छोटी कहानियाँ बड़ों के लिए
By Arshad Khan
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छोटी कहानियाँ बड़ों के लिए
किस्सागोई साहित्य की एक बहुत ही प्राचीन और महत्वपूर्ण विधा है| किस्सागोई शायद उस ज़माने से हमारे बीच है जब किताबे थी ही नहीं| छोटी- छोटी कहानियो के माध्यम से कोई बात कहना ज्यादा आसान और जल्दी समझ आने वाला तरीका है| इस किताब में छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से जीवन को बेहतर बनाने के कुछ मंत्र बताये गए है| यह किताब एक प्रयास है,एक कोशिश है आपके जीवन को सार्थक दिशा में बदलने की| आज आम आदमी परेशान है, सब कुछ होते हुए भी परेशान है| आदिम मानव जंगल में रहता था, सुख-सुविधा के सब साधनों से दूर था |गर्मी,ठण्ड और बरसात का सामना करता था | जीवन एक कठिन संघर्ष था,लेकिन वो खुश था |शायद ही उस ज़माने में डिप्रेशन की समस्या थी | आज आम आदमी परेशान है, सब कुछ होते हुए भी परेशान है| आज हमारे पास सुख- सुविधा के सारे साधन है लेकिन हम दुखी है क्यों? हम हमारे दुःख के कई कारण खोज लेते है जैसे भाई का साथ न देना,बीवी का धोखा देना, करियर में असफलता या अन्य कोई यह तो उदाहरण मात्र है| लेकिन गौर से देखेंगे तो हम पाएंगे की हमारे दुःख का कारण कोई और नहीं हम खुद ही है |भगवान् ने तो हमें इंसान बनाया था और इंसान में कई सारी विशेष योग्यताए होती है लेकिन हमने हमारी उन्ही योग्यताओ को कहीं दफ़न कर दिया है और इसीलिए हम परेशान है|अगर हम मनुष्य बन जायेंगे तो हमारी समस्याएं खुद-ब-खुद ख़त्म हो जाएँगी| प्रकृति ने हमें कई सारे अच्छे गुणों के साथ उतारा था और इसी वजह से एक आन्तरिक संघर्ष हमारे मन में सदा चलता रहता है जो हमें खुश नहीं रहने देता| भौतिक सुख-सुविधा के साधन कभी भी हमें आन्तरिक ख़ुशी नहीं दे सकते| ख़ुशी एक अद्भुत एहसास होता है जो की अन्दर से ही आता है यह किताब हमें सिखाती है की इसके लिए हमें क्या करना होगा |हमारा आन्तरिक संघर्ष हमें सुख से नही रहने देता क्योकि हम सब अच्छाइयों से भरे हुए है लेकिन वो कही दब सी गयी है, नतीजा दुःख,तकलीफ और परेशानियाँ| यह किताब आपके इन्ही गुणों को बाहर निकालने का एक प्रयास है| एक दुआ,एक प्रार्थना भगवान् से, अल्लाह से , हमे कुछ बना–न–बना एक अच्छा इन्सान जरुर बना दे हमारी सारी तकलीफे खुद–ब–खुद ख़त्म हो जाएँगी |
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छोटी कहानियाँ बड़ों के लिए - Arshad Khan
छोटी कहानियाँ बड़ों के लिए
किस्सागोई साहित्य की एक बहुत ही प्राचीन और महत्वपूर्ण विधा है| किस्सागोई शायद उस ज़माने से हमारे बीच है जब किताबे थी ही नहीं| छोटी- छोटी कहानियो के माध्यम से कोई बात कहना ज्यादा आसान और जल्दी समझ आने वाला तरीका है| इस किताब में छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से जीवन को बेहतर बनाने के कुछ मंत्र बताये गए है| यह किताब एक प्रयास है,एक कोशिश है आपके जीवन को सार्थक दिशा में बदलने की| आज आम आदमी परेशान है, सब कुछ होते हुए भी परेशान है| आदिम मानव जंगल में रहता था, सुख-सुविधा के सब साधनों से दूर था |गर्मी,ठण्ड और बरसात का सामना करता था | जीवन एक कठिन संघर्ष था,लेकिन वो खुश था |शायद ही उस ज़माने में डिप्रेशन की समस्या थी | आज आम आदमी परेशान है, सब कुछ होते हुए भी परेशान है| आज हमारे पास सुख- सुविधा के सारे साधन है लेकिन हम दुखी है क्यों? हम हमारे दुःख के कई कारण खोज लेते है जैसे भाई का साथ न देना,बीवी का धोखा देना, करियर में असफलता या अन्य कोई यह तो उदाहरण मात्र है| लेकिन गौर से देखेंगे तो हम पाएंगे की हमारे दुःख का कारण कोई और नहीं हम खुद ही है |भगवान् ने तो हमें इंसान बनाया था और इंसान में कई सारी विशेष योग्यताए होती है लेकिन हमने हमारी उन्ही योग्यताओ को कहीं दफ़न कर दिया है और इसीलिए हम परेशान है|अगर हम मनुष्य बन जायेंगे तो हमारी समस्याएं खुद-ब-खुद ख़त्म हो जाएँगी| प्रकृति ने हमें कई सारे अच्छे गुणों के साथ उतारा था और इसी वजह से एक आन्तरिक संघर्ष हमारे मन में सदा चलता रहता है जो हमें खुश नहीं रहने देता| भौतिक सुख-सुविधा के साधन कभी भी हमें आन्तरिक ख़ुशी नहीं दे सकते| ख़ुशी एक अद्भुत एहसास होता है जो की अन्दर से ही आता है यह किताब हमें सिखाती है की इसके लिए हमें क्या करना होगा |हमारा आन्तरिक संघर्ष हमें सुख से नही रहने देता क्योकि हम सब अच्छाइयों से भरे हुए है लेकिन वो कही दब सी गयी है, नतीजा दुःख,तकलीफ और परेशानियाँ| यह किताब आपके इन्ही गुणों को बाहर निकालने का एक प्रयास है| एक दुआ,एक प्रार्थना भगवान् से, अल्लाह से , हमे कुछ बना–न–बना एक अच्छा इन्सान जरुर बना दे हमारी सारी तकलीफे खुद–ब–खुद ख़त्म हो जाएँगी |
अरशद खान
१: माता-पिता की सेवा
किसी भी शख्स के जीवन का सबसे पहला और परम कर्त्तव्य माता- पिता की सेवा ही होना चाहिए।एक छोटी सी कहानी यहॉ प्रासंगिक है । तीन दोस्त थे राजू ,विक्रम और समीर।आयु थी करीब 25-26 वर्ष | मई की भीषण गर्मी की दोपहर में बाजार से वापस आ रहे थे। राजू के घर के सामने आकर वे धूप में खडे हो गए और बाते करने लगे। राजू के पिता ने जब यह देखा तो उनसे कहा कि बेटा अंदर आ जाओ बाहर तेज धूप है। राजू ने उनसे कहा आ रहे है। लगभग 15 मिनिट गुजर गए पिताजी ने फिर कहा बेटा अंदर आ जाओ राजू ने फिर कहा हॉ आ रहे है। इस तरह आधा घंटे से अधिक समय बीत गया लेकिन राजू नहीं आया। पिताजी ने फिर परेशान होकर कहा बेटा अंदर आ जाओ। अब राजू को गुस्सा आ गया उसने जोर से कहा एक बार कह दिया न आ