Swasth Rahene Ke 51 Sujhav: Hints & tips to stay fit & healthy
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Swasth Rahene Ke 51 Sujhav - EDITORIAL BOARD
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स्वयं को सुंदर और आकर्षक दिखाने की प्रवृत्ति के कारण ही आजकल सौंदर्य प्रसाधनों का प्रचलन सर्वाधिक होने लगा है। बिना मेकअप किए अब व्यक्तित्व अधूरा-सा लगता है। सुंदरता की ललक ने अपने पांव इस तरह पसारे हैं कि स्त्रियां तरह-तरह के बनाव- श्रृंगार करती रहती हैं। इससे वे न केवल चेहरे , वरन् अपने अन्य अंगों के दोषों को अस्थाई तौर पर छिपा कर झूठी तसल्ली पा लेती है।
पुरुष भी पीछे नहीं
ऐसा नहीं है कि सिर्फ महिलाएं ही अपना बनाव- श्रृंगार करती हैं, वरन् पुरुष भी अब पीछे नहीं। हर पत्नी अपने पति को खूबसूरत, जवान, खाका और चुस्त-दुरुस्त देखना चाहती है, अत: शहरों में अब पुरुषों के लिए भी 'ब्यूटी पार्लर', ‘हेयर ड्रेसिंग सैलून' तथा ‘हैल्थ क्लब' खुल गए है, जहां सुंदर दिखने के लिए विभिन्न प्रसाधन सामग्रियों का उपयोग आधुनिक मशीनों से नई-नई तकनीकों से किया जाता है।
यदि बनाव श्रृंगार करने में प्राकृतिक प्रसाधन सामग्रियों का उपयोग किया गया हो, तो सुंदर और आकर्षक दिखने के लिए ‘ब्यूटी पार्लर' संस्कृति की इस प्रवृति को बुरा नहीं कहा जा सकता, लेकिन यदि रसायन युक्त कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों का या घटिया क्वालिटी का इस्तेमाल अधिक किया जाए, तो उससे न केवल पैसा बर्बाद होता है, बल्कि त्वचा की स्वाभाविकता एवं कोमलता को भी काफी नुक़सान होता है और कई तरह के रोगों को बढ़ावा मिलता है।
बढ़ती मांग
सर्वेक्षणों से पता चला है कि पिछले एक दशक में सौंदर्य प्रसाधनों की बिक्री छह-सात गुना बढ़ गई है और इनके उत्पादन में पंद्रह प्रतिशत की दर से प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है। तरह-तरह के आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से ग्राहकों को लुभाया जाता है। त्वचा को मुलायम, चिकनी, आकर्षक, चेहरे की कांति बढ़ाने, गालों की त्वचा को गुलाब की तरह लालिमा युक्त बनाने के वायदे खूब किए जाते हैं।
नकली उत्पादों को भरमार
आजकल बाजार में नकली सौंदर्य प्रसाधनों को भरमार है। यह बात समूचे विश्व में प्रमाणित हो चुकी है। ये सौंदर्य प्रसाधन सस्ते तो होते हैं, परंतु हानि प्यादा पहुंचाते हैं। इस कारण इन सस्ते बाजारी सौंदर्य प्रसाधनों के स्थान पर घरेलू नुसखों का प्रयोग किया जाए, तो न को ये हानि पहुंचाएंगे और न ही त्वचा पर इनका कोई साइड इफेक्ट होगा।
प्रसाधनों के प्रकार
