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प्यार के फूल
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Ebook110 pages57 minutes

प्यार के फूल

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About this ebook

मेरे प्रिय पाठकों का, जिनका दुलार और सहयोग हमेशा मेरे साथ है।
माँ शारदे का, जिनकी कृपा दृष्टि मुझ पर हमेशा बनी रहती है।
वर्जिन साहित्यपीठ का, मेरे कहानी संग्रह को प्रकाशित करने के लिए।
ईश्वर की असीम अनुकम्पा से मेरा पहला कहानी संग्रह आपके समक्ष प्रस्तुत है। भूलबश हुई गलतियों हेतु क्षमा प्रार्थी, एवं आपके सुझावों हेतु प्रतीक्षारत। आप हमें अपने सुझाव 9719469899 पर दे सकते हैं। कहानी संग्रह का लुत्फ़ लीजिये और अपने मित्रों के साथ साझा कीजिये। आशा है मेरी लेखनी आपका भरपूर मनोरंजन करेगी। आपके सुझाव और सहयोगाकांक्षी।

मेरे प्रिय पाठकों का, जिनका दुलार और सहयोग हमेशा मेरे साथ है।
माँ शारदे का, जिनकी कृपा दृष्टि मुझ पर हमेशा बनी रहती है।
वर्जिन साहित्यपीठ का, मेरे कहानी संग्रह को प्रकाशित करने के लिए।
ईश्वर की असीम अनुकम्पा से मेरा पहला कहानी संग्रह आपके समक्ष प्रस्तुत है। भूलबश हुई गलतियों हेतु क्षमा प्रार्थी, एवं आपके सुझावों हेतु प्रतीक्षारत। आप हमें अपने सुझाव 9719469899 पर दे सकते हैं। कहानी संग्रह का लुत्फ़ लीजिये और अपने मित्रों के साथ साझा कीजिये। आशा है मेरी लेखनी आपका भरपूर मनोरंजन करेगी। आपके सुझाव और सहयोगाकांक्षी।

Languageहिन्दी
Release dateMay 30, 2018
ISBN9780463460788
प्यार के फूल
Author

वर्जिन साहित्यपीठ

सम्पादक के पद पर कार्यरत

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    प्यार के फूल - वर्जिन साहित्यपीठ

    लेखक/संपादक मित्रों के लिए सुनहरा अवसर!!!

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    5. ईमेल में इसकी उद्घोषणा करें कि उनकी रचना मौलिक है और किसी भी तरह के कॉपीराइट विवाद के लिए वे जिम्मेवार होंगे।

    रॉयल्टी: रॉयल्टी 70% प्रदान की जाएगी (नोट: पुस्तक की पहली 10 प्रति की बिक्री का लाभ प्रकाशक का होगा। 11वीं प्रति की बिक्री से लेखक और संपादक को रॉयल्टी मिलनी शुरू होगी। बाकि रॉयल्टी का प्रतिशत वही रहेगा अर्थात 70% लेखक का और 30% प्रकाशक का।

    अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: ललित नारायण मिश्र (वर्जिन साहित्यपीठ) 9868429241

    प्रकाशक

    वर्जिन साहित्यपीठ

    78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,

    नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    प्रथम संस्करण - मई 2018

    ISBN

    कॉपीराइट © 2018

    वर्जिन साहित्यपीठ

    कॉपीराइट

    इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।

    प्यार के फूल

    (कहानी संग्रह)

    लेखक

    मनोज कुमार मंजू

    मनोज कुमार "मंजू"

    9719469899

    पिता: श्री छेदालाल "शिक्षक"

    माता: श्रीमती रामा देवी

    पता: ‘अयोध्या-सदन, इकहरा, बरनाहल, मैनपुरी (उप्र)

    समर्पण

    पूज्य पिताजी श्री छेदालाल शिक्षक

    एवं

    माता जी श्रीमती रामा देवी

    के

    चरण-कमलों में समर्पित

    धन्यवाद!

