स्कूल का दादा (मनोरंजक व शिक्षाप्रद बालकथाएँ)
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इसी पुस्तक से....
“नहीं पिताजी, आज से मेरा जन्मदिन केक से नहीं; बल्कि इन नन्हें पौधों के रोपने से मनेगा।”
“बच्चों! मुझे व इस देश को तुम पर गर्व है। निश्चय ही अपने विद्यालय की भांति ही देश के वातावरण को भी हरा-भरा बनाने में सफल होगे।”
“कभी-कभी प्रार्थना के बाद भारत माता की जय की आवाज सुनकर वह भी अपना हाथ ऊपर कर देता। पर उसकी आवाज सुनायी नहीं पड़ती। वह बोल नहीं पाता था; लेकिन उसकी आंखों में पढ़ने और बच्चों के साथ खेलने की इच्छा अवश्य थी।”
इसी पुस्तक से....
“नहीं पिताजी, आज से मेरा जन्मदिन केक से नहीं; बल्कि इन नन्हें पौधों के रोपने से मनेगा।”
“बच्चों! मुझे व इस देश को तुम पर गर्व है। निश्चय ही अपने विद्यालय की भांति ही देश के वातावरण को भी हरा-भरा बनाने में सफल होगे।”
“कभी-कभी प्रार्थना के बाद भारत माता की जय की आवाज सुनकर वह भी अपना हाथ ऊपर कर देता। पर उसकी आवाज सुनायी नहीं पड़ती। वह बोल नहीं पाता था; लेकिन उसकी आंखों में पढ़ने और बच्चों के साथ खेलने की इच्छा अवश्य थी।”
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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स्कूल का दादा (मनोरंजक व शिक्षाप्रद बालकथाएँ) - वर्जिन साहित्यपीठ
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भाषा: ईबुक हिंदी, इंग्लिश, भोजपुरी, मैथिली इत्यादि रोमन या देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली किसी भी भाषा में प्रकाशित करवाई जा सकती है।
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अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: ललित नारायण मिश्र (वर्जिन साहित्यपीठ) 9868429241
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - मई 2018
ISBN
कॉपीराइट © 2018
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