काव्यादर्श (काव्य संग्रह)
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निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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काव्यादर्श (काव्य संग्रह) - वर्जिन साहित्यपीठ
काव्यादर्श
(काव्य संग्रह)
लेखिका
डॉ सुनीता सिंह
वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
virginsahityapeeth@gmail.com; 9971275250
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - दिसंबर, 2018
।SBN 9780463551271
कॉपीराइट © 2018
लेखक
मूल्य: 164 रुपये
कॉपीराइट
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भूमिका
यह सच है
हार हार मैं गया,
.......................
उड़ी धूल तन सारा भर गया
वही फूल, जीवन अविकच है
यह सच है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की