लघुकथा मंजूषा 3
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‘लघुकथा मंजूषा’ शृंखला की तीसरी पुस्तक लघुकथा मंजूषा-3 नए प्रयोग के साथ प्रस्तुत की जा रही है। इस प्रयोग के तहत इस लघुकथा संग्रहालय हेतु छः संपादकों का चयन किया गया है।
इस संग्रहालय के दो भाग हैं। दोनों भागों में तीन-तीन संपादकों हेतु स्थान सुनिश्चित किया गया है।
इस लघुकथा संग्रहालय में सभी संपादकों के आलेख, उनकी स्वरचित लघुकथाएँ और उनके द्वारा चयनित अन्य लघुकथाकार मित्रों की लघुकथाएँ प्रदर्शित की गई हैं।
‘लघुकथा मंजूषा’ शृंखला की तीसरी पुस्तक लघुकथा मंजूषा-3 नए प्रयोग के साथ प्रस्तुत की जा रही है। इस प्रयोग के तहत इस लघुकथा संग्रहालय हेतु छः संपादकों का चयन किया गया है।
इस संग्रहालय के दो भाग हैं। दोनों भागों में तीन-तीन संपादकों हेतु स्थान सुनिश्चित किया गया है।
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वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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लघुकथा मंजूषा 3 - वर्जिन साहित्यपीठ
लघुकथा मंजूषा
3
वर्जिन साहित्यपीठ सम्पादन मंडल
ललित कुमार मिश्र
ममता शुक्ला, डॉ तरुणा दाधीच, डिंपल गौड़ ‘अनन्या’, अनघा जोगलेकर, डॉ. चंद्रेश कुमार छ्तलानी, विरेंदर ‘वीर’ मेहता एवं शोभा रस्तोगी
वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
virginsahityapeeth@gmail.com / 9868429241
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - जनवरी, 2019
कॉपीराइट © 2019
वर्जिन साहित्यपीठ
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भूमिका
‘लघुकथा मंजूषा’ शृंखला की तीसरी पुस्तक लघुकथा मंजूषा-3 नए प्रयोग के साथ प्रस्तुत की जा रही है। इस प्रयोग के तहत इस लघुकथा संग्रहालय हेतु छः संपादकों का चयन किया गया है।
इस संग्रहालय के दो भाग हैं। दोनों भागों में तीन-तीन संपादकों हेतु स्थान सुनिश्चित किया गया है।
इस लघुकथा संग्रहालय में सभी संपादकों के आलेख, उनकी स्वरचित लघुकथाएँ और उनके द्वारा चयनित अन्य लघुकथाकार मित्रों की लघुकथाएँ प्रदर्शित की गई हैं।
इस प्रयास पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी, ताकि अगली प्रस्तुति और बेहतर कर सकें।
धन्यवाद और शुभकामनाएँ!!!
ललित कुमार मिश्र
प्रबंध संपादक, वर्जिन साहित्यपीठ
ललित कुमार मिश्र
साहित्यिक उपनाम
विदेह निर्मोही, सोनीललित, प्रकृति नवरंग
9868429241 / sonylalit@gmail.com
जन्मस्थान: बिहार
जन्मतिथि: 16 मार्च 1976
शिक्षा: स्नातक, राजधानी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
विधाएं: कविता, लघुकथा
ललित कुमार मिश्र
स्वरचित लघुकथाएँ
गरम
ललित कुमार मिश्र
रोज की भांति उस दिन भी दोनों शाम की चाय एक साथ पीने के लिए बैठे थे। रंजना ने भी नियमतः उन्हें प्रवेश करते देख चाय चढ़ा दी थी। इधर खौलने के पश्चात चाय कपों में उतर थोड़ा सुस्ताने लगी और उधर टीवी पर गरमागरम खबरें दौड़ने लगीं। दोनों ने आदतन एक साथ कप उठाया और सुर्ररर से पहली चुस्की ली। किन्तु इससे पहले कि चाय उनके गले से उतरती, एक खबर आकर वहां अटक गई। राजनीति के गरमाने का समाचार दोनों ने सुना। अल्लाहजादे और रामजादे, दोनों हर आम पर टूट पड़े थे। चूंकि यह क्षेत्र मुस्लिमबहुल था, अतः रंजना के पिता के माथे पर लकीरें उभरने लगी थीं। किन्तु इन लकीरों के प्रबल होने से पहले ही उनके मित्र उन्हें और उनकी बेटी को अपने घर ले गए। घर पहुँचते ही उन्होंने सलमा को रंजना को बुर्क़ा पहनाकर अपने कमरे में ले जाने को कहा और पंडित जी को स्टोर रूम में छुपा दिया। तभी दरवाजे की चीख गूंजी। सलमा के पिता समझ गए। उन्होंने दरवाजा खोला तो पहला चेहरा जाना-पहचाना लगा, तुम मौलवी साहब की औलाद हो न!!!
