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नाही है कोई ठिकाना (कहानी)
नाही है कोई ठिकाना (कहानी)
नाही है कोई ठिकाना (कहानी)
Ebook36 pages19 minutes

नाही है कोई ठिकाना (कहानी)

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About this ebook

छोटकू बाबू साहेब कब से चटोरी के बाबा केसर से पता नहीं का खुसर - फुसर कर रहे थे कि चटोरी की माई लाजवंती एकदम बेचैन हुए आंगन से ओसारी और ओसारी से आंगन कर रही थी। लगा कि उसके पेट में मरोड़ होने लगी। चापाकल से टूटहिया प्लास्टिक की बाल्टी में पानी भर कर चली गई, घर के पिछूती!
वहां से आने के बाद भी वह हल्की नहीं हुई। माटी से हाथ मांज और हाथ - पैर धो फिर ओसारी में आई।
देखा, अब छोटकू बाबू साहेब खटिया से उठे हैं और हाथ जोड़कर बोले हैं, ‘‘भैया, हमारे घर में चिराग जलाना अब आपके ही हाथ में है। सही फैसला करिएगा। हमारे बाप - भाई के किये अहसान का बदला समझ के चुका देना।’’

छोटकू बाबू साहेब कब से चटोरी के बाबा केसर से पता नहीं का खुसर - फुसर कर रहे थे कि चटोरी की माई लाजवंती एकदम बेचैन हुए आंगन से ओसारी और ओसारी से आंगन कर रही थी। लगा कि उसके पेट में मरोड़ होने लगी। चापाकल से टूटहिया प्लास्टिक की बाल्टी में पानी भर कर चली गई, घर के पिछूती!
वहां से आने के बाद भी वह हल्की नहीं हुई। माटी से हाथ मांज और हाथ - पैर धो फिर ओसारी में आई।
देखा, अब छोटकू बाबू साहेब खटिया से उठे हैं और हाथ जोड़कर बोले हैं, ‘‘भैया, हमारे घर में चिराग जलाना अब आपके ही हाथ में है। सही फैसला करिएगा। हमारे बाप - भाई के किये अहसान का बदला समझ के चुका देना।’’

Languageहिन्दी
Release dateMay 17, 2018
ISBN9780463441282
नाही है कोई ठिकाना (कहानी)
Author

वर्जिन साहित्यपीठ

सम्पादक के पद पर कार्यरत

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    नाही है कोई ठिकाना (कहानी) - वर्जिन साहित्यपीठ

    प्रकाशक

    वर्जिन साहित्यपीठ

    78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,

    नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    प्रथम संस्करण - मई 2018

    ISBN

    कॉपीराइट © 2018

    वर्जिन साहित्यपीठ

    कॉपीराइट

    इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।

    नाही है कोई ठिकाना

    (कहानी)

    लेखिका

    नीतू सुदीप्ति नित्या

    नीतू सुदीप्ति नित्या

    7050107285, 7256885441

    n।sudipti@gmail।com

    संप्रति: स्वतंत्र लेखन

    संपर्क: श्री भगवान प्रसाद, कोयला दुकान, राजा बाजार, कटेया रोड, बिहिया - 802152, जिला - भोजपुर (बिहार)

    प्रकाशन: राजभाषा विभाग, बिहार सरकार से प्राप्त अनुदान राशि पर ‘छंटते हुए चावल’ (कहानी संग्रह 2017) प्रकाशित, भोजपुरी उपन्यास ‘संवरी’ धारावाहिक रूप में प्रकाशित, राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में हिंदी और भोजपुरी में 150 रचनाएं प्रकाशित।

    हिंदी पत्रिकाएं: प्राची, कथाबिंब, शुभ तारिका, जनपथ, विपाशा, मधुमती, गृहशोभा, मुक्ता, सुमन सौरभ, सरस सलिल, जगमगदीप ज्योति, कथादीप, असली आजादी व रूप की शोभा आदि।

    भोजपुरी पत्रिकाएं: हलो भोजपुरी, अंगना, परास, खोइंछा, परिछन, सुरसती व निर्भिक संदेश आदि।

    सोशल मीडिया: वेब पत्रिकाओं अनुभव, बिहारी धमाका और मैंसेजर आॅफ आर्ट में कुछ रचनाएं प्रकाशित।

    अनुवाद: डॉ लारी आजाद की एक कविता का भोजपुरी अनुवाद। डॉ जयकुमार ‘जलज’ की लघुकथा का

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