कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 43)
By Raja Sharma
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विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.
इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की तैंतालीसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.
कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.
बहुत धन्यवाद
राजा शर्मा
Raja Sharma
Raja Sharma is a retired college lecturer.He has taught English Literature to University students for more than two decades.His students are scattered all over the world, and it is noticeable that he is in contact with more than ninety thousand of his students.
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कथा सागर - Raja Sharma
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Copyright
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 43)
राजा शर्मा
Copyright@2018 राजा शर्मा Raja Sharma
Smashwords Edition
All rights reserved
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 43)
Copyright
दो शब्द
भगवान् को चिट्ठी Bhagwaan Ko Chitthi
मंत्रिपद ठुकरा दिया Mantripad Thukra Diya
राजा, तुम सिपाही बन जाओ! Raja, Tum Sipahi Ban Jao!
उत्तर नहीं
है Uttar Nahi
Hai
नौकर भी इंसान हैं Naukar Bhi Insaan Hain
प्यार पैसे से ऊपर है Pyar Paise Se Upar Hai
आँखों से पढ़ लेना Ankhon Se Padh Lena
तीन प्रश्न Teen Prashan
कानून के सामने Kanoon Ke Saamney
चिड़िया और फूल Chidiya Aur Phool
सम्राट का मुंडन करो Samrat Ka Mundan Karo
इस तरह प्राप्त हुआ ज्ञान Is Tarh Praapt Hua Gyan
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मेरी भाषा तेरी भाषा Meri Bhasha Teri Bhasha
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दो शब्द
विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.
इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की तैंतालीसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.
कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.
बहुत धन्यवाद
राजा शर्मा
भगवान् को चिट्ठी Bhagwaan Ko Chitthi
घाटी की एक छोटी सी पहाड़ी की चोटी पर वही एक घर था. उस ऊंचाई से फसल से भरे हुए खेत के पास से होकर जाती हुई नदी दिखती थी.
परन्तु जमीन को वर्षा का बहुत ही बेसब्री से इंतजार था. कम से कम एक बौछार तो हो ही जानी चाहिए थी.
लेंचो ने पूरे दिन आकाश की तरफ देखने के सिवा अपने खेत में कुछ भी नहीं किया था. उसने कहा, अब तो सच में ही पानी पड़ेगा.
उसकी पत्नी खाना बनाते बनाते बोली, हाँ, अगर भगवान् ने चाहा तो ऐसा ही होगा.
उनके बड़े बेटे खेत में काम कर रहे थे और छोटे बेटे घर के पास ही खेल रहे थे. उसकी पत्नी ने आवाज़ देकर कहा, आ जाओ, खाना तैयार है!
खाना खाने के दौरान, जैसे के लेंचो ने भविष्यवाणी की थी, वर्षा की मोटी मोटी बूँदें गिरने लगी. उत्तर पश्चिम में बहुत विकराल बादल प्रकट हो गए थे.
हवा ताज़ा और मधुर हो गयी थी. लेंचो उठकर बाहर जाकर उस बदले मौसम का आनंद लेने लगा.
जब वो वापिस घर में आया, वो जोर से बोला, "ये वर्षा की बूँदें नहीं हैं, नए सिक्के हैं! बड़ी बूँदें दस दस सेंटावो के सिक्के हैं और छोटी बूँदें पांच पांच सेंटावो के सिक्के हैं. (मेक्सिको की पैसे की एक इकाई को सेंटावो कहते हैं.)
अपने मकई के खेत और मटरों के फूलों को बारिश में भीगते हुए देखकर उसको एक असीमित संतोष का आभास हुआ. अचानक बहुत तेज तूफ़ान शुरू हो गया और बड़े बड़े ओले गिरने लगे.
वो बड़े बड़े ओले वास्तव में चांदी के सिक्के से लग रहे थे. उनके बच्चे बाहर बारिश में आकर ओले इकट्ठे करने लगे.
लेंचो ने अचानक भयभीत होते हुए कहा, ये तो अब बहुत ही खराब हो रहा है. मैं आशा करता हूँ के ओलावृष्टि जल्दी ही रुक जाएगी.
लेकिन ओलावृष्टि रुकी नहीं. एक घंटे तक ओले गिरते रहे. उनके घर, बगीचे, पहाड़, मकई के खेत, और पूरी घाटी ही ओलों से भर गयी थी. सब तरफ सफ़ेद सफ़ेद ओले ही दिख रहे थे.
पेड़ों पर अब एक भी पत्ती नहीं दिख रही थी. मटर की फसल के सब फूल गायब हो चुके थे. लेंचो की तो आत्मा ही दुःख से भर गयी.
जब तूफ़ान समाप्त हुआ, वो अपने खेत के बीचो बीच अपने बेटों के साथ खड़ा था. उसने अपने बेटों से कहा, "अगर टिड्डियों का हमला भी हुआ होता तो इतना नुक्सान तो नहीं होता.
इन ओलों ने तो कुछ भी बाकी नहीं छोड़ा है. सब बर्बाद हो गया है. इस बरस हमारे पास ना तो मकई होगी और ना मटर."
वो रात उन सबके लिए दुःख भरी थी. वो दुःख से बोला, हमारी सारी मेहनत बर्बाद हो गयी! अब कोई भी हमारी मदद नहीं कर सकेगा! इस बरस हमको भूख का सामना करना पड़ेगा!
फिर भी पहाड़ के ऊपर उस छोटे से घर में अभी भी एक आशा बाकि थी: भगवान् के द्वारा सहयोग की आशा.
लेंचो ने कहा, इतने विचलित होने की जरूरत नहीं है भले ही ऐसा लग रहा है के सब बर्बाद हो गया है. याद रखो, भूख से कोई नहीं मरता है! कहते हैं न भगवान् सबका पेट भरते हैं!
पूरी रात लेंचो उस एक आशा के बारे में ही सोचता रहा. उसको बचपन से ही सिखाया गया था के भगवान् सबपर अपनी निगाह रखते हैं.
लेंचो अपने खेत पर बहुत ही परिश्रम करता था.