अरे चचा, ये जान-पहचान का वक़्त नहीं है। ये बताओ कि पंडित जी की बेटी को कहाँ छिपाकर रखा है?
मुझे नहीं पता बेटा, वो तो सुबह ही कहीं चले गए थे।
अल्लाहजादा ने चारों तरफ निगाहें दौड़ा दी। तभी उसकी नज़र एक बंद कमरे पर रुक गई। वह चचा को ठेलते हुए उस बंद कमरे की और बढ़ने लगा। चचा थोड़ा सम्हलते हुए बोले, कहाँ जा रहे हो बेटा, उस कमरे में सलमा सब हैं।
अल्लाहजादा ने कमरे में झांका, फिर इत्मीनान से बोला, "क्या चचा, इतना भी नहीं जानते, भूख जब लगती है तो यह नहीं देखा जाता कि खाना किस ब्रांड है।
आपातकाल
ललित कुमार मिश्र
चुनाव के दिन नजदीक थे। तैयारियां जोरों पर थी। खरगोश ने पन्ने पर अभी एक शब्द लिखा ही था कि दरवाजे के चीत्कार ने उसे व्यथित कर दिया। वह उठा और दरवाजा खोला तो देखा कि सरकारी भेड़िये दल-बल के साथ आ धमके थे। उनके आने का कारण पूछने पर उन्होंने कहा, हमें शक है कि आप नक्सलियों को सशक्त बनाने में उनकी मदद कर रहे हैं। इसलिए आपके घर की तलाशी लेनी है।
देखिए सर, ये सच है कि मैं पूंजीवाद के खिलाफ लिखता हूँ किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि मैं नक्सलियों का समर्थक हूँ।
वो अभी पता चल जाएगा।
भेड़िये खरगोश को धकेलते हुए भीतर घुस आए। भीतर आते ही उनकी नज़र टेबल पर रखे उस पन्ने पर पड़ी, जिस पर खरगोश एक ही शब्द लिख पाया था और वो शब्द था 'चुनाव'।
अच्छा! तो आपका टारगेट चुनाव है।
भेड़िया वो पन्ना कब्जे में लेकर आगे बढ़ा ही था कि उसकी नज़र टेबल पर रखी लेनिन और कार्ल मार्क्स की किताबों पर पड़ी। किताबों को कब्जे में लेने के पश्चात वह खरगोश की ओर बढ़ा और बोला, पत्रकार साहब, आपको कितनी बार कहा कि यह बुद्ध और गांधी का देश है; शांति का देश है, क्रांति का नहीं। पर आपको सुनाई ही कहाँ देता है। आप हमारे साथ चलिए। आपके कान का इस बार ऐसा इलाज करेंगे कि हमारा मौन भी सुनाई देने लगेगा।
भेड़िया खरगोश को हथकड़ी पहना बाहर जाने लगा तो साथी भेड़िये ने बताया कि इनकी एक बेटी और दामाद भी हैं। इससे पहले कि वे हल्ला मचाएं, उनका इलाज भी करना होगा। बस फिर क्या था, पूरा दल-बल उनके घर पर धमक पड़ा और घर की तलाशी लेने लगा। तलाशी में कुछ न मिलने पर वे बौखला से गए और पत्रकार साहब के दामाद से बोले, अच्छा, तो हमारे आने की खबर आपको पहले ही मिल गई थी। हम्म..! अच्छी तैयारी की है आपने। बात के दौरान भी उनकी खोजी निगाहें तलाशी में व्यस्त थीं। तभी उनकी पत्नी बाथरूम से नहाकर बाहर निकली। उन्हें देखते ही भेड़िये की आंखें चमक गईं। उसने उनकी पत्नी पर निगाहें गड़ाते हुए पूछा,
