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अनुक्रमणिका

 प्रस्तावना भारत में कृणि


 इणतहास
 उत्पादन
 कृणि औजार
 अवलोकन
 भारत मे णसिं चाई
 णवत्त विष २०१३१४ के अिंत में भारत में कृणि की स्थिणत-
 उत्पादन में भारत का थिान
 कृणि सिं थिान
 रबी की फ़सल
 गेहूँ
 महत्व
 गेहिं की अणिक उपज दे ने वाली णकस्में
 भूणम की तैयारी
 णवणभन्न दे शोिं में गेहूँ उत्पादन
 जौ
 पररचय
 उत्पादक दे श
 जलवायु
 भारतीय सिं स्कृणत में जौ
 चना
 काबुली चना
 चने की खेती
 पौि सिं रक्षि
 चना के उत्पादन का णवश्व णवतरि
 दाल
 मसू र
 मसू र के उत्पादन के णलए भौगोणलक कारक
 सरसोिं

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 सरसोिं की खेती
 खेत का चुनाव व तै यारी
 उन्नत णकस्में
 समय पर बुआई वाली णसिंणचत क्षेत्र की णकस्में
 उवषरकोिं का उपयोग
 जैणवक खाद
 जल प्रबिंिन
 कीट एविं रोग प्रबिं िन
 सरसोिं के प्रमुख कीट
 सिंदभषग्रिंि सूची

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प्रस्तावना भारत में कृणि
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्र्ा की रीढ़ है । भारत में कृषि ष िंधु घाटी भ्यता के दौर े की जाती रही है ।
१९६० के बाद कृषि के क्षेत्र में हररत क्ािं षत के ार् नया दौर आया। न् २००७ में भारतीय
अर्थव्यवस्र्ा में कृषि एविं म्बन्धित कायों जै े( वाषनकी) का कल घरे लू उत्पाद (GDP) में षहस्सा
16.6% र्ा। उ मय म्पूर्थ कायथ करने वाल िं का 52% कृषि में लगा हुआ र्ा।

कृषि खेती और वाषनकी के माध्यम े खाद्य और अन्य ामान के उत्पादन े िंबिंषधत है । कृषि एक
मुख्य षवका र्ा, ज भ्यताओिं के उदय का कारर् बना, इ में पालतूजानवर िं का पालन षकया
गया और पौध िं (फ ल )िं क उगाया गया, षज े अषतररक्तखाद्य का उत्पादन हुआ। इ ने
अषधक घनी आबादी और स्तरीकृत माज के षवका क क्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि
षवज्ञान के रूप में जाना जाता है तर्ा इ ी े िंबिंषधत षविय बागवानी का अध्ययन बागवानी
(हॉषटथ कल्चर( में षकया जाता है ।

तकनीक िं और षवशेिताओिं की बहुत ी षकस्में कृषि के अन्तगथत आती है , इ में वे तरीके शाषमल हैं
षजन े पौधे उगाने के षलए उपयुक्त भूषम का षवस्तार षकया जाता है , इ के षलए पानी के चैनल ख दे
जाते हैं और ष िंचाई के अन्य रूप िं का उपय ग षकया जाता है । कृषि य ग्य भूषम पर फ ल िं क
उगाना और चारागाह िं और रें जलैंड पर पशुधन क गड़ररय िं के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि े
म्बिंषधत रहा है । कृषि के षभन्न रूप िं की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृ न्धि, षपछली शताब्दी
में षवचार के मु ख्य मुद्दे बन गए। षवकष त दु षनया में यह क्षे त्र जैषवक
खेती (उदाहरर् पमाथ कल्चर या काबथषनक कृषि) े लेकर गहन कृषि (उदाहरर् औद्य षगक कृषि)
तक फैली है ।

आधुषनक एग्र न मी, पौध िं में िंकरर्, कीटनाशक िं और उवथ रक िं और तकनीकी ुधार िं ने फ ल िं े
ह ने वाले उत्पादन क ते जी े बढ़ाया है और ार् ही यह व्यापक रूप े पाररन्धस्र्षतक क्षषत का
कारर् भी बना है और इ ने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रषतकूल प्रभाव डाला है । चयनात्मक
प्रजनन और पशुपालन की आधुषनक प्रर्ाओिं जै े गहन ूअर खेती (और इ ी प्रकार के अभ्या िं
क मुगी पर भी लागू षकया जाता है ( ने मािं के उत्पादन में वृ न्धि की है , लेषकन इ े पशु
क्ूरता, प्रषतजैषवक (एिं टीबाय षटक( दवाओिं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृ न्धि हॉमोन और मािं के औद्य षगक
उत्पादन में ामान्य रूप े काम में षलए जाने वाले र ायन िं के बारे में मुद्दे ामने आये हैं ।

प्रमुख कृषि उत्पाद िं क म टे तौर पर भ जन, रे शा, ईिंधन, कच्चा माल, फामाथ स्यूषटकल्स और
उद्दीपक िं में मूषहत षकया जा कता है । ार् ही जावटी या षवदे शी उत्पाद िं की भी एक श्रेर्ी है ।
विथ 2000 े पौध िं का उपय ग जैषवक ईिंधन, जैवफामाथ स्यूषटकल्स, जैवप्लान्धिक, और

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फामाथ स्यूषटकल्स के उत्पादन में षकया जा रहा है । षवशेि खाद्य िं में शाषमल
हैं अनाज, न्धियािं , फल और मािं । रे शे में कपा , ऊन, न, रे शम और न (फ्लैक्स( शाषमल हैं ।
कच्चे माल में लकड़ी और बााँ शाषमल हैं । उद्दीपक िं में तम्बाकू, शराब, अफीम,
क कीन और षडषजटे षल शाषमल हैं । पौध िं े अन्य उपय गी पदार्थ भी उत्पन्न ह ते हैं , जै े रे षजन।
जैव ईिंधन िं में शाषमल हैं षमर्ेन,M जैवभार (बाय मा (, इर्ेनॉल और बाय डीजल। कटे हुए
फूल, न थरी के पौधे, उष्णकषटबिंधीय मछषलयााँ और व्यापार के षलए पालतू पक्षी, कुछ जावटी
उत्पाद हैं ।
2007 में, दु षनया के लगभग एक षतहाई श्रषमक कृषि क्षेत्र में कायथरत र्े।
हालािं षक, औद्य षगकीकरर् की शुरुआत के बाद े कृषि े म्बिंषधत महत्त्व कम ह गया है और
2003 में-इषतहा में पहली बार- ेवा क्षेत्र ने एक आषर्थक क्षेत्र के रूप में कृषि क पछाड़ षदया
क् षिं क इ ने दु षनया भर में अषधकतम ल ग िं क र जगार उपलब्ध कराया। इ तथ्य के बावजूद षक
कृषि दु षनया के आबादी के एक षतहाई े अषधक ल ग िं की र जगार उपलब्ध कराती है , कृषि
उत्पादन, कल षवश्व उत्पाद ( कल घरे लू उत्पाद का एक मुच्चय( का पािं च प्रषतशत े भी कम
षहस्सा बनता है ।

इणतहास

भारत में कृषि में 1960 के दशक के मध्य तक पारिं पररक बीज िं का प्रय ग षकया जाता र्ा षजनकी
उपज अपेक्षाकृत कम र्ी। उन्हें ष िंचाई की कम आवश्यकता पड़ती र्ी। षक ान उवथ रक िं के रूप
में गाय के ग बर आषद का प्रय ग करते र्े।
१९६० के बाद उच्च उपज बीज (HYV) का प्रय ग शु रु हुआ। इ े ष िं चाई और रा ायषनक
उवथ रक िं और कीटनाशक िं का प्रय ग बढ़ गया। इ कृषि में ष िंचाई की अषधक आवश्यकता पड़ने
लगी। इ के ार् ही गे हाँ और चावल के उत्पादन में काफी वृ िी हुई षज कारर् इ े हररत
क्ािं षत भी कहा गया।

उत्पादन
भारत में षवषभन्न विों में दाल-गेहाँ का उत्पादन (द कर ड़ टन में-

 1970-71 12-24
 1980-81 11-36
 1990-91 14-55
 2000-01 11-70
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 2008-10 12-60

कृणि औजार
भारत में कृषि में परिं परागत औजार िं जै े फावड़ा, खुरपी, कुदाल, हाँ ष या, बल्लम, के ार् ही
आधुषनक मशीन िं का प्रय ग भी षकया जाता है । षक ान जु ताई के षलए टर ै क्टर, कटाई के षलए
हावे िर तर्ा गहाई के षलए थ्रे र का प्रय ग करते हैं ।

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अवलोकन

२०१० एफएओ षवश्व कृषि ािं न्धख्यकी, के अनु ार भारत के कई ताजा फल और न्धिया, दू ध,
प्रमुख म ाले आषद क ब े बड़ा उत्पादक ठहराया गया है । रे शेदार फ ले जै े जूट, कई िे पल
जै े बाजरा और अरिं डी के तेल के बीज आषद का भी उत्पादक है । भारत गे हिं और चावल की दु षनया
का दू रा ब े बड़ा उत्पादक है । भारत, दु षनया का दू रा या ती रा ब े बड़ा उत्पादक है कई
चीज का जै े ू खे फल, वस्त्र कृषि-आधाररत कच्चे माल, जड़ें और किंद फ ले , दाल, मछलीया,
अिंडे, नाररयल, गन्ना और कई न्धिया। २०१० मई भारत क दु षनया का पॉचवा स्र्ान हाष ल हुआ
षज के मु ताषबक उ ने ८०% े अषधक कई नकदी फ ल का उत्पादन् षकया जै े कॉफी और
कपा आषद। २०११ के ररप टथ के अनु ार, भारत क दु षनया में पााँ चवे स्र्ान पर रखा गया षज के
मुताषबक व ब े तेज़ वृ न्धि के रूप में पशु धन उत्पादक करता है ।

२००८ के एक ररप टथ ने दावा षकया षक भारत की जन िंख्या, चावल और गे हिं का उत्पादन करने की
क्षमता े अषधक ते जी े बढ़ रही है । अन्य ुत्र े पता चलता है षक, भारत अपनी बढती जन िं ख्या
क अराम े न्धखला कता है और ार् ही ार् चावल और गेहिं क षनयाथ त भी कर कता है । ब ,
भारत क अपनी बुषनयादी ुषवधाओिं क बढाना ह गा षज े उत्पादक भी बढे जै े अन्य दे श
ब्राजील और चीन ने षकया। भारत २०११ में लगभग २लाख मीषटर क टन गेहाँ और २.१ कर ड़ मीषटर क
टन चावल का षनयाथ त अफ्रीका, नेपाल, बािं ग्लादे श और दु षनया भर के अन्य दे श िं क षकया।
जलीय कृषि और पकड़ मत्स्यपालन भारत में ब े तेजी े बढ़ते उद्य ग िं के बीच है । १९९० े
२०१० के बीच भारतीय मछली फ ल द गुनी हुई, जबषक जलीय कृषि फ ल तीन गुना बढ़ा। २००८
में, भारत दु षनया का छठा ब े बड़ा उत्पादक र्ा मुद्री और मीठे पानी की मत्स्य पालन के क्षेत्र में
और दू रा ब े बड़ा जलीय मछली कृषि का षनमाथ ता र्ा। भारत ने दु षनया के भी दे श िं क करीब
६,00,000 मीषटर क टन मछली उत्पाद िं का षनयाथ त षकया।

