है, क्योंकि हम उसे बना नहीं सकते !

    संसार में दु:ख क्यों है ? उसका रूट कॉज है अज्ञानता! मैं स्वयं कौन हूँ ? मेरा असली स्वरूप क्या है ? यह नहीं जानने से सारे दु:ख सर पर आ गये हैं। वास्तव में ‘आत्मज्ञानियों’ को इस संसार में एक भी दु:ख स्पर्श नहीं होता!

    यदि आपकोसुखी होना हो तो सदा वर्तमान में ही रहना! भूतकाल गया, सो गया। वह वापस कभी नहीं लौटता और भविष्यकाल किसी के हाथ में नहीं है। उसे कोई जानता भी नहीं। तो ‘वर्तमान में रहे सो सदा ज्ञानी’!

    गृहस्थ जीवन में बेटे-बेटियाँ, पत्नी, माँ-बाप, आदि की ओर से हमें जो दु:ख मिलते है, वे हमारे ही मोह के रीएक्शन से मिलते हैं। वीतराग को कुछ भोगना नहीं पड़ता, जीवन में। परम पूज्य दादा भगवान ने एक सुंदर बात बतायी है कि घर एक कंपनी है। इस कंपनी में घर के सारे मेम्बर्स शेयर होल्डर्स हैं। जिसका जितना शेयर, उतना उसके हिस्से में भुगतने का आयेगा। फिर सुख हो या दु:ख! मुनाफा हो या घाटा!

    भगवान ने कहा है कि अंतर सुख और बाह्य सुख का बैलेन्स रखना चाहिये। बाह्य सुख बढ़ेगा तो अंतर सुख कम हो जायेगा और अंतर सुख बढ़ेगा तो बाह्य सुख कम हो जायेगा।

    चिंता होने का कारण क्या है ? अहंकार, कर्तापन! वह जाये तो चिंता जाये।

    कुदरत का दरअसल न्याय क्या है? हम अपनी भूलों से किस तरह से छूटें ? निजदोष क्षय किस तरह से किया जाये ? इन सारे प्रश्रों को पूज्यश्री ने आसानी से हल करने का रास्ता प्रस्तुत पुस्तक में बताया है।

    जय सच्चिदानंद ।

    - डॉ. नीरूबहन अमीन

    निवेदन

    ‘आप्तवाणी’ मुख्य ग्रंथ है, जो परम पूज्य दादा भगवान के श्रीमुख के निकली ‘ओरिजिनल’ वाणी से बना है, उसी गं्रथ को सात भागो में विभाजित करके प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि वाचक को पढऩे में सुविधा रहे।

    ज्ञानी पुरूष की पहचान

    सर्व दु:खों से मुक्ति

    कर्म का विज्ञान

    आत्मबोध

    यथार्थ धर्म

    अंत:करण का स्वरूप

    जगत कर्ता कौन ?

    परम पूज्य दादाश्री हिन्दी में बहुत कम बोलते थे, कभी हिन्दी भाषी लोग आते थे, जो गुजराती नहीं समझ पाते थे, उनके लिए पूज्यश्री हिन्दी बोल लेते थे, उसी वाणी को केसेटों में से ट्रान्स्क्राइब करके यह ‘आप्तवाणी’ ग्रंथ बना है। उसी आप्तवाणी ग्रंथ को फिर से संपादित करके यह सात छोटी पुस्तिकायें बनाई गयी हैं।

    उनकी हिन्दी ‘प्योर’ हिन्दी नहीं है, फिर भी सुननेवाले को उनका अंतर आशय ‘एक्जैक्ट’ समझ में आता है। उनकी वाणी हृदयस्पर्शी, हृदयभेदी होने के कारण, जैसी निकली वैसी ही संकलित करके प्रस्तुत की गई है ताकि सुज्ञ वाचक को उनके ‘डाइरेक्ट’ शब्द पहुँचे। उनकी हिन्दी यानी गुजराती, अंग्रेजी और हिन्दी का मिश्रण। फिर भी सुनने में, पढऩे में बहुत मीठी लगती है, नैचुरल लगती है, जीवंत लगती है। जो शब्द हैं, वह भाषा की दृष्टि से सीधे-सादे हैं किन्तु ‘ज्ञानी पुरुष’ का दर्शन निरावरण है, इसलिए उनके प्रत्येक वचन आशयपूर्ण, मार्मिक, मौलिक और सामनेवाले के व्यू पोइन्ट को एक्जैक्ट समझकर निकलने के कारण श्रोता के ‘दर्शन’ को सुस्पष्ट खोल देते हैं और अधिक ऊंचाई पर ले जाते हैं।

    - डॉ. नीरूबहन अमीन

    सर्व दु:खों से मुक्ति

    व्यवहार की खास दो बातें!

    प्रश्नकर्ता : हरेक आदमी जो जन्म लेता है, उसका व्यवहार में कर्तव्य क्या है?

    दादाश्री : वह जो पेड़ होता है, उसका कर्तव्य क्या है? वह अपने आप ही जमीन में से पानी पीता है और फल दूसरों को देता है। पेड़को फिर आप कुछ बदला देते हैं? ऐसे आप सारा दिन सब को सुख देना, किसी को दु:ख मत देना। फिर आपको सुख मिल जायेगा। और कुछ नहीं, इतना

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