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३० लाल वस्त्र रचयिता: योहैन ट्विस
३० लाल वस्त्र रचयिता: योहैन ट्विस
३० लाल वस्त्र रचयिता: योहैन ट्विस
Ebook140 pages53 minutes

३० लाल वस्त्र रचयिता: योहैन ट्विस

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About this ebook


उपन्यासकार जेम्स मूर, कैम्बोडिया में अपने लेखन भ्रमण के दौरान, अनायास बाढ़ की त्रासदी से बचाव हेतु, एक वैश्यालय में आश्रय लेता है।
वह और उसका अनुवादक, नाबालिग बच्चीओं पर नृशंसनीय एवं अमानवीय व्यवहार ,अति निकटता से सम्पर्क में आने से देखते हैं।
वहाँ एक आठ वर्षीय बच्ची, जो आलौकिक शक्ति से नवाज़ी है, भी मिलती है।
जेम्स एवं अनुवादक, बालिकाओं को, न ही केवल बाढ़ से सुरक्षित निकालते हैं, अपितु वैश्यालय के भयंकर स्वामी एवं अन्य साथिओं, से भी स्वत्रंत करते है।
उपन्यास की प्रशंसा
तीव्रगामी एवं रोमांचक! अति संस्तुति!!~
रीडर्ज़फेवोरिट.कोम 
Readersfavorite.com 

अति प्रशंसनीय! पढ़ने योग्य!~
सैनफ्रांसिस्को का उपंयासकार रिव्यू
San Francisco Review of Books
प्रत्येक पृष्ठ जिज्ञासा बनाऐ रहता है एवं रोचक पित्रों से परिपूर्ण~
जेन जोन्सन, उपन्यासकार, नाट्य-लेखक

अति कुशलता से निर्मित एवं पढ़ने उल्लहसनीय~
रीडर्ज़फेवोरिट.कोम 
Readersfavorite.com 
इनकी लेखन-शैली आपको आकर्षित एवं ग्रसित रखेगा~
शेरिल लेह
 

Languageहिन्दी
Release dateDec 17, 2017
ISBN9781547510375
३० लाल वस्त्र रचयिता: योहैन ट्विस

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    ३० लाल वस्त्र रचयिता - Johan Twiss

    ३० लाल वस्त्र

    रचयिता:

    योहैन ट्विस 

    ट्विस पब्लिशिंग, कौपीराइट्स २०१७

    रचयिता योहैन ट्विस

    औल राइट्स रिज़र्वड

    आवरण चित्रकार: स्काय यंग

    सम्पादक।          : एड्रियन बर्जर

    इस लेख का कोई भी अंश ,बिना लेखक द्वारा लिखित अनुमति के,किसी भी प्रारूप अथवा संस्करण में प्रयोग की अनुमति नहीं है।यह एक काल्पनिक रचना है।इसके पात्र,नाम, घटनाएं, स्थान, एवं सम्वाद, मात्र लेखक की, कल्पना पर आधारित है।इस कारण,कहीं भी यह मन्न कि वास्तविक है,तो यह मात्र संयोगवश है।

    निशुल्क कहानियां

    आप हमारे अन्य लेख एवं पुस्तकें निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं।आप को एक पैसा भी नहीं देना है।

    निम्नलिखित वेबसाइट पर जाऐं:

    www.johantwiss.com/freestories

    यहाँ पर आपको हमारा पूर्ण लेखन-संसार की लघु कथाऐं,निबंध, उपन्यास, एवं डिजिटल संस्करण मिल जाऐंगे।

    समर्पण

    संसार के किसी भी कोण में,देह-व्यापार से कोई भी पीड़ित मानवजाति के लिए, मैं अत्यंत दुखी एवं जागरूक हूँ।मेरा पूर्ण रूप से समर्थन, प्रार्थना, एवं अथक प्रयास हैं, यह कुरीति समाप्त हो जाए।

    मैं यह लेख उन संस्थाओं एवं व्यक्तिओं को अर्पित करता हूँ,जो इस आधुनिक दास-प्रथा से संघर्षमय हैं।आप का आभार एवं इस पुण्य कार्य में सफलता की मनोकामना करता हूँ।

    Chap 1

    क्या मेरा जन्म दिन  उसको स्मर्ण होगा, वीटा मन ही मन आशा कर रही थी।

    यह जानते हुए, कि जन्म दिन का कोई उपहार नहीं मिलना है और प्रति दिन की भाँति गृहस्ती के कार्य में ही,उसका दिन बीत जाएगा, फिर भी प्रसन्नता से वीटा, मुस्कराहट को रोक न सकी।

    आज मैं आठ की हो गई हूँ!