भारत ने षपछ्ले ६० विो मैं कृषि षवभाग में कई फलताए प्राप्त की है । ये लाभ मु ख्य रूप े भारत
क हररत क्ािं षत, पावर जनरे शन, बुषनयादी ुषवधाओिं, ज्ञान में ुधार आषद े प्राप्त हुआ। भारत में
फ ल पैदावार अभी भी ष फथ ३०% े ६०% ही है । अभी भी भारत में कृषि प्रमुख उत्पादकता और
कुल उत्पादन लाभ के षलए क्षमता है । षवका शील दे श िं के ामने भारत अभी भी पीछे है । इ के
अषतररक्त, गरीब अव िंरचना और अ िंगषठत खु दरा के कारर्, भारत ने दु षनया में ब े ज्यादा
खाद्य घाटे े कुछ का अनुभव षकया और नुक ान भी भुगतना पड़ा।

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भारत मे णसिं चाई

रदार र वर नहर (गुजरात)

भारत में ष िंचाई का मतलब खेती और कृषि गषतषवषधय िं के प्रय जन के षलए भारतीय नषदय ,िं
तालाब ,िं कुओिं, नहर िं और अन्य कृषत्रम पररय जनाओिं े पानी की आपू षतथ करना ह ता है । भारत
जै े दे श में, ६४% खे ती करने की भूषम, मान ून पर षनभथर ह ती है । भारत में ष िं चाई करने का
आषर्थक महत्व है - उत्पादन में अन्धस्र्रता क कम करना, कृषि उत्पादकता की उन्नती करना,
मान ून पर षनभथरता क कम करना, खे ती के अिंतगथत अषधक भूषम लाना, काम करने के अव र िं
का ृजन करना, षबजली और पररवहन की ुषवधा क बढ़ाना, बाढ़ और ूखे की र कर्ाम क
षनयिंत्रर् में करना।

पहल

षवपर्न के षवका के षलए षनवे श की आवश्यकता स्तर, भिंडारर् और क ल्ड ि रे ज बुषनयादी


ुषवधाओिं क भारी ह ने का अनुमान है । हाल ही में भारत रकार ने पूरी तरह े कृषि कायथ क्म
का मूल्ािं कन करने के षलए षक ान आय ग का गठन षकया। हालािं षक ष फाररश िं का केवल एक
षमषश्रत स्वागत षकया गया है । नवम्बर २०११ में, भारत ने िंगषठत खुदरा के क्षेत्र में प्रमुख ु धार िं की
घ िर्ा की। इन ुधार िं में र द और कृषि उत्पाद िं की खु दरा शाषमल हुई। यह ुधार घ िर्ा प्रमु ख
राजनीषतक षववाद का कारर् भी बना। यह ुधार य जना, षद िं बर २०११ में भारत रकार द्वारा
ह ल्ड पर रख षदया गया र्ा ॥

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णवत्त विष २०१३१४ के अिंत में भारत में कृणि की स्थिणत-

भारत की प्रमु ख फ ल िं के उत्पादक क्षेत्र

 विथ 2013-14 में कृषि क्षेत्र की वृ न्धि दर 4.7 प्रषतशत


 विथ 2013-14 में 264.4 षमषलयन टन खाद्यान का ररकॉडथ उत्‍पादन
 विथ 2013-14 में 32.4 षमषलयन टन षतलहन का ररकॉडथ उत्‍पादन
 विथ 2013-14 में 19.6 षमषलयन टन दलहन का ररकॉडथ उत्‍पादन
 विथ 2013-14 में मुिंगफली का ब े अषधक 73.17 प्रषतशत उत्‍पादन हुआ
 अिंगूर, केला, क ाबा, मटर और पपीता के उत्‍पादन के क्षे त्र में षवश्‍व में भारत का पहला स््‍र्ान है
 विथ 2013-14 में खाद्यान के तहत क्षेत्र 4.47 प्रषतशत े बढ़कर 126.2 षमषलयन है कटर
्‍ ह गया
 विथ 2013-14 में षतलहन का क्षे त्र 6.42 प्रषतशत े बढ़कर 28.2 षमषलयन है क्‍टर हुआ
 01 जून 2014 क केन्‍द्रीय पूल में खाद्यान्न का भिं डारर् 69.84 षमषलयन टन

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 2013 में खाद्यान्‍न की उपलब्‍धता 15 प्रषतशत बढ़कर 229.1 षमषलयन टन ह गई
 विथ 2013 में प्रषत व्‍यन्धक्त कुल खाद्यान्‍न की उपलब्‍धता बढ़कर 186.4 षकल ग्राम ह गई
 विथ 2013-14 में कृषि षनयाथ त में 5.1 प्रषतशत की वृ न्धि
 विथ 2013-14 में मुद्री उत्‍पाद िं के षनयाथ त में 45 प्रषतशत वृ न्धि दर रही
 विथ 2012-13 में दू ध उत्‍पादन 132.43 षमषलयन टन की ररकॉडथ ऊिंचाई पर पहुिं चा
 विथ 2013-14 में कुल कल घरे लू उत्‍पाद में पशुधन क्षेत्र की 4.1 प्रषतशत भागीदारी रही
 विथ दर विथ भारत में दू ध उत्‍पादन की वृ न्धि दर 4.04 प्रषतशत है जबषक षवश्‍व में यह औ त 2.2
प्रषतशत है
 विथ 2013-14 में कृषि क्षेत्र के षलए ऋर् 7,00,000 कर ड़ रुपये के लक्ष्‍य े अषधक
 विथ 2013-14 में कल घरे लू उत्‍पाद में कृषि और इ के हय गी क्षेत्र िं की षहस््‍ े दारी 13.9
प्रषतशत े घटी
 षक ान िं की िंख्‍या घटी, विथ 2001 में 12.73 कर ड़ षक ान र्े षजनकी िंख्‍या घटकर 2011 में
11.87 कर ड़ रह गई।

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उत्पादन में भारत का थिान

 पहला स्र्ान : गन्ना, बाजरा, जूट, अरिं डी, आम, केला, अिंगूर, क ाबा, मटर, अदरक, पपीता
और दू ध
 दू रा स्र्ान : गे हाँ, चावल, फल और न्धियााँ , चाय, आलू, प्याज, लह ुन, चावल, षबनौला
 ती रा स्र्ान : उवथ रक

कृणि सिं थिान

 भारतीय कृषि अनु िं धान पररिद, नई षदल्ली


 जवाहरलाल नेहरू कृषि षवश्वषवद्यालय, जबलपुर
 इिं षदरा गािं धी कृषि षवश्वषवद्यालय, रायपुर
 ग षवन्द बल्लभ पन्त कृषि एविं प्रौद्य षगकी षवश्वषवद्यालय, पन्तनगर
 चन्द्र शे खर आजाद कृषि एविं प्रौद्य षगकी षवश्वषवद्यालय, कानपुर
 चौधरी चरर् ष िंह हररयार्ा कृषि षवश्वषवद्यालय, षह ार
 लाला लाजपतराय पशुषचषकत्सा एविं पशुषवज्ञान षवश्वषवद्यालय, षह ार
 यशवन्त ष िं ह परमार औद्याषनकी एविं वाषनकी षवश्वषवद्यालय, लन
 राजेन्द्र कृषि षवश्वषवद्यालय, पू ा
 षबर ा कृषि षवश्वषवद्यालय, कााँ के
 राजमाता षवजयाराजे ष िंषधया कृषि षवश्वषवद्यालय, ग्वाषलयर।

कृणि सिं बिंणित अनुसिंिान केन्द्र, राष्ट्रीय ब्यूरो एविं णनदे शालय
समतुल्य णवश्वणवद्यालय

 1.भारतीय कृषि अनु िंधान िंस्र्ान, नई षदल्ली


 2.राष्ट्रीय डे री अनु िंधान िंस्र्ान, करनाल
 3.भारतीय पशु षचषकत्सा अनु िंधान िंस्र्ान, इज्जतनगर
 4.केन्द्रीय मान्धत्स्यकी षशक्षा िंस्र्ान, मुिंबई
सिंथिान

 1.केन्द्रीय धान अनु िं धान िंस्र्ान, कटक

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 2.षववे कानिंद पवथ तीय कृषि अनु िंधान िंस्र्ान, अल्म ड़ा
 3.भारतीय दलहन अनु िं धान िंस्र्ान, कानपुर
 4.केन्द्रीय तम्बाकू अनु िं धान िंस्र्ान, राजामुिंद्री
 5.भारतीय गन्ना अनु िं धान िंस्र्ान, लखनऊ
 6.गन्ना प्रजनन िंस्र्ान, क यम्बटू र
 7.केन्द्रीय कपा िंस्र्ान, नागपुर
 8.केन्द्रीय जूट एविं िंबि रे शे अनु िंधान िंस्र्ान, बै रकपुर
 9.भारतीय चरागाह एविं चारा अनु िंधान िंस्र्ान, झािं ी
 10. भारतीय बागवानी अनु िंधान िंस्र्ान, बैं गल र
 11. केन्द्रीय उप ष्ण बागवानी िंस्र्ान, लखनऊ
 12. केन्द्रीय शीत ष्ण बागवानी िंस्र्ान, श्रीनगर
 13. केन्द्रीय शुष्क बागवानी िंस्र्ान, बीकानेर
 14. भारतीय िी अनु िं धान िंस्र्ान, वारार् ी
 15. केन्द्रीय आलू अनु िं धान िंस्र्ान, षशमला
 16. केन्द्रीय किंदी फ लें अनु िंधान िंस्र्ान, षत्रवे न्द्रम
 17. केन्द्रीय र पर् फ लें अनु िंधान िंस्र्ान, का रग ड
 18. केन्द्रीय कृषि अनु िंधान िंस्र्ान, प टथ ब्लेअर
 19. भारतीय म ाला अनु िंधान िंस्र्ान, कालीकट
 20. केन्द्रीय मृदा और जल िंरक्षर् अनु िंधान एविं प्रषशक्षर् िंस्र्ान, दे हरादू न
 21. भारतीय मृ दा षवज्ञान िंस्र्ान, भ पाल
 22. केन्द्रीय मृदा लवर्ता अनु िंधान िंस्र्ान, करनाल
 23. पूवी क्षेत्र के षलए भारतीय कृषि अनु िंधान पररिद अनु िंधान परर र, मखाना केन्द्र षहत,
पटना
 24. केन्द्रीय शुष्क भूषम कृषि अनु िंधान िंस्र्ान, है दराबाद
 25. केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनु िंधान िंस्र्ान, ज धपुर
 26. भारतीय कृषि अनु िंधान पररिद अनु िं धान परर र, ग वा
 27. पूवोत्तर पहाड़ी क्षेत्र िं के षलए भारतीय कृषि अनु िंधान पररिद अनु िंधान परर र, बारापानी
 28. राष्ट्रीय अजैषवक दबाव प्रबिन िंस्र्ान, मालेगािं व, महाराष्ट्र
 29. केन्द्रीय कृषि अषभयािं षत्रकी िंस्र्ान, भ पाल

