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भकोल (कहानी)
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Ebook127 pages1 hour

भकोल (कहानी)

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About this ebook

"भकोल" की पत्नी "सौम्या" को नेताइन बनने का शौक चर्राया था। जो नेपाल से सटे नवका गांव की रहने वाली है । समाजिक रूप से पिछड़ी जाति " रेड़ा " की बेटी सौम्या की शादी एक दूसरे समाजिक रूप से पिछड़ी जाति " बहेड़ा " के युवा भकोल से, हो तो गई थी, लेकिन दोनों में कोई जोड़ नही था।
"सौम्या" गोरी, पतली, लंबी और मैट्रिक पास जबकि "भकोल" काला, मोटा, नाटा और अंगूठा छाप। क़िस्मत की मारी सौम्या बेचारी के सपने सारे अधूरे रह गए थे। मैट्रिक की परीक्षा देते समय उसने और आगे पढ़ने के सपने भी देखे थे और पढ़ लिखकर किसी सरकारी बाबू के साथ, सात फेरे लेने के ख्वाब भी संजोए थे। लेकिन क़िस्मत में लिखा था " भकोल " तो सपने तो बिखरने ही थे। उसपर से भकोल बेचारा मंद बुद्धि भी निकला।

"भकोल" की पत्नी "सौम्या" को नेताइन बनने का शौक चर्राया था। जो नेपाल से सटे नवका गांव की रहने वाली है । समाजिक रूप से पिछड़ी जाति " रेड़ा " की बेटी सौम्या की शादी एक दूसरे समाजिक रूप से पिछड़ी जाति " बहेड़ा " के युवा भकोल से, हो तो गई थी, लेकिन दोनों में कोई जोड़ नही था।
"सौम्या" गोरी, पतली, लंबी और मैट्रिक पास जबकि "भकोल" काला, मोटा, नाटा और अंगूठा छाप। क़िस्मत की मारी सौम्या बेचारी के सपने सारे अधूरे रह गए थे। मैट्रिक की परीक्षा देते समय उसने और आगे पढ़ने के सपने भी देखे थे और पढ़ लिखकर किसी सरकारी बाबू के साथ, सात फेरे लेने के ख्वाब भी संजोए थे। लेकिन क़िस्मत में लिखा था " भकोल " तो सपने तो बिखरने ही थे। उसपर से भकोल बेचारा मंद बुद्धि भी

Languageहिन्दी
Release dateMay 9, 2018
ISBN9780463181737
भकोल (कहानी)
Author

वर्जिन साहित्यपीठ

सम्पादक के पद पर कार्यरत

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    भकोल (कहानी) - वर्जिन साहित्यपीठ

    प्रकाशक

    वर्जिन साहित्यपीठ

    78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,

    नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    प्रथम संस्करण - मई 2018

    ISBN

    कॉपीराइट © 2018

    वर्जिन साहित्यपीठ

    कॉपीराइट

    इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।

    भकोल

    (कहानी)

    लेखक

    अब्दुल ग़फ़्फ़ार

    अब्दुल ग़फ़्फ़ार

    9122437788 / 8294789186

    gaffar607@gmail.com

    भकोल की पत्नी सौम्या को नेताइन बनने का शौक चर्राया था। जो नेपाल से सटे नवका गांव की रहने वाली है । समाजिक रूप से पिछड़ी जाति रेड़ा की बेटी सौम्या की शादी एक दूसरे समाजिक रूप से पिछड़ी जाति बहेड़ा के युवा भकोल से, हो तो गई थी, लेकिन दोनों में कोई जोड़ नही था।

    सौम्या गोरी, पतली, लंबी और मैट्रिक पास जबकि भकोल काला, मोटा, नाटा और अंगूठा छाप। क़िस्मत की मारी सौम्या बेचारी के सपने सारे अधूरे रह गए थे। मैट्रिक की परीक्षा देते समय उसने और आगे पढ़ने के सपने भी देखे थे और पढ़ लिखकर किसी सरकारी बाबू के साथ, सात फेरे लेने के ख्वाब भी संजोए थे। लेकिन क़िस्मत में लिखा था भकोल तो सपने तो बिखरने ही थे। उसपर से भकोल बेचारा मंद बुद्धि भी निकला।

    भकोल की मां नही थी। उसके पिता नथुनी ने किसी तरह सौम्या की माई तपेसरी को बहलाकर सौम्या को अपनी बहू बनाने के लिए तैयार कर लिया था। वो बुढ़ापे में अपनी देखभाल करते, या की बुड़बक भकोल की देखभाल करते। सो उन्होंने बड़ी मुशक्कत के बाद तपेसरी को अपनी बेटी देने के लिए तैयार किया था।

    सौम्या जैसी ख़ूबसूरत पत्नी को पाकर भकोल की तो बांछें ही खिल उठी थीं। पूरे साल भर सौम्या, भकोल से मानसिक और शारीरिक संतुलन बनाने के लिए संघर्ष करती रही। आख़िरकार उसने क़िस्मत का लिखा मानकर हथियार डाल दिया और भकोल की दुल्हनिया कहलाने में ख़ुशी महसूस करने लगी।

