इत्तिफ़ाक
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‘‘एक्सक्यूज मी।’‘
‘‘यस !’‘ बैंक मैनेजर भोले शंकर ने नजर उठाकर उस गोरी चिट्टी, अंग्रेज सी दिखने वाली महिला को देखा, जो कन्धे से बैग लटकाये उसके सामने खड़ी थी।
‘‘कहिए, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं !’‘ उसने पूछा।
‘‘जी, मुझे गोल्ड लोन लेना है।’‘
‘‘हैव दिस सीट प्लीज ! आप बैठ जाइये।’‘ भोले शंकर ने कहा तो महिला उसके सामने वाली सीट पर बैठ गयी। उसने कन्धे से अपना बैग उतारकर मेज पर रख दिया।
भोले शंकर ने गौर से महिला को देखा। वह पचास से ऊपर की लग रही थी। गरदन तक घने, घुंघराले बाल आगे से कुछ पके हुए थे और आंखों के नीचे झुर्रियां पड़ गर्इ थीं।
‘‘किस काम के लिये आपको लोन चाहिए ?’‘ उसने शालीनता से पूछा।
‘‘जी। मैंने एक रीहैबिलिटेशन सेन्टर खोल रखा है, जहां मैं नशे के शिकार, भटके हुए बच्चों को वापस जीवन से जोड़ने की कोशिश करती हूं। जगह थोड़ी कम पड़ने लगी है, तो उसके एक्सटेंशन के लिये लोन चाहिए।’‘
‘‘अच्छी बात है,’‘ भोले शंकर महिला से प्रभावित होकर बोला, ‘‘पर इसके लिये तो सरकारी ऐड भी मिलता है, फिर आप अपने गहनों पर लोन क्यों लेना चाहती हैं ?’‘
‘‘देखिए, यह काम मैं बिल्कुल निजी तौर पर करती हूं, इसलिये सरकारी मदद की अपेक्षा नहीं रखती।’‘
‘‘बहुत बढ़िया।’‘ भोले शंकर के मन में महिला के प्रति काफी सम्मान जगा। उसने तुरत घन्टी बजाकर ऑफिस अटेन्डेन्ट को बुलाया और उसे मैम के लिये एक कप बढ़िया चाय लाने को कहा।
‘‘कितना लोन चाहिए आपको ?’‘ उसने अटेन्डेन्ट के जाने के बाद महिला से पूछा।
‘‘दो लाख रूपये।’‘
‘‘इतनी रकम के लिये आपको कम से कम तीन लाख के जेवर मॉरगेज करने होंगे।’‘ भोले शंकर ने कैलकुलेटर पर हिसाब जोड़कर बताया।
महिला ने चुपचाप बैग से अपना पास बुक और जेवर का बड़ा सा डब्बा निकालकर भोले शंकर की ओर खिसका दिया।
‘‘मेरे ख्याल से ये लोन के लिये पर्याप्त होने चाहिए।’‘ उसने कहा।
भोले शंकर ने एक नजर पासबुक पर डाली, फिर डब्बा खोलकर उसमें रखे जेवरात देखने लगा। नये पुराने सोने और चांदी के जेवर आंखों के सामने कौंध उठे ! उसकी दृष्टि जेवरों का निरीक्षण करती हुर्इ हीरा जड़े उस हार पर टिक गयी जो अकेला ही बाकी जेवरों का मुकाबला करता लग रहा था। भोले शंकर ने हार उठाकर उसे करीब से देखा तो चौंक गया। लगा, कि यह हार उसने पहले भी कहीं देखा है, पर कब, और कहां ? अचानक उसे वह महिला कुछ जानी पहचानी सी लगने लगी। पर, वह इस महिला से पहले कब मिला था ?
उसके माथे पर बल पड़ गये। वह सोच में डूबा हार को घूरता रहा। फिर, कुछ याद आते ही गंभीर हो उठा। उसने हार से दृष्टि हटाकर महिला को देखा जो उत्सुक निगाहों से उसे ही देख रही थी, दृष्टि मिलते ही उसने पूछा, ‘‘क्यों, इतने कम पड़ेंगे ?’‘
‘‘नहीं मैम, यह तो अकेला ही मुझ पर भारी पड़ रहा है।’‘
‘‘मैं समझी नहीं।’‘ महिला हंसकर बोली।
‘‘बरसों पहले आपका यह हार तो चोरी हो गया था न मैम!’‘ उसने वापस हार पर दृष्टि गड़ाते हुए कहा।
एकाएक महिला का चेहरा कुम्हला गया और वहां घबड़ाहट झलकने लगी। उसने अपनी घबड़ाहट को काबू में करते हुए कहा, ‘‘नहीं तो !’‘
Anand Tripathy. Tripathy.