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 30. केन्द्रीय कटाई उपरािं त अषभयािं षत्रकी और प्रौद्य षगकी िंस्र्ान, लुषधयाना
 31. भारतीय प्राकृषतक रे षज़न और ग द
िं िंस्र्ान, रािं ची
 32. केन्द्रीय कपा प्रौद्य षगकी अनु िं धान िंस्र्ान, मुिंबई
 33. राष्ट्रीय जूट एविं िंबि रे शे प्रौद्य षगकी अनु िं धान िंस्र्ान, क लकाता
 34. भारतीय कृषि अनु िंधान िंस्र्ान, नई षदल्ली
 35. केन्द्रीय बकरी अनु िं धान िंस्र्ान, मखदु म
 36. केन्द्रीय भैं अनु िंधान िंस्र्ान, षह ार
 37. राष्ट्रीय पशु प िर् और काषयकी िंस्र्ान, बेंगलौर
 38. केन्द्रीय पक्षी अनु िंधान िंस्र्ान, इज्जतनगर
 39. केन्द्रीय मुद्री मान्धत्स्यकी अनु िंधान िंस्र्ान, क न्धच्च
 40. केन्द्रीय खारा जल जीवपालन अनु िंधान िंस्र्ान, चैन्नई
 41. केन्द्रीय अिंतः स्र्लीय मान्धत्स्यकी अनु िंधान िंस्र्ान, बैरकपुर
 42. केन्द्रीय मान्धत्स्यकी प्रौद्य षगकी िंस्र्ान, क न्धच्च
 43. केन्द्रीय ताजा जल जीव पालन िंस्र्ान, भुवनेश्वर
 44. राष्ट्रीय कृषि अनु िंधान एविं प्रबिन अकादमी, है दराबाद
राष्ट्रीय अनुसिंिान केन्द्र

 1.राष्ट्रीय पादप जैव प्रौद्यौषगकी अनु िं धान केन्द्र, नई षदल्ली


 2.राष्ट्रीय मन्धित कीट प्रबिन केन्द्र, नई षदल्ली
 3.राष्ट्रीय लीची अनु िं धान केन्द्र, मुजफ्फरपुर
 4.राष्ट्रीय नीबू वगीय अनु िंधान केन्द्र, नागपुर
 5.राष्ट्रीय अिं गूर अनु िंधान केन्द्र, पुर्े
 6.राष्ट्रीय केला अनु िं धान केन्द्र, षत्रची
 7.राष्ट्रीय बीज म ाला अनु िंधान केन्द्र, अजमेर
 8.राष्ट्रीय अनार अनु िं धान केन्द्र, श लापुर
 9.राष्ट्रीय आषकथड अनु िंधान केन्द्र, पे कयािं ग, ष न्धिम
 10. राष्ट्रीय कृषि वाषनकी अनु िंधान केन्द्र, झािं ी
 11. राष्ट्रीय ऊिंट अनु िंधान केन्द्र, बीकानेर
 12. राष्ट्रीय अश्व अनु िंधान केन्द्र, षह ार

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 13. राष्ट्रीय मािं अनु िंधान केन्द्र, है दराबाद
 14. राष्ट्रीय शू कर अनु िंधान केन्द्र, गुवाहाटी
 15. राष्ट्रीय याक अनु िंधान केन्द्र, वे ि केमिंग
 16. राष्ट्रीय षमर्ुन अनु िंधान केन्द्र, मेदजीफेमा, नगालैंड
 17. राष्ट्रीय कृषि अर्थ शास्त्र और नीषत अनु िंधान केन्द्र, नई षदल्ली

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राष्ट्रीय ब्यू रो

 1.राष्ट्रीय पादप आनुविंषशकी ब्यूर , नई षदल्ली


 2.राष्ट्रीय कृषि के षलए महत्वपूर्थ ूक्ष्म जीव ब्यूर , मऊ, उत्तर प्रदे श
 3.राष्ट्रीय कृषि के षलए उपय गी कीट ब्यूर , बें गलौर
 4.राष्ट्रीय मृ दा वे क्षर् और भूषम उपय ग षनय जन ब्यूर , नागपुर
 5.राष्ट्रीय पशु आनुविंषशकी िं ाधन ब्यूर , करनाल
 6.राष्ट्रीय मत्स्य आनुविंषशकी िं ाधन ब्यूर , लखनऊ
णनदे शालय पररयोजना णनदे शालय

 1.मिा अनु िंधान षनदे शालय, नई षदल्ली


 2.धान अनु िंधान षनदे शालय, है दराबाद
 3.गेहाँ अनु िं धान षनदे शालय, करनाल
 4.षतलहन अनु िं धान षनदे शालय, है दराबाद
 5.बीज अनु िंधान षनदे शालय, मऊ
 6.ज्वार अनु िं धान षनदे शालय, है दराबाद
 7.मूिंगफली अनु िं धान षनदे शालय, जूनागढ़
 8. याबीन अनु िंधान षनदे शालय, इिं दौर
 9.त ररया और र िं अनु िंधान षनदे शालय, भरतपु र
 10. मशरूम अनु िंधान षनदे शालय, लन
 11. प्याज एविं लह ुन अनु िंधान षनदे शालय, पु र्े
 12. काजू अनु िं धान षनदे शालय, पुत्तुर
 13. तेलताड़ अनु िं धान षनदे शालय, पेडावे गी, पषिम ग दावरी
 14. औिधीय एविं गिंधीय पादप अनु िं धान षनदे शालय, आर्िं द
 15. पु ष्प त्पादन अनु िंधान षनदे शालय, नई षदल्ली
 16. कृषि पिषतयािं अनु िं धान प्रय जना षनदे शालय, म दीपुरम
 17. जल प्रबिन अनु िं धान षनदे शालय, भुवनेश्वर
 18. खरपतवार षवज्ञान अनु िंधान षनदे शालय, जबलपुर
 19. ग पशु प्राय जना षनदे शालय, मेरठ
 20. खुर एविं मुिंहपका र ग प्राय जना षनदे शालय, मु क्तेश्वर
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 21. कुिुट पालन प्राय जना षनदे शालय, है दराबाद
 22. पशु र ग षनगरानी एविं जीषवतता प्रय जना षनदे शालय, है ब्बल, बें गलूर
 23. कृषि ूचना एविं प्रकाशन षनदे शालय (दीपा(, नई षदल्ली
 24. शीत जल मान्धत्स्यकी अनु िंधान षनदे शालय, भीमताल, नैनीताल
 25. कृिक मषहला अनु िं धान षनदे शालय, भुवनेश्वर

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रबी की फ़सल
इन फ ल िं की बुआई के मय कम तापमान तर्ा पकते मय शु ष्क और गमथ वातावरर् की
आवश्यकता ह ती है । ये फ लें ामान्यतः अक्तू बरनवम्बर के मषहन िं में ब ई जाती हैं ।-

गेहूँ

गेहिं (Wheat ; वै ज्ञाषनक नाम : Triticum spp.), मध्य पूवथ के लेवािं त क्षेत्र े आई एक घा है षज की
खेती दु षनया भर में की जाती है । षवश्व भर में, भ जन के षलए उगाई जाने वाली धान्य फ ल िं
मे मिा के बाद गेहिं दू री ब े ज्यादा उगाई जाने वाले फ ल है , धान का स्र्ान गेहिं के ठीक
बाद ती रे स्र्ान पर आता है । गेहिं के दाने और दान िं क पी कर प्राप्त हुआ आटा र टी,
डबलर टी (ब्रे ड(, कुकीज, केक, दषलया, पास्ता, र , ष वईिं, नूडल्स आषद बनाने के षलए प्रय ग
षकया जाता है । गेहिं का षकण्वन कर षबयर, शराब, व द् का और जैवईिंधन बनाया जाता है । गेहिं की
एक ीषमत मात्रा मे पशु ओिं के चारे के रूप में प्रय ग षकया जाता है और इ के भू े क पशुओिं के
चारे या छत/छप्पर के षलए षनमाथ र् ामग्री के रूप में इस्तेमाल षकया जा कता है ।
हालािं षक दु षनया भर मे आहार प्र टीन और खाद्य आपूषतथ का अषधकािं श गे हिं द्वारा पूरा षकया जाता है ,
लेषकन गेहिं मे पाये जाने वाले एक प्र टीन ग्लूटेन के कारर् षवश्व का 100 े 200 ल ग िं में े एक
व्यन्धक्त पेट के र ग िं े ग्रस्त है ज शरीर की प्रषतरक्षा प्रर्ाली की इ प्र टीन के प्रषत हुई प्रषतषक्या
का पररर्ाम है । ( िंयुक्त राज्य अमेररका के आिं कड़ िं के आधार पर(

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महत्व

गेहाँ (षटर षटकम जाषत( षवश्वव्यापी महत्व की फ ल है । यह फ ल नानाषवध वातावरर् िं में उगाई
जाती है । यह लाख िं ल ग िं का मुख्य खाद्य है । षवश्व में कुल कृष्य भूषम के लगभग छठे भाग पर गेहाँ
की खेती की जाती है यद्यषप एषशया में मुख्य रूप े धान की खेती की जाती है , त भी गेहाँ षवश्व के
भी प्रायद्वीप िं में उगाया जाता है । यह षवश्व की बढ़ती जन िंख्या के षलए लगभग २० प्रषतशत आहार
कैल री की पूषतथ करता है । विथ २००७-०८ में षवश्वव्यापी गेहाँ उत्पादन ६२.२२ कर ड़ टन तक पहुाँ च
गया र्ा। चीन के बाद भारत गेहाँ दू रा षवशालतम उत्पादक है । गेहाँ खाद्यान्न फ ल िं के बीच षवषशष्ट्
स्र्ान रखता है । काबोहाइडरेट और प्र टीन गे हाँ के द मुख्य घटक हैं । गे हाँ में औ तन ११-१२ प्रषतशत
प्र टीन ह ता हैं । गेहाँ मु ख्यत: षवश्व के द मौ म ,िं यानी शीत एविं व िंत ऋतुओिं में उगाया जाता है ।
शीतकालीन गे हाँ ठिं डे दे श ,िं जै े यूर प, िं॰ रा॰ अमेररका, आिर े षलया, रू राज्य िंघ आषद में
उगाया जाता है जबषक व िंतकालीन गे हाँ एषशया एविं िंयुक्त राज्य अमेररका के एक षहस्से में उगाया
जाता है । व िंतकालीन गे हाँ १२०-१३० षदन िं में पररपक्व ह जाता है जबषक शीतकालीन गेहाँ पकने के
षलए २४०-३०० षदन लेता है । इ कारर् शीतकालीन गेहाँ की उत्पादकता विं तकालीन गेहाँ की
तुलना में अषधक हाती है ।

