कटघरे में राम
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About this ebook
ललित कुमार मिश्र
साहित्यिक उपनाम
विदेह निर्मोही, सोनीललित, प्रकृति नवरंग
9868429241 sonylalit@gmail.com
जन्मस्थान: बिहार
जन्मतिथि: 16 मार्च 1976
शिक्षा: स्नातक, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
विधाएं: कविता, लघुकथा
ललित कुमार मिश्र
साहित्यिक उपनाम
विदेह निर्मोही, सोनीललित, प्रकृति नवरंग
9868429241 sonylalit@gmail.com
जन्मस्थान: बिहार
जन्मतिथि: 16 मार्च 1976
शिक्षा: स्नातक, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
विधाएं: कविता, लघुकथा
ललित कुमार मिश्र
साहित्यिक उपनाम
विदेह निर्मोही, सोनीललित, प्रकृति नवरंग
9868429241 sonylalit@gmail.com
जन्मस्थान: बिहार
जन्मतिथि: 16 मार्च 1976
शिक्षा: स्नातक, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
विधाएं: कविता, लघुकथा
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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Book preview
कटघरे में राम - वर्जिन साहित्यपीठ
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भाषा: ईबुक हिंदी, इंग्लिश, भोजपुरी, मैथिली इत्यादि रोमन या देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली किसी भी भाषा में प्रकाशित करवाई जा सकती है।
ईबुक गूगल बुक, गूगल प्ले स्टोर और अमेज़न में प्रकाशित की जाएगी। पाण्डुलिपि भेजने से पूर्व निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान दें:
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रॉयल्टी: रॉयल्टी 70% प्रदान की जाएगी (नोट: पुस्तक की पहली 10 प्रति की बिक्री का लाभ प्रकाशक का होगा। 11वीं प्रति की बिक्री से लेखक और संपादक को रॉयल्टी मिलनी शुरू होगी। बाकि रॉयल्टी का प्रतिशत वही रहेगा अर्थात 70% लेखक का और 30% प्रकाशक का।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: ललित नारायण मिश्र (वर्जिन साहित्यपीठ) 9868429241
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - मई 2018
ISBN
कॉपीराइट © 2018
वर्जिन साहित्यपीठ
कॉपीराइट
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कटघरे में राम
(लघुकथा संग्रह)
ललित कुमार मिश्र
ललित कुमार मिश्र
साहित्यिक उपनाम
विदेह निर्मोही, सोनीललित, प्रकृति नवरंग
9868429241 sonylalit@gmail.com
जन्मस्थान: बिहार
जन्मतिथि: 16 मार्च 1976
शिक्षा: स्नातक, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
विधाएं: कविता, लघुकथा
समर्पण
स्वर्गीय श्री ताराकांत मिश्र
श्रीमती मंजुला मिश्र
सोनी मिश्र
उत्कर्ष मिश्र
बचपना
सोनू ने चॉकलेट मांगी तो माँ फ्रीज़ से बड़ा चॉकलेट निकालकर ले आई और उसे तोड़कर एक छोटा सा हिस्सा उसे दे दिया। सोनू उसे खाने के बाद उँगलियाँ चाट ही रहा था कि उसकी नज़र कामवाली के बेटे कालू पर पड़ी। वह एकटक उसकी उँगलियों पर नज़र रखे हुए था। सोनू की उँगलियों के साथ-साथ कालू की ऑंखें भी नर्तन कर रही थीं। सोनू ने माँ से उसे भी चॉकलेट का एक छोटा सा टुकड़ा देने को कहा तो माँ भड़क गई,
तुझे पता भी है, कितने की चॉकलेट है ये.....पूरे डेढ़ सौ की।
पर माँ.....
पर वर कुछ नहीं। तुझे और चाहिए तो ये ले।
माँ उसे और चॉकलेट देने लगी तो उसका एक टुकड़ा फर्श पर गिर गया। सोनू ने उसे झट से उठा लिया और खाने के लिए हाथ मुंह के करीब लाया ही था कि माँ ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली, ये क्या कर रहा है। तुझे बताया था न, नीचे गिरी चीज नहीं खाते।
माँ ने वह टुकड़ा उससे लेकर कालू को दे दिया।
अगले दिन सोनू का जन्मदिन था। माँ उसके लिए गिफ्ट में दो फैंसी शर्ट लाई थी। सोनू बहुत खुश था। वह जब शर्ट पहनकर देख रहा था तो उसकी नज़र अचानक कालू पर पड़ी। फटी कमीज से उसका बदन जैसे उसी की ओर ताक रहा था। थोड़ी देर मौन रहने के बाद वह माँ की ओर देखने लगा। माँ भी उसे देख मुस्कुरा दी। तभी उसने हाथ में ली शर्ट नीचे गिरा दी और फिर तुरंत उसे उठाकर कालू की ओर बढ़ गया।
जलेबी
ध्रुव ऑफिस से घर के लिए निकला ही था कि जलेबी देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। उसने तुरंत पर्स टटोला। पर्स में मात्र दस रूपए ही थे। पहले तो वह थोडा मायूस हुआ फिर संतोषी बन उतने की ही जलेबी देने के लिए कहा, भाई जलेबी लाल होने पर ही निकालना, बिलकुल कड़क और हां पतली बनाना।
चासनी में डूबती हुई जलेबियों को देखकर उसके बचपन की मधुर स्मृति उभर आई। जब वह पिताजी के साथ मेले में जाया करता था तो जलेबी देखते ही इमरजेंसी ब्रेक लगा देता था। पिताजी अगर आनाकानी करते तो वह खड़े खड़े हाथ पैर पटक अद्भुत नृत्य करने लगता। इसपर भी यदि बात नहीं बनती तो वह उनका पैर पकड़ पोल डांस करने लगता।
इसी बीच जलेबी वाले ने उसकी तन्द्रा को तोड़ते हुए जलेबी उसकी ओर बढ़ा दी। ध्रुव ने गरमागरम जलेबी का एक छोटा सा टुकड़ा उठाया और खाने के लिए मुंह खोला ही था कि उसे गोलू का ध्यान आया। गोलू और उसमे एकमात्र यही तो समानता थी कि दोनों जलेबी के दीवाने थे। पिछले सप्ताह जब वह आधा किलो जलेबी घर लेकर गया था तो उसने हंसी में ही कह दिया था कि अगर गोलू पांच मिनट में आधी जलेबी निपटा देगा तो बाकि की जलेबी भी उसे ही मिलेगी। बस फिर क्या था, गोलू ने जी जान लगा दी थी।