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काव्यादर्श (काव्य संग्रह)
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काव्यादर्श (काव्य संग्रह)
Ebook48 pages14 minutes

काव्यादर्श (काव्य संग्रह)

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About this ebook

निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।
निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की ख़ुशी अदभुत होती है। पुस्तक हो, प्यार हो, समय हो, धन हो, विश्वास हो सभी श्रेष्ठ दान है।

Languageहिन्दी
Release dateDec 28, 2018
ISBN9780463551271
काव्यादर्श (काव्य संग्रह)
Author

वर्जिन साहित्यपीठ

सम्पादक के पद पर कार्यरत

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    काव्यादर्श (काव्य संग्रह) - वर्जिन साहित्यपीठ

    काव्यादर्श

    (काव्य संग्रह)

    लेखिका

    डॉ सुनीता सिंह

    वर्जिन साहित्यपीठ

    प्रकाशक

    वर्जिन साहित्यपीठ

    78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,

    नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043

    virginsahityapeeth@gmail.com; 9971275250

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    प्रथम संस्करण - दिसंबर, 2018

    ।SBN 9780463551271

    कॉपीराइट © 2018

    लेखक

    मूल्य: 164 रुपये

    कॉपीराइट

    इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक लेखिका द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता। सामग्री के संदर्भ में किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में जिम्मेदारी लेखक की रहेगी।

    भूमिका

    यह सच है

    हार हार मैं गया,

    .......................

    उड़ी धूल तन सारा भर गया

    वही फूल, जीवन अविकच है

    यह सच है।

    निराला जी की यह पंक्ति बिल्कुल ही सच है। जीवन में इंसान वस्तु के रूप में सिर्फ हारता है अपनों से, समाज से, समय से, खुद से। जीतता है तो सिर्फ खुशियों से, देने की

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