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चंद्रमा से प्रक्षेपित स्पंदन मनोदे ह को, अर्ाात

मानव मनको प्रभापवत करते हैं । मन, अर्ाात


हमारी सं वेदनाएं , भावनाएं और इच्छाएं
(वासनाएं ) । मन के दो भाग होते हैं – चेतन
मन और अवचेतन मन । अवचेतन मन में
अनेक संस्कार होते हैं , जो हमारा स्वभाव और
व्यक्तित्व पनर्ााररत करते हैं । हमें अिने
अवचेतन (सु प्त) मन में पवद्यमान पवचार एवं
संस्कारों का कोई भान नही ं होता । ये
संस्कार अने क जन्ों से संपचत होते हैं ।

फपित ज्‍योपतष (Astrology) में अनुसार चन्‍द्रमा


को मूित: जि का प्रपतपनपर् ग्रह माना गया है
और हमारे फपित ज्‍योपतष शास्‍त्र का पनमााण
करने वािे मनीपषयों ने चन्‍द्रमा को इसीपिए
जि का कारक ग्रह माना होगा, क्‍योंपक चन्‍द्रमा
रापत्र में बहुत ही शीति प्रकाश पबखेरता है
और हमारे िुराने मनीपषयों ने सोंचा होगा पक
चन्‍द्रमा िर बहुत सारा जि होने की वजह से
ही वहां से आने वािा प्रकाश इतना शीति
होता है । िेपकन Modern Science ने अिने
अिोिो पमशन में इस बात को सापबत पकया
है पक चन्‍द्रमा एक सूखा व वीरान प्रदे श है ,
जहां जि नाम की कोई चीज नही ं है ।
इसपिए Astronomers के अनुसार चन्‍द्रमा का
जि से कोई सम्‍बंर् नही ं है ।

हािां पक Modern Science भी इस बात को िूरी


तरह से स्‍वीकार करता है पक िूपणा मा व
अमावस्‍या के समय जब चन्‍द्रमा, िृ थवी
्‍ के
सवाा पर्क नजदीक होता है , तब िृ थ्‍वी के समु द्रों
में सबसे बडे ज्‍वार-भाटा होते हैं और इतने
बडे ज्‍यार-भाटा का मूि कारण चन्‍द्रमा की
गुरूत्‍वाकषाण शक्ति ही है , जो पक मू ि रूि से
िृथवी
्‍ के समुद्री जि काेे ही सवाा पर्क
आकपषात करता है ।

Astrology व Astrology दोनों के अनुसार िृथ्‍वी


के पिए सूया की अिेक्षा चन्‍द्रमा की गपत
तुिनात्‍मक रूि से अपर्क तेज है । अत: वह
समस्‍त 27 नक्षत्र क्षैत्रों से आगे रहता है ।
िररणामस्‍वरूि चन्‍द्रमा, सू या के एक वषा के
मागा को मात्र एक मास में, एक मास के मागा
को मात्र सवा-दो पदन में तर्ा एक िखवाडे
के मागा को मात्र एक पदन में ही िू रा कर
िेता है ।

इसपिए फपित ज्‍योपतष में चन्‍द्रमा को


कल्‍िनाओं का कारण माना गया है क्‍योंपक
कल्‍िनाओं की गपत, प्रकाश की गपत से भी
अपर्क तेज होती है और इसीपिए चन्‍द्रमा को
वेदों में चन्‍द्रमा मनसो जात: (चन्‍द्रमा मानव
मन की तरह) कहा गया है यानी चन्‍द्रमा को
मन का स्‍वामी कहा गया है और फपित
ज्‍योपतष के अनुसार माना जाता है पक चन्‍द्रमा
ही मानव मन को सवाापर्क प्रभापवत करता
है ।
चंद्रमा को शरीर के रूपर्र का कारण भी
माना जाता है क्‍योंपक शरीर का रूपर्र मूित:
Liquid यानी जि होता है और जि को चन्‍द्रमा
ही सवाापर्क प्रभापवत करता है ।

आज आर्ुपनक पवज्ञान ने ये स्वीकार पकया हे


पक चंद्र हमारी िृथ्वी के चुबकीय क्षे त्र को ओर
सागर की जितरं गों को प्रभापवत करता हे |
िेपकन इसका प्रपतिादन तो हमारे वेदो ने ओर
र्मा शास्त्रो ने िहे िे से ही पकया हे |

चंद्र को मन का ओर सू या को आत्मा -
मनोबि का कारक ज्योपतष िहे िे से ही
पवपदत करता हे |

हम सभी घर मे हो या बाहर खुिे आसमान


मे.... मानव ,िशु ओर प्रकृपत कोई भी चंद्र
की किाओ की वृक्ति ओर क्षीणता से
अनछु आ नपह रहे ता |सभी जगा एक तरं ग वत
ये अिनी ऊजाा का प्रभाव प्रसाररत करता हे
|िुपणामा की शीतिता ओर अमावस का भय
...!!! शायद हम सभी की अनुभूपत रही हे
|

चन्द्रमा का मन से घपनष्ठ सम्बन्ध है . इसीपिए


समस्त
प्रापणयों के पिए मानपसक सुख शाक्ति का
प्रभाव
कारक ग्रह चन्द्रमा माना गया है

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