आपने ये लाल रंग का ब्लाउज क्यों पहना है। 'लाल' का मतलब जानती हैं न आप - लाल सलाम।"
तभी एक अन्य भेड़िये ने दीवार पर टंगी फोटो की ओर इशारा करते हुए कहा, सर वो देखिए, काली की तस्वीर भी है।
ये काली की तस्वीर क्यों लगा रखी है जनाब? तबाही मचाने का इरादा है क्या? राम की लगा लेते - शांति के प्रतीक।
भेड़िये ने तुरंत दोनों को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। खरगोश का पूरा परिवार अब कब्जे में था।
जंगल में साज़िश
ललित कुमार मिश्र
राजा बनने के बावजूद शेर खुश नहीं था। आर्थिक मंदी के कारण राजकोष में धन का अभाव जो था। बैंक भी इससे अछूते नहीं थे। किन्तु प्रजा पर इस मंदी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था। काफी सोच-विचार के बाद एक दिन शेर ने प्रजा को संबोधित करते हुए कहा, जंगल में चंद सियारों की धूर्तता की वजह से काला धन बढ़ता जा रहा है जिससे गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। ऐसे चोरों को पकड़ने के लिए हमने नोटबंदी का फैसला लिया है।
हालांकि खरगोशों ने बीच में टोकने की कोशिश की, किन्तु देशभक्ति का हवाला देकर उन्हें चुप करा दिया गया। नोटबंदी में सबने अपना पैसा जमा तो कर दिया, किन्तु जब वे नए नोट लेने के लिए बैंक गए तो गीदड़ ने अपने ही रुपये निकालने पर उनसे चार्ज वसूलना शुरू कर दिया और साथ ही रुपये निकालने की सीमा की भी घोषणा कर दी। जिन सियारों को नोटबंदी के दौरान पकड़ा गया था, पता चला कि वे सियार नहीं बल्कि सियार के वेश में वे खरगोश थे, जिन्होंने नोटबंदी का विरोध करने की कोशिश की थी। कुछ दिनों बाद ही शेर ने विकास के नाम पर उद्योगपतियों को कर्ज देने के नियम नरम कर दिए। नियम नरम होते ही कर्ज़ खैरात की तरह बंटने लगे। शेर के चेहरे की रौनक अब बढ़ने लगी थी। बेशकीमती सूट उसके बदन पर इतराने लगे थे। किन्तु जब इसका खुलासा हुआ तो वे उद्योगपति विदेश भगा दिए गए। इससे पहले कि जनता उनके सूट और भगोड़ों पर प्रश्न दागती, शेर ने बॉर्डर पर फायरिंग तेज़ करवा दी जिससे कई जवान शहीद हो गए। पूरा जंगल अब पड़ोसी देश को कोसने में लगा था।
लेनिन फिर ज़िंदा हो गया
ललित कुमार मिश्र
लेनिन की मूर्ति टूटकर खंड-खंड हो चुकी थी, लेकिन फिर भी मूर्ति मुस्कुराए जा रही थी। फिर अचानक उस मूर्ति ने मूर्ति तोड़ने वाले का धन्यवाद किया। मूर्ति तोड़ने वाला हतप्रभ था। उसने लेनिन से पूछा, मैंने तुम्हें खंड-खंड कर दिया, फिर भी तुम मुस्कुरा रहे हो, बल्कि मुझे धन्यवाद भी कह रहे हो।