    मेरे प्रिय पाठकों का, जिनका दुलार और सहयोग हमेशा मेरे साथ है।

    माँ शारदे का, जिनकी कृपा दृष्टि मुझ पर हमेशा बनी रहती है।

    वर्जिन साहित्यपीठ का, मेरे कहानी संग्रह को प्रकाशित करने के लिए।

    ईश्वर की असीम अनुकम्पा से मेरा पहला कहानी संग्रह आपके समक्ष प्रस्तुत है। भूलबश हुई गलतियों हेतु क्षमा प्रार्थी, एवं आपके सुझावों हेतु प्रतीक्षारत। आप हमें अपने सुझाव 9719469899 पर दे सकते हैं। कहानी संग्रह का लुत्फ़ लीजिये और अपने मित्रों के साथ साझा कीजिये। आशा है मेरी लेखनी आपका भरपूर मनोरंजन करेगी। आपके सुझाव और सहयोगाकांक्षी।

    मनोज कुमार "मंजू"

    प्रस्तुत कहानियां केवल मेरी कल्पनाएँ मात्र हैं, वास्तविकता से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है। आशा है रचनाएँ आपका मनोरंजन कर सकेंगी...।

    मनोज कुमार मंजू

    भिखारिन

    पार्क में कदम रखते ही मैंने एक सरसरी नजर चारों ओर दौड़ाई। जहाँ तक मैं देख सकता था, मैंने देखा। कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था। वही बच्चों का शोर-गुल, जो कभी तीब्र तो कभी धीमा हो जाता। वही बातचीत की भिनभिनाहट। कुछ बच्चे ‘कैच-कैच’ खेल रहे थे तो कुछ ‘खो-खो’ और ‘छुपा-छुपी’, वहीँ क्रिकेट के शौक़ीन कुछ बच्चे अपना शौक पूरा कर रहे थे। वृद्ध जनों के अपने अलग जमघटे थे। वहीँ कुछ नौजवान जोड़ियाँ भी नजर आ रही थीं, और कुछ महिलाओं की टोलियाँ भी, जो वृद्धावस्था को छू रही थीं।

    चारों तरफ निरीक्षण करने के बाद मैं आगे बढ़ गया। कुछ देर चलने के बाद मैंने खुद को पार्क के एक कोने में पड़ी बेंच के सामने खड़ा पाया, जिस पर जहाँ-तहाँ धूल के कण और कुछ सूखे पत्ते पड़े हुए थे। मैंने झुक कर फूंक-फूंक कर बैंच के एक कोने को कुछ हद तक साफ़ कर लिया था। अब जेब से रूमाल निकाल कर उसे और साफ़ करने की कोशिश कर रहा था, संतुष्ट होने के बाद मैं वहां बैठ गया। एक नजर फिर दौड़ाई उस तरफ, जहाँ बच्चे अपने-अपने खेलों में मग्न थे। फिर कुछ सोचने बाले अंदाज में निश्चल हो गया था मैं।

    अभी पिछले हफ्ते ही तो सामने बाली कॉलोनी में कमरा लिया है किराए पर। कॉलेज भी ज्यादा दूर नहीं है। कॉलोनी के लोग भी अच्छे हैं... और फिर मुझे क्या...? जैसे भी हों... आप भला तो जग भला...। और पता नहीं क्या-क्या सोच जाता मैं...। कि अचानक...

    बाबू जी... एक रुपया मिलेगा...?

    मैंने नजर उठा कर ऊपर देखा। उफ्फ... इतने गंदे कपड़े...। सोचते हुए नजर और ऊपर उठाई तो फिर देखता ही रहा था मैं कई क्षण।

    इकहरा बदन, गोल चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें, जिनमें अथाह सूनापन झलक रहा था, सुतवां नाक और पतले होंठ...। जितना सुन्दर चेहरा, उससे कहीं ज्यादा मायूसी छाई हुई थी वहां। कपड़े ऐसे जिन्हें

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