आजकल बाजार में होंठों को खूबसूरत बनाने के लिए तरह-तरह के शेड वाली लिपस्टिक, नाखूनों को रंगने के लिए नेल पालिश, चेहरे को सुंदर बनाने के लिए खुशबूदार पाउडर व क्रीम, पूरे शरीर की त्वचा को निखारने के लिए विभिन्न प्रकार के लोशन, खुशबूदार परफ्यूम्स, आंखों को सुंदरता बढ़ाने के लिए काजल, सुरमे, आई लाइनर, आई ब्रो पेंसिल , मस्कारा, बालों के लिए शैम्पू और शादीशुदा महिलाओं के लिए सिंदूर, बिंदी, कुमकुम जैसे सौंदर्य प्रसाधन आसानी से सर्वत्र उपलब्ध होते हैं।
नियमित प्रयोग के दुष्परिणाम
बहुत से युवक-युवतियां दूसरों की देखादेखी, अपने को उनसे अधिक खूबसूरत बनाने के चक्कर में आवश्यकता से अधिक और नियमित रूप से सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग करते हैं। उन्हें इनके प्रयोग से होने वाली हानियों का ठीक से ज्ञान नहीं होता। परिणाम जब सामने आते हैं तब तक चेहरा कुरूप हो चुका होता है। यहां तक कि चेहरे का सारा आकर्षण ही जाता रहता है।
सामान्य तौर पर सौंदर्य प्रसाधनों के उपयोग से जो दुष्परिणाम नजर आते हैं, उनमें एलर्जी होना, खुजली होना त्वचा पर दाने उभर आना, उनमें जलन होना होंठों का लाल, काला, बदरंग होकर फटना, उस पर पपड़ी पड़ना, रिसना, सूजन आना, पसीने के अवरोध से चर्म विकार आदि पमुख लक्षण होते हैं। लंबे समय तक हानिकारक रसायनों के प्रयोग से त्वचा का कैंसर तक हो सकता है। सौंदर्य प्रसाधनों के अत्यधिक प्रयोग से त्वचा रोमछिद्रों के बंद हो जाने के कारण पसीना व विजातीय तत्वों के शरीर से बाहर निकलने में बाधा पहुंचती है। इनमें मिलाए गए कृत्रिम रंग व हानिकारक रसायन हमारी त्वचा द्वारा सोख लिए जाते हैं और त्वचा के विभिन्न रोग उत्पन्न करते हैं।
टैल्कम पाउडर: सभी घरों में टैल्कम पाउडर का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है। बहुत से लोग चेहरे के अलावा नहाने के बाद इसे शरीर पर छिड़क कर लगाते हैं। इस दौरान पाउडर डस्ट के सूक्ष्म कण सांस के जरिए फेफडों में पहुंचकर एलर्जिक रिएक्शन पैदा कर सकते हैं। जब लंबे समय तक नियमित पाउडर छिड़कने का सिलसिला चलता रहता है, तो इससे फेफडों को भारी नुकसान पहुंचने की संभावना होती है। दमे , क्रानिक, ब्रॉन्काइटिस और फेफड़ों की अन्य तकलीफों से पीड़ित लोगों को पाउडर डस्ट से विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। टैल्कम पाउडर में जो डिओडोरेंट मिलाया जाता है , उससे त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न करते है।
लिपस्टिक: नियमित रूप से लिपस्टिक का प्रयोग करने से होंठों का स्वाभाविक रंग नष्ट हो जाता है। उसमें सूखापन, दरारें पड़ना, पपड़ी जमना, सूजना , रिसना यहां तक कि होंठ काले पड़ जाते है। इसमें इओसिन नामक रंग लैनोनिन रसायन के साथ प्रयुक्त किया जाता है। लिपस्टिक जब होंठों के माध्यम से शरीर में पहुंचती है, तो अनेक प्रकार की बीमारियां पैदा होती हैं।
नेल पालिश: नाखूनों पर नियमित रूप से प्रयोग की जाने वाली नेलपालिश से नाखून बंदरंग, चमकहीन और उनकी बनावट बिगड़ सकती है तथा वे कमजोर होकर जल्दी टूटते हैं। पैरों की उंगलियों में सूजन आ सकती है।