गुर्वत्ता क ध्यान में रखकर गेहाँ क द श्रेषर्य िं में षवभाषजत षकया गया है : मृदु गेहाँ एविं कठ र गेहाँ।

षटर षटकम ऐन्धिवम (र टी गेहाँ( मृदु गेहाँ ह ता है और षटर षटकम डयूरम कठ र गेहाँ ह ता है ।
भारत में मुख्य रूप े षटर षटकम की तीन जाषतय िं जै े ऐन्धिवम, डयूरम एविं डाइक कम की खेती
की जाती है । इन जाषतय िं द्वारा षन्नकट स्यगत क्शेत्र क्मश: ९५, ४ एविं १ प्रषतशत है । षटर षटकम
ऐन्धिवम की खेती दे श के भी क्षेत्र िं में की जाती है जबषक डयूरम की खेती पिंजाब एविं मध्य भारत
में और डाइक कम की खे ती कनाथ टक में की जाती है ।

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गेहिं की अणिक उपज दे ने वाली णकस्में

गेहाँ े षनषमथत षवषभन्न उत्पाद

अच्छी फ ल लेने के षलए गेहिं की षकस्म िं का ही चुनाव बहुत महत्वपूर्थ है । षवषभन्न अनुकूल क्षेत्र िं
में मय पर, तर्ा प्रषतकूल जलवायु, व भूषम की पररन्धस्र्षतय िं में, पक कर तै यार ह ने वाली, अषधक
उपज दे ने वाली व प्रकाशन प्रभावहीन षकस्में उपलब्ध हैं । उनमें े अने क रतुआर धी हैं । यद्यषप
`कल्ार् ना' लगातार र ग ग्रहर्शील बनता चला जा रहा है , लेषकन तब भी मय पर बुआई और
ूखे वाले क्षेत्र िं में जहािं षक रतुआ नहीिं लगता, अच्छी प्रकार उगाया जाता है । अब ` नाषलका'
आमतौर पर रतुआ े मु क्त है और उन भी क्षेत्र िं के षलए उपय गी है , जहािं षक ान अल्पकाषलक
(अगेती( षकस्म उगाना प न्द करते हैं । षद्वगुर्ी बौनी षकस्म `अजुथन' भी रतुओिं की र धी है और
मध्यम उपजाऊ भूषम की पररन्धस्र्षतय िं में मय पर बुआई के षलए अत्यन्त उपय गी है ,
परन्तु करनल बिंटा की बीमारी क शीघ्र ग्रहर् करने के कारर् इ की खे ती, पहाड़ी पषिय िं पर नहीिं

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की जा कती। `जनक' ब्राऊन रतुआ र धी षकस्म है । इ े पूवी उत्तर प्रदे श और नेपाल में भी उगाने
की ष फाररश की गई है । `प्रताप' पिंजाब, हररयार्ा, राजस्र्ान और पषिमी उत्तर प्रदे श के विाथ वाले
क्षेत्र िं में मध्यम उपजाऊ भूषम की पररन्धस्र्षतय िं में अच्छी प्रकार उगाया जाता है । `शेरा' ने मध्य भारत
व क टा और राजस्र्ान के उदयपुर मिंडल में षपछे ती, अषधक उपजाऊ भूषम की पररन्धस्र्षतय िं में,
उपज का अच्छा प्रदशथन षकया है ।
`राज ९११' मध्य प्रदे श, गुजरात, उत्तर प्रदे श के बुन्देलखण्ड क्षेत्र और दषक्षर्-पूवी राजस्र्ान में
ामान्य बुआई व ष िंषचत और अच्छी उपजाऊ भूषम की पररन्धस्र्षत में उगाना उषचत है । `मालषवका
ब न्ती' बौनी षकस्म महाराष्ट्र, कनाथ टक, आन्ध्र प्रदे श की अच्छी ष िंचाई व उपजाऊ भू षम की
पररन्धस्र्षतय िं के षलए अच्छी है । `यू पी २१५' महाराष्ट्र और षदल्ली में उगाई जा रही है । `म ती' भी
लगातार प्रचलन में आ रही है । यद्यषप दू रे स्र्ान िं पर इ क भुलाया जा रहा है । षपछले कई विों े
`डबल्ू जी-३५७' ने बहुत बड़े क्षे त्र में कल्ार् ना व पी वी-१८ का स्र्ान ले षलया है । षभन्न-षभन्न
राज्य िं में अपनी महत्वपू र्थ स्र्ानीय षकस्में भी उपलब्ध हैं । अच्छी षकस्म िं की अब कमी नहीिं हैं ।
षक ान अपने अनु भव के आधार पर, स्र्ानीय प्र ार कायथकताथ की हायता े , अच्छी व अषधक
पैदावार वाली षकस्में चुन लेता है । अच्छी पै दावार के षलए अच्छे बीज की आवश्यकता ह ती है और
इ बारे में षक ी भी प्रकार का मझौता नहीिं षकया जा कता।

भूषम का चुनाव: गे हिं की अच्छी पै दावार के षलए मषटयार दु मट भूषम ब े अच्छी रहती है , षकन्तु
यषद पौध िं क न्तु षलत मात्रा में खुराक दे ने वाली पयाथ प्त खाद दी जाए व ष िं चाई आषद की व्यवस्र्ा
अच्छी ह त हलकी भूषम े भी पै दावार ली जा कती है । क्षारीय एविं खारी भूषम गेहिं की खेती के
षलए अच्छी नहीिं ह ती है । षज भूषम में पानी भर जाता ह , वहािं भी गेहिं की खे ती नहीिं करनी चाषहए।

भूणम की तैयारी
खेत की षमिी क बारीक और भुरभुरी करने के षलए गहरी जुताई करनी चाषहए। बुआई े पहले
की जाने वाली परे ट (ष िंचाई( े पूवथ तवे दार हल (षडस्क है र ( े ज तकर पटे ला चला कर, षमिी क
मतल कर लेना चाषहए। बुआई े पहले २५ षक। ग्रा। प्रषत हे क्टेयर के षह ाब े १० प्रषतशत बी।
एच। ी। षमला दे ने े फ ल क दीमक और गुझई के आक्मर् े बचाया जा कता है । यषद
बुआई े पहले खेत में नमी नहीिं है त एक मान अिंकुरर् के षलए ष िंचाई आवश्यक है ।

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णवणभन्न दे शोिं में गेहूँ उत्पादन

गेहाँ की कटाई करती हुइ एक मषहला, राय ेन षजला, मध्य प्रदे श

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गेहूँ के प्रमुख उत्पादक
(णमणलयन मेणटर क टन ; १ णमणलयन )१० लाख =

रैं क दे श 2009 2010 2011 2012

1 चीनी जनवादी गर्राज्य 115 115 117 126

2 भारत 80 80 86 95

3 िंयुक्त राज्य 60 60 54 62

4 फ़्रान्स 38 40 38 40

5 रू 61 41 56 38

6 ऑिर े षलया 21 22 27 30

7 कनाडा 26 23 25 27

8 पाषकस्तान 24 23 25 24

9 जमथनी 25 24 22 22

10 तुकी 20 19 21 20

11 युक्ेन 20 16 22 16

12 ईरान 13 13 13 14

13 कज़ाष़िस्तान 17 9 22 13

14 यूनाइटे ड षकिंगडम 14 14 15 13

15 अजेण्टीना 9 15 14 11

— World 686 651 704 675

स्र त िंयुक्त राष्ट्र खाद्य एविं कृषि िंगठन :

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गेहूँ के प्रमुख उत्पादक
(णमणलयन मेणटर क टन ; १ णमणलयन )१० लाख =

रैं क दे श 2009 2010 2011 2012

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जौ
जौ पृथ्वी पर ब े प्राचीन काल े कृषि षकये जाने वाले अनाज िं में े एक है । इ का उपय ग
प्राचीन काल े धाषमथक िंस्कार िं में ह ता रहा है । िंस्कृत में इ े कहते "यव"
हैं । रू , यूक्ेन, अमरीका, जमथनी, कनाडा और भारत में यह मु ख्यतपै दा ह ता है । :

पररचय
ह रषडयम षडन्धिन (Hordeum distiehon), षज की उत्पषत्त मध्य अफ्रीका और ह रषडयम वलगेयर
(H. vulgare), ज यूर प में पैदा हुआ, इ की द मु ख्य जाषतयााँ है । इनमें षद्वतीय अषधक प्रचषलत है ।
इ े मशीत ष्ण जलवायु चाषहए। यह मु द्रतल े 14,000 फुट की ऊाँचाई तक पै दा ह ता है । यह
गेहाँ के मुकाबले अषधक हनशील पौधा है । इ े षवषभन्न प्रकार की भूषमय िं में ब या जा कता है , पर
मध्यम, द मट भूषम अषधक उपयुक्त है । खे त मतल और जलषनका य ग्य ह ना चाषहए। प्रषत
एकड़ इ े 40 पाउिं ड नाइटर जन की आवश्यकता ह ती है , ज हरी खाद दे ने े पूर्थ ह जाती है ।
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अन्यर्ा नाइटर जन की आधी मात्रा काबथषनक खाद - ग वर की खाद, किंप ि तर्ा खली - और आधी
अकाबथषनक खाद - ऐम षनयम ल्फेट और षडयम नाइटर े ट - के रूप में क्मशः: ब ने के एक मा
पूवथ और प्रर्म ष िंचाई पर दे नी चाषहए। अष िंषचत भूषम में खाद की मात्रा कम दी जाती है ।
आवश्यकतानु ार फॉस्फ र भी षदया जा कता है ।
एक एकड़ ब ने के षलये 30-40 ेर बीज की आवश्यकता ह ता है । बीज बीजवषपत्र (seed drill) े ,
या हल के पीछे कूड़ में, नौ नौ इिं च की मान दू री की पिंन्धक्तय िं मे अक्टू बर नविं बर में ब या जाता है ।
पहली ष िंचाई तीन चार प्ताह बाद और दू री जब फ ल दू षधया अवस्र्ा में ह तब की जाती है ।
पहली ष िंचाई के बाद षनराई गुड़ाई करनी चाषहए। जब पौध िं का डिं ठल षबलकुल ूख जाए और
झुकाने पर आ ानी े टू ट जाए, ज माचथ अप्रैल में पकी हुई फ ल क काटना चाषहए। षफर गट्ठर िं
में बााँ धकर शीघ्र मड़ाई कर लेनी चाषहए, क् षिं क इन षदन िं तूफान एविं विाथ का अषधक डर रहता है ।