    इसी बीच मुखिया का चुनाव आ गया और नथुनी के समझाने पर सौम्या चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गई। घर से बाहर निकलते ही गांव के छवारी सौम्या के दीवाने हो गए, जिससे सौम्या की राह आसान हो गई। चुनाव की तारीख नज़दीक आते आते सौम्या काफ़ी आगे निकल चुकी थी।

    इसी बीच उसके प्रतिद्वंद्वी भूतपूर्व मुखिया कामेश्वर महतो ने दोनों प्रमुख जातीयों रेड़ा और बहेड़ा में झगड़ा डाल दिया जिनकी संख्या बहुत अधिक थी। दो दिन के भीतर भीतर सौम्या की सारी बढ़त हार के कगार में तब्दील हो गई।

    तब किसी ने सौम्या को सुमारू के बारे में बताया। सुमारू के हाथ में तीन सौ ठोकुवा वोट थे।

    शराब कारोबारी सुमारू जो कामेश्वर का पूराना दुश्मन था, सौम्या को सशर्त समर्थन देने के लिए तैयार हो गया। शर्त यह थी कि सौम्या को सुमारू की बनकर रहना पड़ेगा। सौम्या ने फिलहाल सुमारू की शर्त मानने में ही अपनी भलाई समझी।

    आखिरकार भकोल की दुल्हनिया सौम्या, मुखिया का चुनाव जीत गई। चुनाव जीतने के बाद पहले महीने में चार बार, सौम्या को सुमारू महतो के दरबार में हाजिरी लगानी पड़ी।

    लेकिन एक ही महीने बाद सौम्या को मुखिया के पावर का एहसास हो गया। एहसास होते ही उसने सुमारू की ग़ुलामी सहने से इन्कार कर दिया। और उसके बाद से सुमारू के दारू के अड्डों पर छापेमारी धड़ाधड़ शुरू हो गई।

    फिर क्या था, गांव गांव तक सौम्या का डंका बजने लगा और उसका अपना दरबार सजने लगा। दो साल बीतते बीतते फूस का घर छत में तब्दील हो गया।

    सौम्या के दरबार का सिपाही बनकर ही बेचारा भकोल खुश था। अब सौम्या को नेताइन बनने का चस्का लग चुका था। वह देर देर रात तक घर आती और भकोल बेचारा तब तक जागकर उसकी बाट जोहता रहता।

    एक दिन शराब माफिया सुमारू की हत्या हो गई। नहर वाली सड़क पर दो मोटरसाइकिल सवारों के पीछे बैठे दो शूटरों ने स्कार्पीयो में बैठे सुमारू को छलनी कर दिया था। पुलिस मामले की तहक़ीक़ात में जुट गई थी।

    नवका गांव के लोगों के बीच ये खुसुर फुसुर जारी थी कि इस हत्या के पीछे मुखियाईन सौम्या का हाथ हो सकता है। ये अफ़वाह इस क़दर तेज़ हुई की पुलिस मुखियाईन सौम्या के पास भी पूछ ताछ करने पहुंच गई। लेकिन पुलिस को फिलहाल सौम्या के यहां से निराशा ही हाथ लगी।

    सौम्या की चर्चा जब लोक एकता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और भूतपूर्व सांसद अनवर अली के पास पहुंची तो उन्हें सौम्या के पीछे एक तूफ़ान का एहसास हुआ। उन्हें अति पिछड़ा वर्ग से एक सुयोग्य महिला कार्यकर्ता के रूप में सौम्या काफ़ी सटीक लगी। उन्होंने सौम्या को अपनी पार्टी का जिला अध्यक्ष बनाने का फ़ैसला किया।

    सौम्या को नेताइन बनने का शौक़ तो था ही उसने भी फ़ौरन जिला अध्यक्ष बनने की स्वीकृति दे दी।

    फिर क्या था, सौम्या एक तो मुखिया ऊपर से लोक एकता पार्टी की जिला अध्यक्ष बनकर पूरे जिला में अपनी धमक का एहसास कराने लगी।

    इन दो सालों में सौम्या एक बेटे की मां भी बन चुकी थी। हालांकि सौम्या के पास अपनी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों से अपने बच्चे को देने के लिए समय कम मिल रहा था लेकिन भकोल अपने बेटे मुन्ना को पाकर बहुत ख़ुश था।

    भकोल अपने बेटे के लिए मां और बाप दोनों का फ़र्ज़ बख़ूबी निभा रहा था। अमूमन मुन्ना रात भर मां सौम्या के आगोश में रहता और दिन भर अपने पिता भकोल की छत्र छाया में रहता।

    दिन में जब सौम्या घर से बाहर रहती तो भकोल ही अपने बच्चे के लिए दूध, दवाई, कपड़े लत्ते का इंतज़ाम किया करता था। यहां तक की मुन्ना के पेशाब पैखाना की सफाई भी भकोल को ख़ुद ही करना पड़ता था।

    भकोल के पिता नथुनी भी अब दिन प्रतिदिन कमज़ोर होते जा रहे थे। उन्होंने अपने मानसिक

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