अभी मन नहीं है कुछ बताने का कल मिलते है।
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इत्तिफ़ाक - Anand Tripathy. Tripathy.
‘‘एक्सक्यूज मी।’‘
‘‘यस !’‘ बैंक मैनेजर भोले शंकर ने नजर उठाकर उस गोरी चिट्टी, अंग्रेज सी दिखने वाली महिला को देखा, जो कन्धे से बैग लटकाये उसके सामने खड़ी थी।
‘‘कहिए, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं !’‘ उसने पूछा।
‘‘जी, मुझे गोल्ड लोन लेना है।’‘
‘‘हैव दिस सीट प्लीज ! आप बैठ जाइये।’‘ भोले शंकर ने कहा तो महिला उसके सामने वाली सीट पर बैठ गयी। उसने कन्धे से अपना बैग उतारकर मेज पर रख दिया।
भोले शंकर ने गौर से महिला को देखा। वह पचास से ऊपर की लग रही थी। गरदन तक घने, घुंघराले बाल आगे से कुछ पके हुए थे और आंखों के नीचे झुर्रियां पड़ गर्इ थीं।
‘‘किस काम के लिये आपको लोन चाहिए ?’‘ उसने शालीनता से पूछा।
‘‘जी। मैंने एक रीहैबिलिटेशन सेन्टर खोल रखा है, जहां मैं नशे के शिकार, भटके हुए बच्चों को वापस जीवन से जोड़ने की कोशिश करती हूं। जगह थोड़ी कम पड़ने लगी है, तो उसके एक्सटेंशन के लिये लोन चाहिए।’‘
‘‘अच्छी बात है,’‘ भोले शंकर महिला से प्रभावित होकर बोला, ‘‘पर इसके लिये तो सरकारी ऐड भी मिलता है, फिर आप अपने गहनों पर लोन क्यों लेना चाहती हैं ?’‘
‘‘देखिए, यह काम मैं बिल्कुल निजी तौर पर करती हूं, इसलिये सरकारी मदद की अपेक्षा नहीं रखती।’‘
‘‘बहुत बढ़िया।’‘ भोले शंकर के मन में महिला के प्रति काफी सम्मान जगा। उसने तुरत घन्टी बजाकर ऑफिस अटेन्डेन्ट को बुलाया और उसे मैम के लिये एक कप बढ़िया चाय लाने को कहा।
‘‘कितना लोन चाहिए आपको ?’‘ उसने अटेन्डेन्ट के जाने के बाद महिला से पूछा।
‘‘दो लाख रूपये।’‘
‘‘इतनी रकम के लिये आपको कम से कम तीन लाख के जेवर मॉरगेज करने होंगे।’‘ भोले शंकर ने कैलकुलेटर पर हिसाब जोड़कर बताया।
महिला ने चुपचाप बैग से अपना पास बुक और जेवर का बड़ा सा डब्बा निकालकर भोले शंकर की ओर खिसका दिया।
‘‘मेरे ख्याल से ये लोन के लिये पर्याप्त होने चाहिए।’‘ उसने कहा।
भोले शंकर ने एक नजर पासबुक पर डाली, फिर डब्बा खोलकर उसमें रखे जेवरात देखने लगा। नये पुराने सोने और चांदी के जेवर आंखों के सामने कौंध उठे ! उसकी दृष्टि जेवरों का निरीक्षण करती हुर्इ हीरा जड़े उस हार पर टिक गयी जो अकेला ही बाकी जेवरों का मुकाबला करता लग रहा था। भोले शंकर ने हार उठाकर उसे करीब से देखा तो चौंक गया। लगा, कि यह हार उसने पहले भी कहीं देखा है, पर कब, और कहां ? अचानक उसे वह महिला कुछ जानी पहचानी सी लगने लगी। पर, वह इस महिला से पहले कब मिला था ?