जौ, जई एविं उन े बने कुछ उत्पाद

बीज का िंचय बड़ी बड़ी बाषलयााँ छााँ टकर करना चाषहए तर्ा बीज क खूब ुखाकर घड़ ाँ में बिंद
करके भू े में रख दें । एक एकड़ में ८-१० न्धक्विंटल उपज ह ती है । भारत की ाधारर् उपज 705
पाउिं ड और इिं ग्लैंड की 1990 पाउिं ड है । शस्यचक् की फ लें मुख्यत: चरी, मिा, कपा एविं
बाजरा हैं । उन्नषतशील जाषतयााँ , ी एन 294 हैं । जौ का दाना
लावा, त्तू, आटा, माल्ट और शराब बनाने के काम में आता है । भू ा जानवर िं क न्धखलाया जाता है ।
जौ के पौध िं में किंड्डी (आवृ त काषलका( का प्रक प अषधक ह ता है , इ षलये ग्रष त पौध िं क खेत े
षनकाल दे ना चाषहए। षकिंतु ब ने के पूवथ यषद बीज िं का उपचार ऐग्र न जी एन द्वारा कर षलया जाय
त अषधक अच्छा ह गा। षगरवी की बीमारी की र क र्ाम तर्ा उपचार अगै ती ब वाई ेह कता
है ।

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उत्पादक दे श

वाथ षधक जौ उत्पादक दे श


(षमषलयन मीषटर क टन(

रैं क दे श 2009 2010 2011

01 रू 17.8 8.3 16.9

02 युक्ेन 11.8 8.4 9.1

03 फ़्रान्स 12.8 10.1 8.8

04 जमथनी 12.2 10.4 8.7

05 ऑिर े षलया 7.9 7.2 7.9

06 कनाडा 9.5 7.6 7.7

07 तुकी 7.3 7.2 7.6

08 यूनाइटे ड षकिंगडम 6.6 5.2 5.4

09 अजेण्टीना 1.3 2.9 4.0

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वाथ षधक जौ उत्पादक दे श
(षमषलयन मीषटर क टन(

रैं क दे श 2009 2010 2011

10 िंयुक्त राज्य 4.9 3.9 3.3

— World total 151.8 123.7 134.3

स्र त:
खाद्य एविं कृषि िं गठन ( िं युक्त राष्ट्र िं घ(

न २००७ में षवश्व भर में लगभग १०० दे श िं में जौ की खेती हुई। १९७४ में पूरे षवश्व में जौ का
उत्पादन लगभग 148,818,870 टन र्ा उ के बाद उत्पादन में कुछ कमी आयी है । 2011 के
आिं कड िं के अनु ार यू क्ेन षवश्व में वाथ षधक जौ षनयाथ तक दे श र्ा।

जलवायु

जौ शीत ष्ण जलवायु की फ ल है , लेषकन मशीत ष्ण जलवायु में भी इ की खेती फलतापूवथ् क
की जा कती है । जौ की खेती मुद्र तल े 4000 मीटर की ऊिंचाई तक की जा कती है । जौ की
खेती के षलये ठिं डी आैै र नम जलवायु उपयुक्त रहती है । जौ की फ ल के षलये न्यूनतम तापमान
35-40°F, उच्चतम तापमान 72-86°F आैै र उपयु क्त तापमान 70°F ह ता है ।

भारतीय सिं स्कृणत में जौ

भारतीय िंस्कृषत में त्यौहार िं और शादी-ब्याह में अनाज के ार् पूजन की पौराषर्क परिं परा है । षहिं दू
धमथ में जौ का बड़ा महत्व है । धाषमथ क अनुष्ठान ,िं शादी-ब्याह ह ली में लगने वाले नव भारतीय िंवत्
में नवा अन्न खाने की परिं परा षबना जौ के पूरी नहीिं की जा कती। इ ी के चलते ल ग ह षलका की
आग े षनकलने वाली हल्की लपट िं में जौ की हरी कच्ची बाली क आिं च षदखाकर रिं ग खेलने के

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बाद भ जन करने े पहले दही के ार् जौ क खाकर नवा (नए( अन्न की शुरुआत ह ने की परिं परा
का षनवथ हन करते हैं ।
जौ का उपय ग बे षटयाैे ैिं के षववाह के मय ह ने वाले द्वाराचार में भी ह ता है । घर की मषहलाएिं वर
पक्ष के ल ग िं पर अपनी चौखट पर मिंगल गीत गाते हुए दू ल्हे षहत अन्य ल गाैे ैिं पर इ की बौछार
करना शुभ मानती हैं । मृ त्यु के बाद ह ने वाले कमथकािं ड त षबना जौ के पू रे नहीिं ह कते। ऐ ा
शास्त्र िं में भी षलखा है ।

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चना

चना चना एक प्रमु ख दलहनी फ ल है । चना के आटे क बे न कहते हैं ।

काबुली चना
चने की ही एक षकस्म क काबुली चना या प्रचषलत भािा में छ ले भी कहा जाता है । ये हल्के बादामी
रिं ग के काले चने े अपे क्षाकृत बड़े ह ते हैं । ये अफ्गाषनस्तान, दषक्षर्ी यूर प,
उत्तरी अफ़्रीका और षचली में पाए जाते रहे हैं । भारतीय उपमहाद्वीप में अट्ठारहवीिं दी े लाए गए
हैं , व प्रय ग ह रहे हैं ।

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चने की खेती

फूल और फल षहत चने का पौधा

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A - चने का तना, शाखाएाँ एविं पषत्तयााँ ;
B - चने की फली (तने के ार् लगी हुई(;
C - चने का बीज या दाना

Cicer arietinum noir

नीचे चना की उन्नत उत्पादन तकनीक दी गयी है ज उत्तरी भारत के षलये षवशेि रूप े लागू ह ती
है -

बुआई का मयः मय पर बुआई 1-15 नविं बर व पछे ती बुआई 25 नविं बर े 7 षद िंबर तक

 बीज की मात्राः म टे दान िं वाला चना 80-100 षकप्रषत हे क्टेयर .ग्रा. ; ामान्य दान िं वाला चनाः
70-80 षकप्रषत हे क्टेयर .ग्रा.

 बीज उपचारः बीमाररय िं े बचाव के षलए र्ीरम या बाषविीन 2.5 ग्राम प्रषत षकबीज के .ग्रा.
षह ाब े उपचाररत करें । राइज षबयम टीका े200 ग्राम टीका प्रषत 35-40 षकबीज क .ग्रा.
उपचाररत करें ।

 उवथ रकः उवथ रक िं का प्रय ग षमिी परीक्षर् के आधार पर करें ।


नत्रजनः 20 षक( प्रषत हे क्टेयर .ग्रा.100 षक(डाई अम षनयम फास्फेट .ग्रा.
फास्फ र ः 50 षकप्रषत हे क्टेयर .ग्रा.
षजिंक ल्फेटः 25 षकप्रषत हे क्टेयर .ग्रा.

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 बुआई की षवषधः चने की बुआई कतार िं में करें । गहराईः 7 े 10 ेंगहराई पर बीज .मी.
डालें। कतार े कतार की दू रीः30 ें(दे ी चने के षलए( .मी. ; 45 ेंकाबु ली चने के ( .मी.
(षलए

 खरपतवार षनयिं त्रर्ः


फ्रलूक्ल रे षलन 200 ग्राम ( षक्य तत्व( का बुआई े पहले या पेंडीमेर्ालीन 350 ग्राम ( षक्य
तत्व( का अिंकुरर् े पहले 300-350 लीटर पानी में घ ल बनाकर एक एकड़ में षछड़काव करें ।
पहली षनराई-गु ड़ाई बुआई के 30-35 षदन बाद तर्ा दू री 55-60 षदन बाद आवश्यकतानु ार
करें ।

 ष िंचाईः यषद खे त में उषचत नमी न ह त पलेवा करके बुआई करें । बुआई के बाद खेत में
नमी न ह ने पर द ष िं चाई, बुआई के 45 षदन एविं 75 षदन बाद करें ।
पौि सिं रक्षि
कटु आ सूिं डी )एगरोटीस इपसीलोन(

इ कीड़े की र कर्ाम के षलए 200 षम.ली. फेनवालरे ट (20 ई. ी.( या 125 षम.ली.
ाइपरमैथ्रीन (25 ई. ी.( क 250 लीटर पानी में षमलाकर प्रषत हे क्टेयर की दर े
आवश्यकतानु ार षछड़काव करें ।

फली छे दक (हे षलक वरपा आरमीजेरा(

यह कीट चने की फ ल क ब े ज्यादा नुक ान पहुिं चाता है । इ े बचाव के षलए 125


षम.ली. ाइपरमैथ्रीन (25 ई. ी.( या 1000 षम.ली. काबाथ ररल (50 डब्ल्यू .पी.( क 300-400
लीटर पानी में घ ल बनाकर उ मय षछड़काव करें जब कीड़ा षदखाई दे ने लगे। यषद
जरूरी ह त 15 षदन बाद द बारा षछड़काव करें ।
उक्ठा रोगः
इ र ग े बचाव के षलए उपचाररत करके ही बीज की बुआई करें तर्ा बुआई 25 अक्टू बर
े पहले न करें ।
जड़ गलनः
इ र ग के प्रभाव क कम करने के षलए र गग्रस्त पौध िं क ज्यादा न बढ़ने दें । र गग्रस्त
पौध िं एविं उनके अवशेि क जलाकर नष्ट् कर दें या उखाड़कर गहरा जमीन में दबा दें ।
अषधक गहरी ष िं चाई न करें ।
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चना के उत्पादन का णवश्व णवतरि

चना का ब े ज्यादा उत्पादन भारत में ह ता है ।

2013 में चने (Chickpea) का उत्पादन

१९६१ े २०१३ तक चने (Chickpea) का उत्पादन

चने के प्रमु ख उत्पादक दे श


(मीषटर क टन में(

उत्पादक रैं क
दे श 2010 2011 2012 2013
(2013)

