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थोड़ा सा पानी
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थोड़ा सा पानी
Ebook93 pages53 minutes

थोड़ा सा पानी

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About this ebook

मैं राजेश मेहरा मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हूँ। मैं दिल्ली में रहता हूँ। मुझे लेख, कविताएँ, लघुकथाएँ व कहानियाँ लिखने का शौक है। बचपन से ही मैं किताबों और कहानियों का शौक़ीन रहा हूँ। मेरा मानना है कि आज की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिन्दगी में कहानियों के सपनों में जीने से ही आदमी अपनी कुछ उम्र बढ़ा सकता है।

Languageहिन्दी
Release dateMar 22, 2018
ISBN9781370243228
थोड़ा सा पानी
Author

वर्जिन साहित्यपीठ

सम्पादक के पद पर कार्यरत

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    थोड़ा सा पानी - वर्जिन साहित्यपीठ

    प्रकाशक

    वर्जिन साहित्यपीठ

    78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,

    नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    प्रथम संस्करण - मार्च 2018

    ISBN

    कॉपीराइट © 2018

    वर्जिन साहित्यपीठ

    कॉपीराइट

    इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।

    थोड़ा सा पानी

    (लघुकथा संग्रह)

    लघुकथाकार

    राजेश मेहरा

    वर्जिन साहित्यपीठ

    राजेश मेहरा

    09810933690

    rajeshkumar5970@rediffmail.com

    मैं राजेश मेहरा मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हूँ। मैं दिल्ली में रहता हूँ। मुझे लेख, कविताएँ, लघुकथाएँ व कहानियाँ लिखने का शौक है। बचपन से ही मैं किताबों और कहानियों का शौक़ीन रहा हूँ। मेरा मानना है कि आज की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिन्दगी में कहानियों के सपनों में जीने से ही आदमी अपनी कुछ उम्र बढ़ा सकता है।

    आदर्श

    राजू अपने पापा के साथ संडे बाजार जा रहा था तभी एक कार उनके पास रुकी और उसमें से आवाज आई "अरे ललित कहाँ जा रहे हो, कहो तो में तुम्हे छोड़ दूं?  राजू के पापा ने मना कर दिया तो वह कार वाला आदमी उसकी पत्नी और बच्चे कुटिल मुस्कुराहट के साथ आगे बढ़ गए।

    राजू ने कहा पापा ये तो राजीव अंकल है जो आपसे नॉकरी मांगने हमारे घर आये थे और उनकी आपने नौकरी लगाई थी।

    राजू के पापा ने हां में सिर हिलाया।

    ये वहीँ है ना जिन्होंने आपके मालिक से चापलूसी करके उनसे दोस्ती कर ली और आपको भी नॉकरी से निकलवा दिया ताकि आप उनके रास्ते में ना आ पायें। राजू थोड़ा रुका और फिर बोला पापा देखो आज उनके पास गाडी और सब कुछ है और आपके पास जॉब भी नही है।

    राजू के पापा अब लाचारी से राजू की तरफ देख रहे थे।

    राजू फिर बोला पापा आप कहते है कि किसी अच्छे इंसान को अपना आदर्श बनाना लेकिन में राजीव अंकल को अपना आदर्श बनाऊँगा। 

    राजू के पापा बोले लेकिन राजू वो तो अच्छे आदमी नही है उन्होंने धोखेबाजी की है ।

    राजू थोड़ा गंभीर होकर बोला पापा कुछ भी हो लेकिन वो हम से आगे तो निकल जाएंगे हर चीज में और हम और भी पीछे रह जाएंगे, इस दुनिया में तरक्की ही आदमी की संपन्नता का पैमाना है चाहे कोई बेईमानी से बने उसे कोई नही देखता।

    राजू के पापा की आँखों में नमी थी।

    राजू को दी गई उनकी शिक्षा आज राजीव के उदाहरण से हार गई थी।

    दूर जाती राजीव की कार धूल उड़ाती हुई जा रही थी और सब धुंधला हो गया। राजू अपने पापा की ऊँगली पकड़ संडे बाजार वाले रास्ते पर हो लिया। राजू का चेहरा कठोर था।

    बातचीत

    रजत को सीढ़ियां चढ़ते देख बूढी माँ ने कहा 'बेटा अपने पापा से बात कर लिया करो वो बहुत याद करते है तुम्हे, महीनो हो गए तुम्हे देखने को तरसते रहते है' रजत तेजी से चढ़ते हुए थोड़ा रुका और बोला 'ओहो माँ में फ़ोन से बात कर तो लेता हूँ और ऊपर सेकंड फ्लोर पर ही तो हूँ कहीं जा तो नही रहा' इतना कह कर वह ऊपर चढ़ गया। ऐसा नही था कि रजत अपने पापा से बात नही करना चाहता था लेकिन ऑफिस का प्रेशर, बच्चो की परेशानी, वाइफ की अपनी प्रोब्लेम्स को लेकर वह बहुत परेशान रहता था और शायद कहीं ना कहीं वो सोचता था शायद एक दिन सब ठीक हो जायेगा और फिर अपने पापा से वह जी भर कर आमने सामने बैठ कर खूब बात करेगा। अभी रात के 11 बजे थे रजत लैपटॉप पर काम कर रहा था आज उसने फोन पर अपने पापा से भी बात नही की थी। रजत की वाइफ गहरी नींद में सो रही थी। अचानक उसकी माँ की रोने की आवाज आई तो रजत नीचे भागा। जब वो नीचे पहुंच तो उसने देखा की उसके पापा सीढ़ियों पर गिरे पड़े है। रजत की माँ बोली 'मना करने पर भी नही माने और कहने लगे की रजत से में मिलके आता हूँ और गिर गए' रजत ने देखा की उनकी साँसे बन्द हो गई थी और उनकी आँखे रजत की तरफ ही देख रही थी, इस उम्मीद में की रजत अब बात करेगा। शायद अब देर हो चुकी

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