उसके माथे पर बल पड़ गये। वह सोच में डूबा हार को घूरता रहा। फिर, कुछ याद आते ही गंभीर हो उठा। उसने हार से दृष्टि हटाकर महिला को देखा जो उत्सुक निगाहों से उसे ही देख रही थी, दृष्टि मिलते ही उसने पूछा, ‘‘क्योंइतने कम पड़ेंगे ?’‘
‘‘नहीं मैम, यह तो अकेला ही मुझ पर भारी पड़ रहा है।’‘
‘‘मैं समझी नहीं।’‘ महिला हंसकर बोली।
‘‘बरसों पहले आपका यह हार तो चोरी हो गया था न मैम!’‘ उसने वापस हार पर दृष्टि गड़ाते हुए कहा।
एकाएक महिला का चेहरा कुम्हला गया और वहां घबड़ाहट झलकने लगी। उसने अपनी घबड़ाहट को काबू में करते हुए कहा, ‘‘नहीं तो !’‘
‘‘अजीब इत्तिफ़ाक है,’‘ ख्यालों में खोया भोले शंकर जैसे खुद से ही बोलने लगा, ‘‘ बरसों पहले चोरी हुआ हार अब मॉरगेज के लिये आता है, और उसी के पास, जिसने उसे चुराया था। है न कमाल की बात !’‘ उसने गहरी निगाह से महिला को देखा।
मैं, मैं कुछ समझी नहीं। महिला परेशान हो उठी। उसने बैग से अपना रूमाल निकाल लिया और चेहरे पर आये पसीने को साफ करने लगी।
‘‘ठीक से याद कीजिए मैम ! बरसों पहले इसी हार की चोरी के जुर्म में आठ साल का एक बच्चा जेल भी गया था।’‘
‘‘जी ?’‘ महिला के पूरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गयी और चेहरे पर एक खौफ सा बैठ गया। उसे लगा कि मैनेजर ने बरसों से उसके मन में दबी किसी झूठ को कुरेदकर बाहर निकाल दिया हो। वह बेहद आश्चर्य और परेशानी में बोली, ‘‘कौन हैं आप ? और ये सब कैसे जानते हैं !’‘
‘‘मैं वही सख्स हूं मैम, जो इस हार की चोरी के लिये जेल गया था।’‘
‘‘क्या !’‘ महिला का मुंह खुला का खुला रह गया। क्षण भर में ही चेहरे पर कर्इ भाव आये और चले गये। चेहरे से भल भल पसीना निकलने लगा जिसे वह पोछना भूल गयी और चकित निगाहों से सामने बैठे उस सख्स को एकटक देखने लगी, जिससे उसका बरसों पुराना कोर्इ नाता था, ‘‘भोलू !’‘ वह घोर आश्चर्य से बुदबुदायी।
‘‘जी। भोले शंकर, उर्फ भोलू !’‘
और अनायास ही वह महिला स्मृति के महासागर में गोते लगाने लगी। उसका शरीर तो दिल्ली के उस बैंक में था, पर मन कब वहां से उड़कर सैकड़ों मील दूर रामपुर पहुंच गया, उसे पता ही नहीं चला।
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करूणा ने किचेन के सिंक में नाश्ते का डिब्बा धोया ही था कि उसे रमेन्द्र की आवाज सुनायी दी, ‘‘करूणा, जल्दी करो यार ! बैंक के लिये देर हो रही है।’‘
‘‘आ रही हूं बाबा, नाश्ता पैक कर रही हूं।’‘ करूणा ने वहीं से कहा और जल्दी जल्दी रमेन्द्र के लिये नाश्ता पैक करने लगी।
उसका पति रमेन्द्र नगर के सिटी बैंक मे ब्रान्च मैनेजर था। अभी तीन साल पहले ही उसे बैंक की नौकरी मिली थी और यह उसकी पहली पोस्टिंग थी। हालाकि यह छोटा सा शहर करूणा को पसंद नहीं था, किन्तु पहली पोस्टिंग होने के कारण उसने रमेन्द्र से अच्छी जगह के लिये जिद करना उचित नहीं समझा और शादी के एक साल बाद ही रमेन्द्र के साथ रामपुर शिफ्ट हो गयी थी।
वह झटपट नाश्ते का डिब्बा लेकर बेडरूम के पास पहुंची ही थी कि एक बार फिर उसे रमेन्द्र की आवाज सुनायी दी।
‘‘करूणा !’‘
‘‘आ गर्इ बाबा, आ गर्इ।’‘ करूणा ने जल्दबाजी मे कमरे मे प्रवेश किया। उसने टिफिन को टूल पर रखा और रमेन्द्र के पास आकर टार्इ बांधने मे उसकी मदद करने लगी।
रमेन्द्र ने आखिरी बार शीशे मे अपने बाल संवारे, फिर करूणा की ओर हाथ बढ़ाकर बोला, ‘‘मेरी पेन’‘
‘‘देती हूं।’‘ करूणा ने कहा और वह जल्दी जल्दी ड्रेसिंग टेबुल के दराज मे पेन ढ़ूंढ़ने लगी। कल रात घर का हिसाब लिखने के बाद उसने पेन यहीं रखी थी जो जल्दबाजी के कारण उसे मिल नहीं रही थी।
‘‘तुम अपना ब्रीफकेस ठीक कर लो। तब तक मैं पेन ढ़ूंढ़ देती हूं। और हां, टूल पर नाश्ता रखा है।’‘ करूणा थोड़ा परेशान होती हुर्इ बोली।
रमेन्द्र ने टूल पर रखा टिफिन उठाया और ड्राइंगरूम मे चला आया। उसने सेन्टर टेबुल पर रखे ब्रीफकेस मे अपने कागजात चेक किये। फिर, टिफिन को ब्रीफकेस मे डालकर उसे बंद कर दिया।