ख़लील जिब्रान की कहानियां
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१० अप्रैल, १९३१, के दिन सिर्फ अड़तालीस बरस की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी. उनको कलेजे में रोग लग गया था और टी बी भी हो गयी थी. उनकी मृत्यु न्यूयोर्क में हुई थी. उनकी मृत्यु के बाद "द न्यूयोर्क सन" ने लिखा, "एक मसीहा मर गया है." न्यूयोर्क शहर के लोगों ने दो दिन तक शोक मनाया.
उनकी अंतिम इच्छा थी के उनको लेबनान में दफ़न किया जाए. मैरी हास्केल और मार्याना १९३२ में लेबनान गयी जहाँ उन्होंने जिब्रान को मार्स सर्किस मोनेस्ट्री में दफनाया. तब से उस स्थान को जिब्रान संग्रहालय के नाम से जाना जाता है.
लेबनान में उनके नाम से बहुत सी शिक्षा संस्थाएं, सार्वजानिक स्मारक, और सड़कें हैं. १९७१ में लेबनान सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया. इसी तरह अमेरिका में भी उन्हें सम्मान में बहुत से पुरूस्कार स्थापित किये गए. आज भी लोग खलील जिब्रान को महानतम लेखकों और कवियों में गिनते हैं.
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ख़लील जिब्रान: परिचय
सागर-कन्याएँ
मुर्दों का शहर
अपराधी
कवि की मौत ही उसका जीवन है
विधवा की लोरी
महल और झोंपड़ी
रचना
अलमस्त
पारखी
विद्वान और कवि
साम्राज्य
युद्ध और छोटे देश
आलोचक
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दीवार के इधर-उधर
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ख़लील जिब्रान: परिचय
खलील जिब्रान एक लेबनानी चित्रकार, कवि, निबंधकार, कहानीकार, और दर्शनशास्त्री थे. उनका जन्म लेबनान के एक सुदूर गाँव में हुआ था. ये उनकी नियति में ही लिखा था के उनको अपना अधिकांशतः जीवन अपनी मातृभूमि से दूर बिताना पड़ा था.
जब वो बारह बरस के थे, उनकी माँ उनको लेकर अमेरिका चली गयी जहां जिब्रान की औचारिक शिक्षा शुरू हुई. कुछ ही समय में एक मशहूर कलाकार और फोटोग्राफर फ्रेड हॉलैंड डे ने जिब्रान की प्रतिभा को पहचान लिया. और जिब्रान को अपने संरक्षण में ले लिया. जिब्रान उनसे चित्रकारी सीखने लगे.
जब जिब्रान की माँ को ये एहसास हुआ के जिब्रान पर पश्चिमी सभ्यता का रंग चढ़ने लगा था, उन्होंने जिब्रान को वापिस बेरूत भेज दिया ताकि वो अपनी संस्कृति के बारे में जान सके. जब जिब्रान वापिस अमेरिका आये, उन्होंने चित्रकारी फिर से शुरू कर दी.
इक्कीस वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली चित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया. साथ ही साथ उन्होंने पहले अरबी भाषा में लिखना शुरू कर दिया. बाद में वो अंग्रेजी में लिखने लगे. उनकी लिखे में दो संस्कृतियों का मिलन होता था और यही चीज़ उनको बहुत प्रसिद्द बना गयी.
हालाँकि उनको एक चित्रकार से ज्यादा एक लेखक के रूप में जाना जाता है, पर उन्होंने अपने जीवन काल में सात सौ से भी अधिक चित्र बनाये थे. अपना अधिकांश जीवन अमेरिका में बिताने के बावजूद भी वो हमेशा लेबनानी नागरिक ही रहे. अपनी मात्र भूमि के प्रति उनका बहुत प्रेम था.
बाल्यकाल और प्रारंभिक जीवन
जन्म के समय उनका पूरा नाम जिब्रान खलील जिब्रान था. उनका जन्म ६ जनवरी, १८८३ में लेबनान के बशररी नाम के स्थान पर हुआ था. उनके माता पिता मैरोनाइट क्रिस्चियन थे. उनके जन्म के समय लेबनान तुर्की साम्राज्य का हिस्सा होते हुए भी कुछ हद तक स्वतंत्र था.
उनके पिता खलील जिब्रान साद योसेफ जिब्रान अपने चाचा की दवाइयों की दुकान पर एक क्लार्क के रूप में काम करते थे, परन्तु जब जुवा खेलने के कारण उनके सर पर बहुत ऋण चढ़ गया, उनको अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा. बाद में स्थानीय प्रशासन ने उनको एक रक्षक के रूप में रख लिया क्योंकि वो शारीरिक रूप से बहुत शक्तिशाली थे.
खलील जिब्रान की माँ कमीला खलील के पिता की पत्नी होने से पहले दो और विवाह कर चुकी थी. खलील के पिता खलील की माँ के तीसरे पति थे. उनकी माँ का उनकी पहली शादी से पीटर नाम का एक बेटा था. वो खलील से छे साल बड़ा था. वो बहुत ही परिश्रमी था और परिवार को पूरी तरह से समर्पित था.
खलील जिब्रान की दो छोटी बहनें, मरियना और सुल्ताना, थी. कदिश की घाटी में रहते हुए उनके जीवन में सुख सुविधाएं तो बस नाम मात्रा की ही थी. खलील लेबनान में कभी भी स्कूल नहीं गए, परन्तु घर पर आने वाले पादरियों ने उनको अरबी और बाइबिल पढ़ना सिखाया था.
१८९१ में कुछ गड़बबड़ी के कारण खलील के पिता को जेल भेज दिया गया और उनकी सारी संपत्ति सरकार ने अपने कब्ज़े में ले ली. अपना घर छिन जाने के बाद, पूरा परिवार कुछ दिनों तक अपने रिश्तेदारों के साथ रहे, और फिर वो अमेरिका चले गए. खलील की माँ का भाई पहले ही अमेरिका जा चुका था.
उनके पिता के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के कारण पूरा परिवार ही अलग थलग पड़ गया था. पीटर तो बहुत ही अकेला हो गया था. खलील के पिता को १८९४ में जेल से छोड़ दिया गया परन्तु परिवार अमेरिका चला गया और खलील के पिता को अकेले ही लेबनान में रहना पड़ा. २५ जून, १८९५ को वो अमेरिका चले गए.
अमेरिका में वो अपने रिश्तेदारों के साथ रहने लगे. वो लोग साउथ बोस्टन में रहने लगे. पीटर ने परिवार का जिम्मा अपने कन्धों पर उठा लिया. वो काम करके पैसे कमाने लगा. खलील जिब्रान की माँ घर घर जाकर लेस बेचने लगी. बाद में उन्होंने एक सूखे मेवों की दुकान खोल ली.
बोस्टन में बारह वर्ष की उम्र में खलील जिब्रान पहली बार स्कूल गए. उन्होंने क्विंसी स्कूल में पढ़ना शुरू कर दिया. उनके नाम को छोटा करके खलील जिब्रान कर दिया
स्कूल में उनको अन्य विदेशी छात्रों के साथ एक विशेष कक्षा में रख दिया गया. पूरा जोर उनको अंग्रेजी भाषा सिखाने पर दिया जाता था. साथ ही साथ जिब्रान ने डेनिसन हाउस सोशल सेण्टर में भी जाना शुरू कर दिया. वो एक कला विद्यालय था जो पास में ही एक घर में