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प्रेम की शक्ति
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Ebook74 pages34 minutes

प्रेम की शक्ति

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जब प्रेम चमकता है, यह सच्चिदानन्द है। जब प्रेम बहता है, यह अनुकम्पा है। जब प्रेम उफनता है, यह क्रोध है। जब प्रेम सुलगता है, यह ईर्श्या है। जब प्रेम नकारता है, यह घृणा है। जब प्रेम सक्रिय है,यह सम्पूर्ण है। जब प्रेम में ज्ञान है, यह “मैं”हूॅं। गुरूदेव श्री श्री रवि शंकर

Languageहिन्दी
PublisherAslan eReads
Release dateMar 4, 2019
ISBN9789385898709
प्रेम की शक्ति

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    प्रेम की शक्ति - श्री श्री रविशंकर

    Cover

    प्रेम की शक्ति

    शान्ति में शक्ति है, प्रशांतता में शक्ति है, प्रेम में शक्ति है - जिसको हम नहीं पहचानते।

    जो तुम बल से नहीं जीत सकते, वो तुम प्रेम से जीत सकते हो। जो तुम बन्दूक से नहीं जीत सकते, प्रेम के माध्यम से जीत सकते हो। प्रेम की इस शक्ति को अनुभव करने की आवश्यकता है, विश्व में सबसे शक्तिशाली प्रेम है। प्रेम के माध्यम से हम लोगों के दिल जीत सकते हैं।

    अहम् से प्राप्त की हुई जीत का कोई मूल्य नहीं। अहम् में जीत भी हार है और प्रेम में हार भी जीत है। अतंर्मन की जो शक्ति हम सब में है, उसके प्रति अवगत होना एक चुनौती है।

    जब कोई आंतकवादी तुम्हारे द्वार पर खड़ा हो, उस समय प्रेम की चर्चा सम्भव नहीं है। परन्तु क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे संसार को बदला जा सकता है? क्या ऐसे लोगों को समझाने का कोई दूसरा विकल्प है, जो बल के अतिरिक्त अन्य कोई भाषा नहीं समझते?

    हम इस विषय पर तभी विचार कर सकते हैं जब हमें यह आभास हो जाये कि प्रेम में बहुत शक्ति है, अन्त: शान्ति में बहुत बल है। जब हम शान्त होते हैं तभी हम अपने आस-पास के लोगों में भी शान्ति बिखेरते हैं और दूसरे भी शान्त हो जाते हैं।

    युद्ध बुद्धि का, तर्क का सबसे जघन्य कृत्य है। प्रत्येक युद्व का एक ही कारण होता है। कभी-कभी ऑपरेशन की तरह यह भी अनिवार्य हो जाता है। किसी के शरीर मेंघाव है, कैंसर की कोशिका है, हम ऑपरेशन करते हैं। परन्तु ऑपरेशन के बाद पोषण अत्यन्त आवश्यक होता है। जिसका ऑपरेशन हुआ है, हमें उसे पोषण प्रदान करने की आवश्यकता है।

    ऐसा ही विश्व और लोगों की मानसिकता के बारे में भी है, लोगों के दिल और मन मे शांति, प्रेम और विश्वास लाने के लिए, बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

    हमारे स्वयं की शांत और ध्यानस्थ व प्रार्थनामय स्थिति निश्चय ही इसमें सहायक होगी। यह मत सोचा कि मैं क्या कर सकता हूँ? जब विश्व में समस्या हो, तो यह मत सोचो कि तुम्हारा कोई महत्व ही नहीं है। तुम्हारी भी उसमें जिम्मेदारी है।

    होमियोपैथी की एक छोटी-सी गोली, जिसमें केवल सौंवी या हजारवीं भाग ही शक्तिमता है, का प्रभाव साठ-सत्तर किलों के शरीर पर पड़ता है। इसी तरह हरेक व्यक्ति जो भी साँस ले रहा है, बोल रहा है, चल रहा है, सोच रहा है, का प्रभाव इस पृथ्वी पर, इस ब्रह्माण्ड पर पड़ता है। अत: हम सब शांति, सुविचार और सुसंवेदनायें, शुभ-इच्छायें, कामनायें बिखेर सकते हैं; और इससे अवश्य ही पृथ्वी पर प्रभाव पड़ेगा।

    जब कहीं पर परस्पर विरोध हो और तुम दोनों पक्षों से बातचीत करो तो वे पुन: नम्र हो जाते हैं। जब संसर्ग टूटता है तो उपद्रव पैदा होता है और इससे ही कठोरता व हठ आती है। परन्तु जब प्रेम से, शान्तिपूर्ण तरीके से व सहनशीलता से संसर्ग पुन: स्थापित किया जाता है तो लोग

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