हाँ, क्योंकि तुमने मुझे आज फिर से जीवित कर दिया है। अब मैं आज़ाद हूँ, उन्मुक्त हूँ।
लगता है, मृत्यु ने तुम्हारा मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया है।
मूर्ति तोड़ने वाले ने उपहास करते हुए कहा।
मैं जानता हूँ, तुम यकीन नहीं करोगे। गूगल, समाचार पत्र, न्यूज़, डिबेट, कविता, कहानी, लेख - सभी जगह आज मैं ही हूँ। पहले की तरह सशक्त और अजेय भी।
मूर्ति अब अट्टहास करने लगी। मूर्ति तोड़ने वाला आतंकित था। तभी उसकी नज़र राम की विशाल मूर्ति पर पड़ी। उसके कदम अब स्वतः उस ओर बढ़ने लगे थे।
जलेबी
ललित कुमार मिश्र
ध्रुव ऑफिस से घर के लिए निकला ही था कि जलेबी देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। उसने तुरंत पर्स टटोला। पर्स में मात्र दस रूपए ही थे। पहले तो वह थोडा मायूस हुआ फिर संतोषी बन उतने की ही जलेबी देने के लिए कहा, भाई जलेबी लाल होने पर ही निकालना, बिलकुल कड़क और हां पतली बनाना।
चासनी में डूबती हुई जलेबियों को देखकर उसके बचपन की मधुर स्मृति उभर आई। जब वह पिताजी के साथ मेले में जाया करता था तो जलेबी देखते ही इमरजेंसी ब्रेक लगा देता था। पिताजी अगर आनाकानी करते तो वह खड़े खड़े हाथ पैर पटक अद्भुत नृत्य करने लगता। इसपर भी यदि बात नहीं बनती तो वह उनका पैर पकड़ पोल डांस करने लगता।
इसी बीच जलेबी वाले ने उसकी तन्द्रा को तोड़ते हुए जलेबी उसकी ओर बढ़ा दी। ध्रुव ने गरमागरम जलेबी का एक छोटा सा टुकड़ा उठाया और खाने के लिए मुंह खोला ही था कि उसे गोलू का ध्यान आया। गोलू और उसमें एकमात्र यही तो समानता थी कि दोनों जलेबी के दीवाने थे। पिछले सप्ताह जब वह आधा किलो जलेबी घर लेकर गया था तो उसने हंसी में ही कह दिया था कि अगर गोलू पांच मिनट में आधी जलेबी निपटा देगा तो बाकि की जलेबी भी उसे ही मिलेगी। बस फिर क्या था, गोलू ने जी जान लगा दी थी। बेशक इस प्रयास में उसकी जिह्वा त्राहि त्राहि कर उठी थी पर उसने हार नहीं मानी। एक बार फिर जलेबी वाले ने उसकी तन्द्रा को तोड़ते हुए पूछा, क्या हुआ साहब?
कुछ नहीं। तुम एक काम करो, इसे पैक कर दो।
साज़िश
ललित कुमार मिश्र
ब्रह्मा जी ने पृथ्वी के लिए सर्वप्रथम पुरुष का सृजन किया। कुछ ही समय में पुरुषों ने इतनी तरक्की कर ली कि इंद्र का सिंहासन डोलने लगा। इंद्र हमेशा की तरह जब सारे षड्यंत्रों के बावजूद उन्हें नहीं हरा पाया तो दौड़ा-दौड़ा ब्रह्मा जी के पास गया और बोला,
प्रणाम ब्रह्मदेव
सदा सुखी रहो पुत्र
ये आशीर्वाद देकर इसे व्यर्थ न कीजिए पिताश्री
क्यों, क्या हुआ पुत्र?