आंखों के प्रसाधन: आंखों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रसाधनों में आई पेंसिल, आई लाइनर, आई शैडो, मस्कारा, काजल, सुरमा न केवल आंखों में खारिश पैदा करते हैं , बल्कि आखों को नुकसान भी पहुंचाते है। क्योंकि इनमें सीसा कोलतार के रंग जैसे हानिकारक तत्व मिले होते है। मस्कारा के नियमित प्रयोग से आंखों के आसपास की त्वचा में जलन होने लगती है। आई लाइनर से आंखों की श्लेष्मा झिल्ली के खराब होने का खतरा होता है।
हेयर शैप्पू: शैम्पू में सिंथेटिक डिटरजेंट होता है। साबुन आधारित शैम्पू मेँ पानी के खनिज के कारण बाल कड़क, रूखे और मुंह हो जाते है। इनके लगाने से बालों को पोषण, मजबूती और सुरक्षा प्रदान नहीं होती। इसमें सेल्टोल्स और डाइ-आक्सीज़न जैसी जहरीली अशुद्धियां होती हैं, जिनसे एलर्जी हो सकती है। ये शैप्पू आंखों में जलन, वालों के झड़ने जैसी बीमारियां भी पैदा कर सकते हैं। इसलिए हर्बल का प्रयोग करें।
हेयर रिमूवर्स: अनचाहे बालों को हटाने के लिए बाजार में सुगंधित हेयर रिमूवर मिलते हैं। इनमें बेरियम सल्फेट नामक रसायन मिलाया जाता है, जिससे त्वचा पर लाल रंग के चकत्ते उभर आते हैं और एक्जिमा तक हो सकता है।
फेस क्रीम: चेहरे पर लगाई जाने वाली क्रीम यदि वसा अथवा तेल आदि स्निग्ध पदार्थों के माध्यम से बनाई जाए, तब को ठीक है, अन्यथा क्रीमों में या तो नमी सोख लेने वाले तत्व होते हैं अथवा उनमें ऐसे तत्वों का सम्मिश्रण होता है, जो त्वचा के रोमकूपों में संकोच उत्पन्न करते है, जिससे शरीर से पसीना, अन्य विजातीय तत्वों का बाहर निकलना मुशिकल हो जाता है और वे विजातीय पदार्थ शरीर के अंदर ही रहकर विकृति पैदा करते हैं, परन्तु आजकल बाजार में हर तरह की त्वचा के अनुरूप क्रीमें मिलने लगी हैं।
बिंदी: माथे पर लगाई जाने वाली बिंदी का चिपचिपा पदार्थ त्वचा को प्रभावित करता है और इसके नियमित प्रयोग से उस स्थान पर खुजली और त्वचा रोग भी हो सकते है, दाने उभर सकते है। कभी-कभी तो सफेद दाग तक पड़ जाते हैं।
सिंदूर: सुहाग का प्रतीक चिह्न 'सिंदूर' में साधारणतया लेड आक्साइड रसायन रहता है, जो एक विषैली धातु है। इसे मांग में भरने से सिर की त्वचा निरन्तर अनेक वर्षों तक इसके संपर्क में आती रहती है, जिससे बाल झड़ने, टूटने, छोटे पड़ने तथा जल्दी सफेद होने लगते हैं। रोमकूपों के साथ यह रसायन मस्तिष्क के भीतर जा पहुंचता है और अनिद्रा, सिर दर्द, विस्मरण उदासी आदि कई तरह की तकलीफें पैदा करता है। रक्त के साथ मिलकर वह शरीर के अन्य भागो में पहुंच कर उपद्रव खड़े करता है।
उपयोग से पहले एलर्जी टेस्ट करें
किसी भी सौंदर्य प्रसाधन को अपनाने से पहले उसकी एलर्जी संबंधी जांच अवश्य कर लें। इसके लिए कलाई के नीचे या कान के पीछे थोड़ा-सा भाग साफ करके थोड़ा-सा सौंदर्य प्रसाधन लगा लें और 24 घंटे तक उसका असर देखे। यदि वहां कुछ भी प्रतिक्रिया के लक्षण नजर नहीं आते है और साबुन से धोने के बाद भी कोई कष्ट नहीं होता, तब तो आप वह प्रसाधन चेहरे आदि स्थानों पर इस्तेमाल कर सकते हैं, अन्यथा नहीं।