8,832,50
1 भारत 7,480,000 8,220,000 7,700,000
0

2 ऑिर े षलया 602,000 513,338 673,371 813,300

3 561,500 496,000 291,000 751,000


पाषकस्तान

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चने के प्रमु ख उत्पादक दे श
(मीषटर क टन में(

उत्पादक रैं क
दे श 2010 2011 2012 2013
(2013)

4 तुकी 530,634 487,477 518,000 506,000

5 म्यान्मार 441,493 473,102 500,000 490,000

6 इषर्य षपया 284,640 322,839 409,733 249,465

7 ईरान 267,768 290,243 315,000 295,000

8 मेन्धक्सक 131,895 72,143 271,894 209,941

9 कनाडा 128,300 90,800 161,400 169,400

िंयुक्त
10 87,952 99,881 151,137 157,351
राज्य

13,102,0
— षवश्व 10,897,040 11,497,054 11,613,037
23

Source: FAO Source: FAO

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दाल

चने क दल कर द न पत्रक अलग अलग ह ने पर चने की दाल षमलती है । चने की दाल का


प्रय ग भ जन में षवशेि रूप े षकया जाता है । ये अत्यषधक गुर्कारी ह ती है । इ की दाल
क पी कर आटा प्राप्त षकया जाता है षज े ामान्य भािा मे बे न कहा जाता है । बे न े
भारत मे कई प्रकार के स्वाषदष्ट् व्यिंजन बनाये जाते है जै े बे न चिी , बे न के चीले ,
आलूबड़े आषद।
यह अनुभाग खाली है , अर्ाथ त पयाथ प्त रूप े षवस्तृ त नहीिं है या अधूरा है ।

मसू र

म ूर एक दलहन है । इ का वानस्पषतक नाम (Lens esculenta) है । इ की प्रकृषत गमथ, शुष्क,


रक्तविथ क एविं रक्त में गाढ़ापन लाने वाली ह ती है । दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कि व अषनयषमत पाचन
षक्या में म ूर की दाल का ेवन लाभकारी ह ता है । म ूर एक प्रमुख फ ल है |

मसू र के उत्पादन के णलए भौगोणलक कारक

 उत्पादक कषटबि -
 तापमान -
 विाथ -
 षमिी -
णवश्व के णवणभन्न दे शोिं में मसूर उत्पादन

वाथ षधक म ूर उत्पादक १० दे श – 2007

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दे श उत्पादन (टन) षटप्पर्ी

भारत 1,400,000 *

कनाडा 669,700

तुकी 580,260

चीनी जनवादी गर्राज्य 180,000 F

ीररया 165,000 F

नेपाल 164,694

िंयुक्त राज्य 154,584

ऑिर े षलया 131,000

बािं ग्लादे श 119,000 F

ईरान 115,000 F

सरसोिं

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र िं क्ू ीफेरी (ब्रै ीके ी( कुल का षद्वबीजपत्री, एकविीय शाक जातीय पौधा है । इ का
वै ज्ञाषनक नाम ब्रेष का कम्प्रे षट है । पौधे की ऊाँचाई १ े ३ फुट ह ती है । इ के तने में शाखा-
प्रशाखा ह ते हैं । प्रत्येक पवथ न्धिय िं पर एक ामान्य पत्ती लगी रहती है । पषत्तयााँ रल, एकान्त
आपाती, बीर्कार ह ती हैं षजनके षकनारे अषनयषमत, शीिथ नुकीले, षशराषवन्या जाषलकावत ह ते
हैं । इ में पीले रिं ग के म्पूर्थ फूल लगते हैं ज तने और शाखाओिं के ऊपरी भाग में न्धस्र्त ह ते हैं ।
फूल िं में ओवरी ु पीररयर, लम्बी, चपटी और छ टी वषतथकावाली ह ती है । फषलयााँ पकने पर फट
जाती हैं और बीज जमीन पर षगर जाते हैं । प्रत्येक फली में ८-१० बीज ह ते हैं । उपजाषत के आधार
पर बीज काले अर्वा पीले रिं ग के ह ते हैं । इ की उपज के षलए द मट षमिी उपयु क्त है । ामान्यतः
यह षद म्बर में ब ई जाती है और माचथ-अप्रैल में इ की कटाई ह ती है । भारत में इ की
खेती पिंजाब, उत्तर प्रदे श, षबहार, पषिम बिं गाल और गुजरात में अषधक ह ती है ।

पुष्प ूत्र -

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महत्त्व

जमथनी में र िं के ते ल का उपय ग जैव ईिंधन के रूप में भी षकया जाता है ।

र िं के बीज े तेल षनकाला जाता है षज का उपय ग षवषभन्न प्रकार के भ ज्य पदार्थ बनाने और
शरीर में लगाने में षकया जाता है । इ का ते ल अिं चार, ाबुन तर्ा न्धग्ल राल बनाने के काम आता
है । तेल षनकाले जाने के बाद प्राप्त खली मवे षशय िं क न्धखलाने के काम आती है । खली का
उपय ग उवथ रक के रूप में भी ह ता है । इ का ू खा डिं ठल जलावन के काम में आता है । इ के हरे
पत्ते े िी भी बनाई जाती है । इ के बीज िं का उपय ग म ाले के रूप में भी ह ता है ।
यह आयुवेद की दृषष्ट् े भी बहुत महत्त्वपू र्थ है । इ का ते ल भी चमथ र ग िं े रक्षा करता है । र िं
र और षवपाक में चरपरा, षिग्ध, कड़वा, तीखा, गमथ, कफ तर्ा वातनाशक, रक्तषपत्त और
अषिविथ क, खुजली, क ढ़, पेट के कृषम आषद नाशक है और अनेक घरे लू नु स् िं में काम आता है ।
जमथनी में र िं के ते ल का उपय ग जैव ईिंधन के रूप में भी षकया जाता है ।

सरसोिं की खेती

भारत में मूाँगफली के बाद र िं दू री ब े महत्वपूर्थ षतलहनी फ ल है ज मुख्यतया राजस्र्ान,


पिंजाब, मध्य प्रदे श, उत्तर प्रदे श, षबहार, उड़ी ा, पषिम बिंगाल एविं अ म में उगायी जाती है । र िं
की खेती कृिक िं के षलए बहुत ल कषप्रय ह ती जा रही है क् षिं क इ े कम ष िंचाई व लागत े
अन्य फ ल िं की अपे क्षा अषधक लाभ प्राप्त ह रहा है । इ की खेती षमषश्रत फ ल के रूप में या द
फ लीय चक् में आ ानी े की जा कती है । र िं की कम उत्पादकता के मु ख्य कारर् उपयु क्त
षकस्म िं का चयन अ िंतुषलत उवथ रक प्रय ग एविं पादप र ग व कीट िं की पयाथ प्त र कर्ाम न करना,
आषद हैं । अनु िंधन िं े पता चला है षक उन्नतशील स्य षवषधयााँ अपना कर र िं े 25 े 30
न्धक्विंटल प्रषत हे क्टेयर तक उपज प्राप्त की जा कती है । फ ल की कम उत्पादकता े षक ान िं की

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आषर्थक न्धस्र्षत काफी हद तक प्रभाषवत ह ती है । इ पररप्रेक्ष्य में यह आवश्यक है षक इ फ ल
की खे ती उन्नतशील स्य षवषधयााँ अपनाकर की जाये।
खेत का चुनाव व तै यारी
र िं की अच्छी उपज के षलए मतल एविं अच्छे जल षनका वाली बलुई द मट े द मट षमिी
उपयुक्त रहती है , लेषकन यह लवर्ीय एविं क्षारीयता े मुक्त ह । क्षारीय भू षम े उपयु क्त षकस्म िं
का चुनाव करके भी इ की खेती की जा कती है । जहााँ की मृ दा क्षारीय े वहािं प्रषत ती रे
विथ षजप्सम 5 टन प्रषत हे क्टेयर की दर े प्रय ग करना चाषहए। षजप्सम की आवश्यकता मृ दा पी.
एच. मान के अनु ार षभन्न ह कती है । षजप्सम क मई-जून में जमीन में षमला दे ना चाषहए। र िं
की खे ती बारानी एविं ष िंषचत द न िं ही दशाओिं में की जाती है । ष िंषचत क्षेत्र िं में पहली जुताई षमिी
पलटने वाले हल े और उ के बाद तीन-चार जुताईयािं तबेदार हल े करनी चाषहए। प्रत्येक जु ताई
के बाद खे त में पाटा लगाना चाषहए षज े खेत में ढे ले न बनें। बुआई े पूवथ अगर भूषम में नमी की
कमी ह त खे त में पलेवा करने के बाद बुआई करें । फ ल बुआई े पूवथ खे त खरपतवार िं े रषहत
ह ना चाषहए। बारानी क्षेत्र िं में प्रत्येक बर ात के बाद तवे दार हल े जुताई करनी चाषहए षज े
नमी का िंरक्षर् ह के। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाना चाषहए षज े षक मृदा में नमी बने
रहे । अिंषतम जुताई के मय 1.5 प्रषतशत क्ूनॉलफॉ 25 षकल ग्राम प्रषत हे क्टेयर की दर े मृदा
में षमला दें , ताषक भूषमगत कीड़ िं े फ ल की ुरक्षा ह के।
उन्नत णकस्में

बीज की मात्रा, बीज पचार एविं बुआई बुआई में दे री ह ने के उपज और तेल की मात्रा द न िं में कमी
आती है । बुआई का उषचत मय षकस्म के अनु ार ष तम्बर मध्य े लेकर अिंत तक है । बीज की
मात्रा प्रषत हे क्टेयर 4-5 षकल ग्राम पयाथ प्त ह ती है । बुआई े पहले बीज िं क उपचाररत करके ब ना
चाषहए। बीज पचार के षलए काबेण्डाषजम (बॉषविीन( 2 ग्राम अर्वा एप्र न (ए .डी. 35) 6 ग्राम
कवकनाशक दवाई प्रषत षकल ग्राम बीज की दर े बीज पचार करने े फ ल पर लगने वाले र ग िं
क काफी हद तक कम षकया जा कता है । बीज क पौधे े पौधे की दू री 10 ें .मी. रखते हुय
कतार िं में 5 ें.मी. गहरा ब यें। कतार के कतार की दू री 45 ें.मी. रखें। बरानी क्षे त्र िं में बीज की
गहराई मृ दा नमी के अनु ार करें ।
समय पर बुआई वाली णसिंणचत क्षेत्र की णकस्में

पकाव अवषध उपज / .ग्रा.षक( तेल पैदावार के षलए


षकस्में
(षदन( (.हक्टे (प्रषतशत( उपयुक्त क्षेत्र

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राजस्र्ान,
पू ा ब ल्ड 110-140 2000-2500 40 गुजरात, षदल्ली,
महाराष्ट्र