    एक कमरे की आपनी खोली में, मसालेदार अंडों के नाश्ते की सुगंध का वह आनंद ले रही थी।

    यह सुखद पलों में,माँ के हाथों के भोजन की सुन्हरी किन्तु दुर्लभ स्मृतियों ने,उदास कर के, घेर लिया।

    हैजा की अकाल मृत्यु के कारण वह अपने माता-पिता से,दो वर्ष पूर्व वंचित हो चुकी थी।

    और आज,इस कोमल आयु में वह उनके ओझल होते चेहरों को डूँडती थी। इस हादसे के पश्चात, विवशता के कारण,वह अपने अत्याचारी,शराबी और जुआड़ी मामा के साथ रहने लगी।

    किन्तु यह सब जानते हुए भी, आज उसका जन्मदिन था और वह प्रसन्न थी।

    कुछ आहट पाते ही,उसने देखा, उस दरिद्र खोली की दरी पर सोया हुआ उसका मामा, उठ रहा है।

    प्रातःकाल नींद टूटने पर वह कुछ झुंझलाया हुआ था।

    पृष्ट 1

    ––––––––

    सुप्रभात मामा, वीटा ने धीमे स्वर में कहा।

    उसके दैवी नेत्रों में, मामा को घेरे हुए भूरा रंग का आवरण , दृष्टांत हुआ।

    मामा कुछ हताश और अभी पूर्ण रुप से चैतन्य नहीं था। यह देखकर ,वीटा को संतोष हुआ कि मामा अभी सौम्य मनोस्थिति में था।

    अल्प आयु से ही उसको स्मर्ण था, कि इस तरह के रंगीन आवरण, उसको प्रत्येक जीवित वस्तु पर दृष्टिगोचर होते थे।

    माँ का तेज सूर्य के भाँति पीला, व पिता का धान के खेतों का धानी रंग याद था।

    माँ कहती थी,यह उसकी दैवी शक्ति है,जिस के कारण वह जीवों की दिव्यज्योति देख सकती थी।

    किन्तु वीटा दिव्यज्योति के अर्थ से परे थी।

    उसके लिए तो यह मात्र साधन था, जिस के कारण  प्रत्येक जीव की सत्य यथार्थता प्रकट होती थी।

    मामा आहिस्ता से अँगड़ाई लेता हुआ खड़ा हुआ।

    वह स्टोव पर लम्बे डग लेते हुए पहुँचा, और वीटा के बनाये हुए अंडों में से, एक उठा लिया।

    आज तुम हमारे साथ शहर चल रही हो, उसने आदेश देते हुए कहा। नहा कर तैयार हो जाओ

    जन्मदिन की भीनी आशा बाँधे, वीटा आश्चरचकित रह गई।

    पूर्ण जीवन इस गाँव में पली बडी़ हुई, विटा के लिए, नोम-पेह, कैम्बोडिया की राजधानी, जाना पहली बार होगा।

    वीटा ने मामा को इतना उत्साहित कभी नहीं देखा था।उसके नत्रों में मामा की स्वाभाविक भूरे रंग की दिव्यज्योति, धानी रंग में बदल गई।

    बस की यात्रा लम्बी व आरोचक थी।,किन्तु शहर आते ही चौड़ी पक्की सड़कों, व भवन दिखे।

    पृष्ट 2

    ––––––––

    अपरिचित वातावरण में वह विस्मृत थी।

    शहर की जनसंख्या देख, उसको विचार आया कि यहाँ के लोग मानो ,चीटीयों की बाँम्बी को छेडऩे पर, सब बिल्बिला कर ,भाग रहे हों!

    शहर के पुराने भाग में बस पहुँची, तो मामा ने उतरने का संकेत किया।

    छोटी, सकरी एवं गंदी गलियों में से होते हुए, वह मामा के पीछे चल रही थी।

    पास से गुजरते हुए, प्रत्येक व्यक्ति की दिव्यज्योति, इंद्रधनुष की भाँति~चटकीले रंगों से लेकर गहरे-फीके रंगों तक, परिवर्तित होती थी।

    अचानक एक अपक्षीण हरे दरवाजे पर मामा रुका।

    यहाँ ठहरो,कड़क स्वर में आदेश दिया, मैं अन्दर कुछ सौदा करने जा रहा हूँ।यहाँ से हिलना नहीं

    वीटा ने हामी भरी और धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने लगी।

    लेकिन एक आठ वर्षीय बालिका की जिज्ञासा प्रभावी हो गई और वह अपने माहौल को देख रही थी, कि दो घोंघे पर दृष्टि पड़ी।सूर्य के प्रकाश में वे गुलाबी-रूपहले

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