खरीदते समय सावधानी बरतें
सौंदर्य प्रसाधन हमेशा कंपनियों का बना ओरिजिनल पैकिंग में सील बंद अवस्था में एवं विश्वसनीय दुकान से ही खरीदे । सस्ते के चक्कर में पड़कर कभी भी मिलते-जुलते नामों की सौंदर्य सामग्री फेरीवालों, सड़क पर बैठ कर बेचने वालों से घटिया कंपनी की बनी चीजें न खरीदें।
रासायनिक तत्वों से मिलकर बने सौंदर्य प्रसाधनों का कम से कम इस्तेमाल करें, क्योंकि उसके तत्व त्वचा और स्वास्थ्य, दोनों के लिए हानिकारक होते है। इन्हें यूं ही खुला कभी नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से ये खराब हो जाते है।
जागरूक बनें
अपने सौंदर्य की देखभाल, रख-रखाव और मेकअप की तकनीक सीखना यद्यपि आज के जमाने में प्रत्येक जागरूक युवक-युवती, महिला के लिए आवश्यक है, फिर भी अंधानुकरण करके अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह रहना निश्चय ही एक गलत आदत है। अत: रासायनिक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग कम करना हित में होगा।
हर्बल प्रसाधन अपनाएं
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्राचीनकाल के सौंदर्यवर्धक योग आजकल के कैमिकल्स-युक्त प्रसाधनों से कई गुना श्रेष्ठ है। आयुर्वेद में ऐसे सैकड़ों नुस्खे भरे पड़े हैं, जिनको अपनाने से रूप सौंदर्य निखर उठता है। जड़ी-बूटियों से निर्मित सौंदर्य प्रसाधन भारत की प्राचीन पद्धति है, जो वास्तव मेँ श्रेष्ठ और सार्वकालिक असरकारक है। यहीं वजह है कि आजकल हर्बल पर आधारित सौंदर्य प्रसाधनों का संचलन दिन-पर-दिन बढ़ता ही जा रहा है। इनके प्रयोग करने से त्वचा को बिना नुकसान पहुंचाए ही अपने सौंदर्य को आकर्षक रख सकते हैं।
समाचार पत्रों, रेडियो, सिनेमा के पर्दे और टी.बी. पर किए गए शीतल पेयों (कोल्ड ड्रिंक्स) के आकर्षक, धुंआधार विज्ञापनों के कारण अब शहरों से गांवों तक गर्मी के मौसम में, इनका उपयोग अधिक बढ़ गया है। बच्चों और युवा पीढ़ी पर तो उसका जादुई असर हुआ है। यहीं कारण है कि प्रतिवर्ष इनकी बिक्री में वृद्धि होती ही जा रही है।
बच्चों की पसंद
इनकी पसंद का आलम यह है कि नासमझ छोटे बच्चे तक अब पौष्टिक दूध की जगह इन पेयों का सेवन करना पसंद करने लगे हैं। जन साधारण ये नहीं जानते कि इन पेयों के पीने से न तो प्यास बुझती है और न ही गर्मी से राहत मिलती है। हां, थोड़े समय के लिए ऐसा अहसास जरूर होता है। इन पेयों में मिश्रित कार्बन-डाइआक्साइड गैस पेट में पहुंचते ही डकारें आना शुरू हो जाती है और यदि इन्हें रोकने की कोशिश की जाए, तो ये गैस नाक से निकल कर जलन पैदा करती है। डकारें आने से लोगबाग यह सोचते है कि पाचन संस्थान को राहत मिल रहीं है, जो एक गलत धारणा है।
स्टैंडर्ड मेंटेनेंस का चक्कर