पू ा जयषक ान गुजरात, महाराष्ट्र,


155-135 2500-3500 40
बाय (902) राजस्र्ान

हररयार्ा, उत्तर
क्ान्धन्त 125-135 1100-2135 42
प्रदे श, राजस्र्ान

हररयार्ा, पिंजाब,
आर एच 30 130-135 1600-2200 39
पषिमी राजस्र्ान

गुजरात,
हररयार्ा, जम्मू व
आर एल एम 619 140-145 1340-1900 42
कश्मीर,
राजस्र्ान

पू ा षवजय 135-154 1890-2715 38 षदल्ली

पिंजाब, षदल्ली,
पू ा मिडथ 21 137-152 1800-2100 37 राजस्र्ान, उत्तर
प्रदे श

पिंजाब, हररयार्ा,
पू ा मिडथ 22 138-148 1674-2528 36
राजस्र्ान

40
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41
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सिंकर णकस्में

पकाव अवषध उपज तेल पैदावार के षलए उपयुक्त


षकस्में
(षदन( (.है /.ग्रा.षक( (प्रषतशत( क्षेत्र

एन आर ी एच उत्तर प्रदे श, मध्य प्रदे श, पूवी


130-140 1550-2542 41
बी 506 राजस्र्ान

पिंजाब, हररयार्ा, षदल्ली,


डी एम एच 1 145-150 1782-2249 39
राजस्र्ान

उत्तर प्रदे श, मध्य प्रदे श,


पी ए ी 432 130-135 2000-2200 41
राजस्र्ान

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अणसिंणचिंत क्षेत्र के णलए णकस्में

पकाव अवषध उपज तेल पैदावार के षलए उपयुक्त


षकस्में
(षदन( (.है /.ग्रा.षक( (प्रषतशत( क्षेत्र

अरावली 130-135 1200-1500 42 राजस्र्ान, हररयार्ा

पिंजाब, हररयार्ा,
गीता 145-150 1700-1800 40
राजस्र्ान

आर जी एन पिंजाब, हररयार्ा,
138-157 1600-2000 40
48 राजस्र्ान

षदल्ली, हररयार्ा, पिं जाब,


आर बी 50 141-152 846-2425 40 राजस्र्ान, जम्मू व
कश्मीर

अ म, षबहार, उडी ा,
पू ा बहार 108-110 1000-1200 42
पषिम बिं गाल

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अगेती बुआई तिा कम समय में पकने वाली णकस्में

पकाव अवषध उपज तेल पैदावार के षलए उपयुक्त


षकस्में
(षदन( (.है /.ग्रा.षक( (प्रषतशत( क्षेत्र

षदल्ली, हररयार्ा, पिं जाब,


पू ा अग्रर्ी 110-115 1500-1800 40
राजस्र्ान

पू ा मिडथ उत्तर प्रदे श, मध्य प्रदे श,


115-120 1400-1700 42
27 उतराखिं ड, राजस्र्ान

पू ा मिडथ हररयार्ा, राजस्र्ान, पिंजाब,


105-110 1750-1990 41.5
28 षदल्ली, जम्मू कश्मीर

पू ा र िं
105-110 39.6 उत्तरी पषिमी राज्य
25

पू ा तारक 118-123 40 उत्तरी पषिमी राज्य

पू ा महक 115-120 40 उत्तरीपूवी व पूवी राज्य-

दे र से बोई जाने वाली णकस्में

पकाव उपज तेल


षकस्में पैदावार के षलए उपयुक्त क्षेत्र
अवषध (षदन( (.है /.ग्रा.षक( (प्रषतशत(

एन आर ी
120-125 1200-1450 40 उत्तर प्रदे श, मध्य प्रदे श, राजस्र्ान

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एच बी 101

ी ए 56 113-147 1170-1425 38 पिंजाब, हररयार्ा, राजस्र्ान

आर आर एन
121-127 1200-1400 40 राजस्र्ान
505

आर जी एन
121-141 1450-1640 39 षदल्ली पिंजाब, हररयार्ा
145

पू ा मिडथ राजस्र्ान, पिंजाब, हररयार्ा, षदल्ली,


135-145 2020-2900 37
24 जम्मू व कश्मीर

पू ा मिडथ जम्मू व कश्मीर, पिंजाब, हररयार्ा,


123-128 1400-1800 38
26 राजस्र्ान, षदल्ली, उत्तर प्रदे श

लविीय मृदा की णकस्में

पकाव अवषध उपज तेल पैदावार के षलए उपयुक्त


षकस्में
(षदन( (.है /.ग्रा.षक( (प्रषतशत( क्षेत्र

भी लवर्ीयता प्रभाषवत
ी ए 54 135-145 1600-1900 40
क्षेत्र

भी लवर्ीयता प्रभाषवत
ी ए 52 135-145 580-1600 41
क्षेत्र

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नरे न्द्र राई भी लवर्ीयता प्रभाषवत
125-130 1100-1335 39
1 क्षेत्र

उवषरकोिं का उपयोग

मृदा की उवथ रता एविं उत्पादकता बनाये रखने के षलए उवथ रक िं का िंतुषलत उपय ग बहुत आवश्यक
ह ता है । िंतुषलत उवथ रक उपय ग के षलए षनयषमत भूषम परीक्षर् आवश्यक ह ता है । मृ दा परीक्षर्
के आधर पर उवथ रक िं की मात्रा षनधथररत की जा कती है । र िं की फ ल नत्राजन के प्रषत
अषधक िंवेदनशील ह ती है व इ की आवश्यकता भी अषधक मात्रा में ह ती है । अष िंषचत क्षेत्र िं में
र िं की फ ल में 40-60 षकल ग्राम नत्राजन, 20-30 षकल ग्राम फास्फ र , 20 षकल ग्राम
प टाश व 20 षकल ग्राम ल्फर की आवश्यकता है जबषक ष िंषचत फ ल क 80-120 षकल ग्राम
नत्राजन, 50-60 षकल ग्राम फास्फ र , 20-40 षकल ग्राम प टाश व 20-40 षकल ग्राम ल्फर की
आवश्यकता ह ती है । नत्राजन की पूषतथ हे तु अम षनयम ल्फेट का उपय ग करना चाषहए क् षिं क
इ में ल्फर की उपलब्ध् रहता है । ष िंषचत क्षेत्र िं में नत्राजन की आधी मात्रा व फास्फ र प टाश
एविं ल्फर की पूरी मात्रा क बुआई के मय, बीज े 5 ें.मी. नीचे मृ दा में दे ना चाषहए तर्ा
नत्राजन की शेि आधी मात्रा क पहली ष िं चाई के ार् दे ना चाषहए। षअिंषचत क्षे त्र िं में उवथ रक िं की
म्पूर्थ मात्रा बुआई के मय खेत में डाल दे नी चाषहए।

र िं की फ ल े अषधक उपज प्राप्त करने के षलए ूक्ष्म प िक तत्व िं का उपय ग


अषतआवश्यक ह ता है । षजिंक की कमी वाली मृदा में षजिंक डालने े करीब 25-30 प्रषतशत तक
पैदावार में वृ न्धि ह ती है । षजिंक की पूषतथ हे तु भूषम में बुआई े पहले 25 षकल ग्राम षजिं क ल्फेट
प्रषत हे क्टेयर अकेले या जै षवक खाद के ार् प्रय ग षकया जा कता है । अगर खड़ी फ ल में षजिंक
की कमी के लक्षर् षदखाई दे त 0.5 प्रषतशत षजिं क ल्फेट व 0.25 प्रषत बुझे हुए चूने (200 लीटर
पानी में 1 षकल ग्राम षजिं क ल्फेट तर्ा बुझे हुए चूने( का घ ल बनाकर पर्ीय षछड़काव करना
चाषहए। ब र न की कमी वाली मृदाओिं में 10 षकल ग्राम ब रे क्स प्रषत हे क्टेयर की दर े बुआई के
पूवथ मृदा में षमला दें ।
िायो यु ररया का प्रयोग

अनु िंधन िं एव परीक्षर् िं के ज्ञात हुआ है षक र्ाय युररया के प्रय ग े र िं की उपज क 15 े 20


प्रषतशत तक बढाया जा कता है । र्ाय युररया में उपन्धस्र्त ल्फर के कारर् पौधें की आन्तररक
काषयथ की में ु धर ह ता है । र्ाय युररया में 42 प्रषतशत गिंध्क एविं 36 प्रषतशत नत्राजन ह ती है । र िं
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की फ ल में 0.1 प्रषतशत र्ाय यु ररया (500 लीटर पानी में 500 ग्राम र्ाय यु ररया( के द पर्ीय
षछड़काव उपयुक्त पाये गये हैं । पहला षछड़काव फूल आने के मय (बुआई के 50 षदन बाद( एविं
दू रा षछड़काव फषलयािं बनते मय करना चाषहए।
जैणवक खाद
अष िंषचत क्षेत्र िं में 4-5 टन प्रषत हे क्टेयर तर्ा ष िं षचत क्षेत्र िं में 8-10 टन प्रषत हे क्टेयर की दर े अच्छी
ड़ी हुई ग बर की खाद बुआई के एक माह पूवथ खेत में डालकर जुताई कर अच्छी तरह मृदा में
षमला दें । ग बर की खाद में मुख्य प िक तत्व िं के ार् ूक्ष्म प िक तत्व भी पाये जाते हैं षज े पौधें
क उषचत प िर् प्राप्त ह ता है । ग बर की खाद े मृदा की जल धरर् क्षमता में वृ न्धि ह ती है एविं
मृदा िंरचना में ु धर ह ता है । अतः भूषम की उवथ रा शन्धक्त क बनाये रखने के षलए जै षवक खाद िं का
उपय ग आवश्यक ह ता है । र िं की फ ल े पूवथ हरी खाद का भी प्रय ग षकया जा कता है ।
इ के षलए विाथ शुरू ह ते ही ढैं चा की बुआई करें व 45-50 षदन बाद फूल आने े पहले मृदा में
दबा दे ना चाषहए। ष िंषचत एविं बारानी द न िं क्षेत्र िं में पी.ए .बी. (10-15 ग्राम प्रषत षकल ग्राम बीज(
एविं एज ट बैक्टर े बीज पचार भी लाभदायक रहता है , इ के नत्राजन एविं फास्फ र की
उपलबध्ता बढ़ती है व उपज में वृ न्धि ह ती है ।