जैसे कि आप कुछ जानते ही नहीं।
स्पष्ट कहो पुत्र
आपने इन्हीं आशीर्वादों से मनुष्यों को इतना शक्तिशाली बना दिया है कि अब वे इन्द्रासन का ख्वाब देखने लगे हैं। अगर आपने शीघ्र ही कुछ नहीं किया तो मेरी दुर्गति निश्चित है।
"तुम चिंता मत करो पुत्र। निश्चिंत होकर जाओ। मैं शीघ्र ही इसका उपाय करता हूँ।' ब्रह्मा जी ने आश्वासन देते हुए कहा।
इंद्र के जाने के पश्चात ब्रह्मदेव काफी सोच-विचार के पश्चात स्त्री का निर्माण कर पृथ्वी पर भेज देते हैं।
कुछ महीनों बाद इंद्र फिर ब्रह्मा जी के पास दौड़े-दौड़े आते हैं और गिड़गिड़ाने लगते हैं,
मेरी रक्षा कीजिए ब्रह्मदेव
अब क्या हुआ पुत्र
पिताश्री, जबसे आपने स्त्री की रचना की है तबसे मनुष्यों की शक्ति कई गुना बढ़ गई है। वे अब स्वर्ग पर कदम रखने की तैयारी कर रहे हैं।
ब्रह्मदेव चिंतित हो जाते हैं। थोड़े सोच-विचार के पश्चात वे इंद्र को लेकर विष्णु जी के पास पहुंचते हैं। उनकी समस्या सुनकर विष्णु जी सुझाव देते है,
आप सप्त ऋषियों के पास जाएं और उनसे आग्रह करें कि वे स्त्रियों को इतना महिमामण्डित करें कि स्त्रियां आजीवन उसी में उलझी रहें।
और पुरूषों का क्या भगवन?
इंद्र ने व्याकुल होते हुए पूछा।
पुरुषों की ऊर्जा इन स्त्रियों में व्यर्थ होगी पुत्र।
इंद्र के चेहरे पर पुनः वही कुटिल मुस्कान उभर आई।
नेताजी
ललित कुमार मिश्र
एक तांत्रिक के पास आत्माओं की संख्या जब ज्यादा हो गई तो वह सोचने लगा, अब मुझे एक ऐसी आत्मा को काबू में करना होगा जो इन सबको नियंत्रण में रख सके। किन्तु ऐसी आत्मा मिलेगी कहाँ?
तांत्रिक अभी सोच-विचार में ही था कि उसके शिष्य ने नेताजी के आने की सूचना दी। नेताजी को देखते ही उसके मस्तिष्क में उम्मीद की किरण फूट पड़ी, अरे, मैं भी व्यर्थ ही परेशान था। इनसे बेहतर भला कौन हो सकता है।
तांत्रिक ने अविलंब अपनी आसुरी शक्ति से नेताजी की हत्या कर दी।
हत्या के पश्चात् नेताजी की आत्मा जब उसके हाथ लगी तो वह चीख पड़ा, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। कृष्ण का कहा कभी असत्य नहीं हो सकता!
गुरुदेव को व्यथित देख शिष्यो ने पूछा, क्या हुआ गुरुदेव, कृष्ण का क्या कहा असत्य नहीं हो सकता।
यही पुत्र, कि आत्मा अमर होती है।
नेताजी की ज़ुबान
ललित कुमार मिश्र
रोज़-रोज़ नेताजी की बकर-बकर सुनकर जनता इतनी तंग आ चुकी थी कि उन्होंने अर्जुन, एकलव्य, कर्ण इत्यादि सभी महान धनुर्धारियों से एक-एक कर विनती की कि वे उन्हें इस समस्या से मुक्ति दिलाये। परंतु किसी भी धनुर्धारी के हाथ सफलता नहीं लगी। अंततः भगवान राम से प्रार्थना की गई। जनता की दुर्गति देखकर उनसे रहा ना गया और वे मैदान में कूद पड़े। रामजी जी ने कई बाण चलाये पर स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। तब उन्होंने बजरंग बली को याद किया। बजरंग बलि जानते थे कि उन्हें क्या करना है। वे विभीषण की तलाश में निकल