अपना स्तर प्रदर्शित करने के चक्कर में लोगबाग अब नाश्ते के बाद चाय, दूध या काफी के बजाय शीतल पेय का सेवन करना जरूरी समझने लगे हैं। इससे कुछ करोड़ का व्यवसाय करने वाले शीतल पेयों का व्यवसाय बढ़कर अब हजारों करोडों से उपर पहुंच गया है। यह कम आश्चर्य की बात नहीं कि जो बोतल सब खर्चे मिलाकर एक से दो रुपये में पड़ती है, वह धड़ल्ले से 7 से 10 रुपये तक बिकती है। दुनिया भर में लोकप्रिय अमेरिका का कोका कोला पेय हमारे देश मेँ भी प्रसिद्ध है। परंतु राष्ट्रीय पोषण प्रयोगशाला, हैदराबाद के निष्कर्ष का आधार बनाकर जनता सरकार के समय तत्कालीन उद्योग मंत्री जार्ज फर्नान्डीस ने कोका कोला को हानिकारक पेय मानकर प्रतिबंधित करा दिया था। अब फिर प्रतिबंध हटने से कोका कोला दोबारा मार्केट में छा गया है।
भारत में कोका कोला की विदाई के तुरंत बाद से ही मॉडर्न फूंड इंडस्ट्रीज ने डबल सेवन, पार्लें ने थम्स अप और प्योर ड्रिंक्स ने कैम्पा बाजार में पहुंचा दिया था। भारत में बनने वाले अन्य शीतल पेयों में लिम्का, गोल्ड स्पॉट, कैम्पा आरेंज, स्प्रिंट, मिरिंडा रश, थ्रिल, टिंक्लर, पेप्सी, 7अप, स्लाइश, ड्यूक आदि ब्रांड नामों से भी कोल्ड ड्रिंक्स की बिक्री की जाती है। इसके अलावा कुछ वर्षों से रसना, टिंकल, फ्लोरिडा आदि, कोल्ड ड्रिंक कंसंट्रेट' तथा फ्रूटी, एप्पी, रसिका, जम्पिन, बालफ्रूट आदि तैयार फलों के स्वाद जैसे पेय भी अत्यधिक लोकप्रिय हो गए है।
अकसर लोगों को यह मालूम नहीं होता है कि शीतल पेयों मेँ मुख्य रूप से सैक्रीन, चीनी, साइट्रिक या फास्फोरिक एसिड, कैफ्रीन, कार्बन डाइआक्साइड, रंग-सोडियम ओएंजाइड आदि पदार्थ मिलाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है। वास्तव में यदि देखा जाए, तो शीतल पेय में पौष्टिक भोजन का, फलों के वास्तविक रसों का नाममात्र अंश भी नहीं होता।
अमेरिका में किए गए एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि सैक्रीन और कैफीन युक्त पदार्थों के सेवन करने से बच्चे पढ़ाई से जी चुराने लगते है। ऐसे पेयों के सेवन से मनुष्य का व्यवहार बदल सकता है। यहां तक कि अपराध की प्रवृति जन्म ले सकती है। अनुसंधान के अनुसार बच्चों को खाली पेट शीतल पेयों का सेवन नहीं करने देना चाहिए तथा बारह वर्ष से कम आयु के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को कोका युक्त शीतल पेय सेवन नहीं करना चाहिए। सैक्रीन युक्त पेयों के सेवन से ब्लड शुगर की बीमारी हो सकती है। बच्चे मोटापे के शिकार हो सकते है, मधुमेह से लेकर दिल की बीमारियां तक हो सकती है। शीतल पेयों के आदती बनाने में कैफीन का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
ज्यादातर शीतल पेयों मेँ साइट्रिक या फास्फोरिक एसिड मिलाया जाता है , जो पेट में जाकर अम्लीयता बढ़ा देता है। इससे भूख नहीं लगती। एसिड की अधिकता के परिणामस्वरूप पेप्तिक अल्सर भी हो सकता हैं।