पौिें का णवरलीकरि

खेत में पौधें की उषचत िंरक्षर् और मान बढ़वार के षलए बुआई के 15-20 षदन बाद पौधें का
षवरलीकरर् आवश्यक रूप े करना चाषहए। षवरलीकरर् द्वारा पौधें े पौधें की दू री 10 े 15
े.मी. कर दे नी चाषहए षज े पौधें की उषचत बढ़वार ह कें।
जल प्रबिंिन
र िं की अच्छी फ ल के षलए पहली ष िंचाई खे त की नमी, फ ल की जाषत और मृ दा प्रकार क
दे खते हुए 30 े 40 षदन के बीच फूल बनने की अवस्र्ा पर ही करनी चाषहए। दू री ष िंचाई फषलयािं
बनते मय (60-70 षदन( करना लाभदायक ह ता है । जहााँ पानी की कमी ह या खारा पानी ह वहााँ
ष पफथ एक ही ष िंचाई करना अच्छा रहता है । बारानी क्षेत्र िं में र िं की अच्छी उपज प्राप्त करने के
षलए मान ून के दौरान खेत की अच्छी तरह द -तीन बार जुताई करें एविं ग बर की खाद का प्रय ग
करें षज े मृदा की जल धरर् क्षमता में वृ न्धि ह ती है । वाष्पीकरर् द्वारा नमी का ह्रा र कने के
षलए अन्तः स्य षक्यायें करें एविं मृदा तह पर जलवार का प्रय ग करें ।

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खरपतवार णनयिंत्रि

खरपतवार फ ल के ार् जल, प िक तत्व ,िं स्र्ान एविं प्रकाश के षलए प्रषतस्पधथ करते हैं ।
खरपतवार िं क खेत े षनकालने और नमी िंरक्षर् के षलए बुआई के 25 े 30 षदन बाद षनराई-
गुड़ाई करनी चाषहए। खरपतवार िं के कारर् र िं की उपज में 60 प्रषतशत तक की कमी आ जाती
है । खरपतवार षनयिं त्रर् के षलए खुरपी एविं है ण्ड ह का प्रय ग षकया जाता है । र ायषनक खरपतवार
षनयिंत्रर् के षलए फ्रलु क्ल रे षलन (45 ई. ी.( की एक लीटर षक्य तत्व/हे क्टेयर (2.2 लीटर दवा( की
दर े 800 लीटर पानी में षमलाकर बुआई के पू वथ षछड़काव कर भूषम में भली-भािं षत षमला दे ना
चाषहए अर्वा पेन्डीषमर्ेलीन (30 ई. ी( की 1 लीटर षक्य तत्व (3.3 लीटर दवाि क 800 लीटर
पानी में षमलाकर बुआई के तुरन्त बाद (बुआई के 1-2 षदन के अन्दर( षछड़काव करना चाषहए।
कीट एविं रोग प्रबिं िन

र िं की उपज क बढाने तर्ा उ े षटकाउफ बनाने के मागथ में नाशक जीव िं और र ग िं का प्रक प
एक प्रमु ख मस्या है । इ फ ल क कीट िं एविं र ग िं े काफी नुक ान पहुिं चता है षज े इ की
उपज में काफी कमी ह जाती है । यषद मय रहते इन र ग िं एविं कीट िं का षनयिंत्रर् कर षलया जाये
त र िं के उत्पादन में बढ़ त्तरी की जा कती है । चेंपा या माह, आरामक्खी, षचतकबरा कीट,
लीफ माइनर, षबहार हे यरी केटरषपलर आषद र िं के मुख्य नाशी कीट हैं । काला ध्ब्बा, फेद
रतुआ, मृदुर षमल आष ता, चूर्थल आष ता एविं तना गलन आषद र िं के मु ख्य र ग हैं ।
सरसोिं के प्रमुख कीट
चेंपा या माहः
र िं में माह पिं खहीन या पिंखयुक्त हल्के स्लेटी या हरे रिं ग के 1.5-3.0 षममी. लम्बे चु भने एवम
चू ने मुखािं ग वाले छ टे कीट ह ते है । इ कीट के षशशु एविं प्रौढ़ पौध िं के क मल तन ,िं पषत्तय ,िं
फूल एवम नई फषलय िं े र चू कर उ े कमज र एवम छषतग्रस्त त करते ही है ार्- ार् र
चू ते मय पषत्तय पेर मधुस्राव भी करते है । इ मधुस्राव पर काले कवक का प्रक प ह जाता है
तर्ा प्रकाश िं श्लेिर् की षक्या बाषधत ह जाती है । इ कीट का प्रक प षद म्बर-जनवरी े लेकर
माचथ तक बना रहता है ।

जब फ ल में कम े कम 10 प्रषतशत पौधें की िं ख्या चेंपा े ग्रष त ह व 26-28 चेंपा/पौधा ह तब


डाइषमर् एट (र ग र( 30 ई ी या म न क् ट फा (न्यूवाक् न( 36 घुलनशील द्रव्य की 1 लीटर मात्रा
क 600-800 लीटर पानी में घ लकर प्रषत हे क्टेयर में षछड़काव करना चाषहए। यषद दु बारा े कीट
का प्रक प ह त 15 षदन के अिंतराल े पुनः षछड़काव करना चाषहए।

इसके प्रबन्धन के णलये-


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१माह के प्राकृषतक शत्रु ओ का िंरक्षर् करना चाषहए। .
२प्रारम्भ में प्रक षपत शाखाओिं क त डकर भूषम में गाड़ दे ना चाषहए। .
३ माह े फ ल क बचाने के षलए कीट नाशी डाईमेर् एट .30 ई . ी .1 लीटर या षमर्ाइल
ओ डे मेटान 25 ई. ी .1 लीटर या फेंट षर्ओन 50 ई . ी .1 लीटर प्रषत हे क्टेयर की दर 700-
800 लीटर पानी में घ लकर षछडकाव ायिं काल करना चाषहए।
आरा मक्ीः

इ कीट की र कर्ाम हे तु मेलाषर्यान 50 ई. ी. मात्रा क 500 लीटर पानी में घ लकर


प्रषत हे क्टेयर में षछड़काव करना चाषहए। आवश्यकता पड़ने पर दु बारा षछड़काव
करना चाषहए।

पेन्टेड बग या णचतकबरा कीटः


इ कीट की र कर्ाम हे तु 20-25 षकल ग्राम प्रषत हे क्टेयर की दर े 1.5 प्रषतशत
क्ूनालफा चूर्थ का भुरकाव करें । उग्र प्रक प के मय मेलाषर्यान 50 ई. ी. की 500
षम.ली. मात्रा क 500 लीटर पानी में घ लकर प्रषत हे क्टेयर के षह ाब े षछड़काव करें ।

णबहार हेयरी केटरणपलरः


इ की र कर्ाम हे तु मेलाषर्यान 50 ई. ी. की 1.0 लीटर मात्रा क 500 लीटर पानी में
घ लकर प्रषत हे क्टेयर के षह ाब े षछड़काव करें । र िं के प्रमु ख र ग

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सफेद रतुवा या श्वेत णकट्टः

फ ल के र ग के लक्षर् षदखाई दे ने पर मैन्क जेब (डाइर्ेन एम-45) या ररड षमल


एम.जेड. 72 डब्लू.पी. फफूाँदनाशी के 0.2 प्रषतशत घ ल का षछड़काव 15-15 षदन के
अन्तर पर करने के फेद रतुआ े बचाया जा कता है ।
काला िब्बा या पिष णचत्तीः
इ र ग की र कर्ाम हे तु आईप्र षडयॉन (र वरॉल(, मेन्क जे ब (डाइर्े न एम-45)
फफूिंदनाशी के 0.2 प्रषतशत घ ल का षछड़काव र ग के लक्षर् षदखाई दे ने पर 15-15
षदन के े अषधकतम तीन षछड़काव करें ।

चूणिषल आणसताः

चूषर्थल आष ता र ग की र कर्ाम हे तु घुलनशील ल्फर (0.2 प्रषतशत( या षडन काप


(0.1 प्रषतशत( की वािं षछत मात्रा का घ ल बनाकर र ग के लक्षर् षदखाई दे ने पर
षछड़काव करें । आवश्यकता ह ने पर 15 षदन बाद पुनः षछड़काव करें ।
मृदुरोणमल आणसताः

फेद रतुआ र ग के प्रबिं धन द्वारा इ र ग का भी षनयिंत्रर् ह जाता है ।


तना लगनः
काबे न्डाषजम (0.1 प्रषतशत( फफूिंदीनाशक का षछड़काव द बार फूल आने के मय
20 षदन के अन्तराल (बु आई के 50वें व 70वें षदन पर( पर करने े र ग का बचाव षकया
जा कता है ।

फसल कटाई[

र िं की फ ल फरवरी-माचथ तक पक जाती है । फ ल की उषचत पैदावार के षलए


जब 75 प्रषतशत फषलयााँ पीली ह जायें तब ही फ ल की कटाई करें क् षिं क अषधकतर
षकस्म िं में इ अवस्र्ा के बाद बीज भार तर्ा तेल प्रषतशत में कमी ह जाती है । र िं
की फ ल में दान िं का षबखराव र कने के षलए फ ल की कटाई ु बह के मय करनी
चाषहए क् षिं क रात की ओ े ुबह के मय फषलयााँ नम रहती है तर्ा बीज का
षबखराव कम ह ता है ।

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फसल मड़ाई )गहाई(

जब बीज िं में औ तन 12-20 प्रषतशत आद्रथ ता प्रषतशत ह जाय तब फ ल की गहाई


करनी चाषहए। फ ल की मड़ाई र्ै्र र े ही करनी चाषहए क् षिं क इ े बीज तर्ा
भू ा अलग-अलग षनकल जाते हैं ार् ही ार् एक षदन में काफी मात्रा में र िं की
मड़ाई ह जाती है । बीज षनकलने के बाद उनक ाफ करके ब र िं में भर लेने एविं 8-9
प्रषतशत नमी की अवस्र्ा में ूखे स्र्ान पर भण्डारर् करें ।

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सन्दभष

1. माकेट वॉच (2007), प्लान्धिक एक े अषधक तरीक िं में हरे हैं ।

2. BIO (n।d।( औिषधय िं के उत्पादन के षलए बनाम खाद्य पदार्थ तर्ा चारे के षलए पौध िं क

उगाना।

3. श्रम बाजार के अिंतराथ ष्ट्रीय श्रम िंगठन महत्वपूर्थ िं केतक 2008, पी। 11-12

4. "https://www।cia।gov/library/publications/the-world-

factbook/geos/xx।html#Econ" जााँ चें |url= मान (मदद).[मृत कषड़यााँ]

5. लैषटन शब्द लुकअप

6. लैषटन शब्द लुकअप

7. न्यूयॉकथ टाइम्स (2005), कभी कभी एक अच्छी चीज की भरपूर फ लकी बहुतायत ह ती है

8. न्यूयॉकथ टाइम्स (1986) षवज्ञान अकादमी प्राकृषतक खेती की बहाली की ष फाररश की।

9. षवश्व बैंक (1995) यूर पीय िंघ में कृषि जल प्रदू िर् पर काबू पाना

10. यूर पीय आय ग (2003) CAP ु धार

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