थोड़ा सा पानी
()
About this ebook
मैं राजेश मेहरा मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हूँ। मैं दिल्ली में रहता हूँ। मुझे लेख, कविताएँ, लघुकथाएँ व कहानियाँ लिखने का शौक है। बचपन से ही मैं किताबों और कहानियों का शौक़ीन रहा हूँ। मेरा मानना है कि आज की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिन्दगी में कहानियों के सपनों में जीने से ही आदमी अपनी कुछ उम्र बढ़ा सकता है।
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
Read more from वर्जिन साहित्यपीठ
एक दिन सभी स्त्रियाँ नग्न हो जाएंगी Rating: 4 out of 5 stars4/5बड़ी उम्र की स्त्रियों का प्रेम Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsप्रेमचंद की 6 कालजयी कहानियाँ (कहानी) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsललका गुलाब Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचिंगारियाँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसब तुम्हारा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsप्रेम प्रसून (काव्य संग्रह) Rating: 5 out of 5 stars5/5श्रीरामचरितमानस: एक वृहद विश्लेषण Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकड़वे सच Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकुछ एहसास लिखे हैं Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsलघुकथा मंजूषा 5 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsभकोल (कहानी) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsटेम्स की सरगम Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबचपन के झरोखे से (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअपनी-अपनी व्यथा (लघुकथा संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsनाही है कोई ठिकाना (कहानी) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsयहाँ सलाह मुफ्त में मिलती है Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअनुभूतियाँ (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsघमंडी सियार व अन्य कहानियाँ (बालकथा संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsलोकतंत्र और रेलगाड़ी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsगुदगुदाते पल (कहानी संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsलघुकथा मंजूषा 4 Rating: 4 out of 5 stars4/5हम एगो छोट पन्ना पर का लिखी? (भोजपुरी काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअलंकरण Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमैंने कहा था Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसबरनाखा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsएक ख्वाब की मौत (कहानी संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsविश्व के त्योहार Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related to थोड़ा सा पानी
Related ebooks
लघुकथा मंजूषा 4 Rating: 4 out of 5 stars4/5ROCHAK KAHANIYAN Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsआत्म तृप्ति Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबच्चों की दुनिया: ज्ञानवर्धक कहानियां (1) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअलग्योझा: मानसरोवर लघु कथा मुंशी प्रेमचंद Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsतुम्हारी कमी है, माँ (उपन्यास) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsपीली साड़ी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsGalatphahami - (गलतफहमी) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPath Ke Davedar (Hindi) Rating: 5 out of 5 stars5/5Anmol Kahaniyan: Short stories to keep children entertained Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 15) Rating: 0 out of 5 stars0 ratings21 Shreshtha Balman ki Kahaniyan: Madhya Pradesh (21 श्रेष्ठ बालमन ... प्रदेश) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 45) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsTitli ki Seekh (21 Prerak Baal Kahaniyan): तितली की सीख (21 प्रेरक बाल कहानियाँ) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 10) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 4) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsपहले पन्ने Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबच्चों की दुनिया: ज्ञानवर्धक कहानियां (2) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDoodh ka Daam Aur Do Bailon ki Katha Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPath Ke Davedar Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 1) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकहानियाँ सबके लिए (भाग 8) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPratigya (Hindi) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsप्रोफेसर साहब: प्रेम, प्रतीक्षा और परीक्षा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsAUR--- KHILE PARIJAT Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsएक तरफा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 17) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकैसे लिखूं मैं अपनी प्रेम कहानी ?: Fiction, #1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsGupt darvaaje ke peeche Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsतनहा सफ़र Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related categories
Reviews for थोड़ा सा पानी
0 ratings0 reviews
Book preview
थोड़ा सा पानी - वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - मार्च 2018
ISBN
कॉपीराइट © 2018
वर्जिन साहित्यपीठ
कॉपीराइट
इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।
थोड़ा सा पानी
(लघुकथा संग्रह)
लघुकथाकार
राजेश मेहरा
वर्जिन साहित्यपीठ
राजेश मेहरा
09810933690
rajeshkumar5970@rediffmail.com
मैं राजेश मेहरा मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हूँ। मैं दिल्ली में रहता हूँ। मुझे लेख, कविताएँ, लघुकथाएँ व कहानियाँ लिखने का शौक है। बचपन से ही मैं किताबों और कहानियों का शौक़ीन रहा हूँ। मेरा मानना है कि आज की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिन्दगी में कहानियों के सपनों में जीने से ही आदमी अपनी कुछ उम्र बढ़ा सकता है।
आदर्श
राजू अपने पापा के साथ संडे बाजार जा रहा था तभी एक कार उनके पास रुकी और उसमें से आवाज आई "अरे ललित कहाँ जा रहे हो, कहो तो में तुम्हे छोड़ दूं? राजू के पापा ने मना कर दिया तो वह कार वाला आदमी उसकी पत्नी और बच्चे कुटिल मुस्कुराहट के साथ आगे बढ़ गए।
राजू ने कहा पापा ये तो राजीव अंकल है जो आपसे नॉकरी मांगने हमारे घर आये थे और उनकी आपने नौकरी लगाई थी।
राजू के पापा ने हां में सिर हिलाया।
ये वहीँ है ना जिन्होंने आपके मालिक से चापलूसी करके उनसे दोस्ती कर ली और आपको भी नॉकरी से निकलवा दिया ताकि आप उनके रास्ते में ना आ पायें।
राजू थोड़ा रुका और फिर बोला पापा देखो आज उनके पास गाडी और सब कुछ है और आपके पास जॉब भी नही है।
राजू के पापा अब लाचारी से राजू की तरफ देख रहे थे।
राजू फिर बोला पापा आप कहते है कि किसी अच्छे इंसान को अपना आदर्श बनाना लेकिन में राजीव अंकल को अपना आदर्श बनाऊँगा।
राजू के पापा बोले लेकिन राजू वो तो अच्छे आदमी नही है उन्होंने धोखेबाजी की है ।
राजू थोड़ा गंभीर होकर बोला पापा कुछ भी हो लेकिन वो हम से आगे तो निकल जाएंगे हर चीज में और हम और भी पीछे रह जाएंगे, इस दुनिया में तरक्की ही आदमी की संपन्नता का पैमाना है चाहे कोई बेईमानी से बने उसे कोई नही देखता।
राजू के पापा की आँखों में नमी थी।
राजू को दी गई उनकी शिक्षा आज राजीव के उदाहरण से हार गई थी।
दूर जाती राजीव की कार धूल उड़ाती हुई जा रही थी और सब धुंधला हो गया। राजू अपने पापा की ऊँगली पकड़ संडे बाजार वाले रास्ते पर हो लिया। राजू का चेहरा कठोर था।
बातचीत
रजत को सीढ़ियां चढ़ते देख बूढी माँ ने कहा 'बेटा अपने पापा से बात कर लिया करो वो बहुत याद करते है तुम्हे, महीनो हो गए तुम्हे देखने को तरसते रहते है' रजत तेजी से चढ़ते हुए थोड़ा रुका और बोला 'ओहो माँ में फ़ोन से बात कर तो लेता हूँ और ऊपर सेकंड फ्लोर पर ही तो हूँ कहीं जा तो नही रहा' इतना कह कर वह ऊपर चढ़ गया। ऐसा नही था कि रजत अपने पापा से बात नही करना चाहता था लेकिन ऑफिस का प्रेशर, बच्चो की परेशानी, वाइफ की अपनी प्रोब्लेम्स को लेकर वह बहुत परेशान रहता था और शायद कहीं ना कहीं वो सोचता था शायद एक दिन सब ठीक हो जायेगा और फिर अपने पापा से वह जी भर कर आमने सामने बैठ कर खूब बात करेगा। अभी रात के 11 बजे थे रजत लैपटॉप पर काम कर रहा था आज उसने फोन पर अपने पापा से भी बात नही की थी। रजत की वाइफ गहरी नींद में सो रही थी। अचानक उसकी माँ की रोने की आवाज आई तो रजत नीचे भागा। जब वो नीचे पहुंच तो उसने देखा की उसके पापा सीढ़ियों पर गिरे पड़े है। रजत की माँ बोली 'मना करने पर भी नही माने और कहने लगे की रजत से में मिलके आता हूँ और गिर गए' रजत ने देखा की उनकी साँसे बन्द हो गई थी और उनकी आँखे रजत की तरफ ही देख रही थी, इस उम्मीद में की रजत अब बात करेगा। शायद अब देर हो चुकी